ब्रह्मचर्य विज्ञान | Brahmacharya Vigyan PDF

ब्रह्मचर्य का पालन कैसे करें – Brahmacharya Book/Pustak PDF Free Download

ब्रह्मचर्य की संपूर्ण जानकारी

ब्रह्मचर्य के लाभ और ब्रह्मचर्य न रखने के नुकसान व्यक्तिगत अनुभव का विषय हैं। इस विषय में सामान्यतः किसी को भी पूर्ण अनुभव नहीं है, क्योंकि जहाँ ब्रह्मचर्य का सर्वथा ह्रास हो जाता है, वहाँ जीवन संभव नहीं है और जहाँ जा-चर्या का अखंड पालन होता है, वहाँ ऐसे महान् ऊँचाई वाले महापुरुष का दर्शन कठिन है।

परंतु प्रत्येक मनुष्य इस विषय में अपने थोड़े से अनुभव से इस सत्य को जान सकता है कि “मरणं बिन्दु-पातेन, जीवनम् विन्दु-धारणात्” – जीवन वीर्य से है और मृत्यु वीर्य के अभाव से है। (यह बात व्यक्तिगत जीवन में जितनी सत्य है उतनी ही सामाजिक जीवन में भी, क्योंकि व्यक्तियों के समूह का नाम ही समाज है।)

जो आत्मज्ञान तथा शारीरिक बल का देने वाला है जिस की सभी लोग उपासना करते हैं-विद्वान् पुरुप जिसे प्राप्त करते हैं-जिसका आश्रय अमृत ( दीर्घ जीवन) देने वाला है, और जिसके अधिकार में मृत्यु है – इम उस दिव्य स्वरूप का ध्यान करते हैं।

किसी भी महत्व-पूर्ण कार्य के प्रारम्भ में उस की समाप्ति के लिये, वन्दना एक आवश्यक तथा शिष्टाचार से सम्बन्ध रखने वाला वैदिक नियम है। अतः हमने भी इस आर्य-धर्म सम्बन्धी ग्रन्थ को उपादेय बनाने की इच्छा से माङ्गलिक प्रार्थना की है।

बीर्य की रक्षा भली माँ ति होने पर, सब लोकों के सुखों की सिद्धियाँ खयं मिल जाती हैं।अखण्ड ब्रह्मचारी पितामह भीष्म ने धर्मराज युधिष्ठिर को ब्रह्मचर्य-विषय का उपदेश किया है, उसमें भी इस महात्रत की महिमा भले प्रकार प्रकट होती है ।

वह इस प्रकार है: ब्रहमचर्यस्य सुगुख, श्टणत्व ्च सुधाधिया । आजन्म भरगावस्तु, ब्रह्मचारी भवेदिह।मैं ब्रह्मचर्य का गुण बतलाता हूँ। तुम स्थिर बुद्धि से सुनो! जो आजीवन ब्रह्मचारी रहता है, उसे इस संसार में कुछ भी दुःख नहीं होता।

न तस्य किञजचिदप्राप्यमिति विधि नराधिप !बहु-कोटि ऋषीणाञ्ञ, ब्रह्मलोके यसन्त्युत ॥हे राजन ! उस पुरुष को कोई वस्तु दुर्लभ नहीं।

इस बात को तुम निश्राय समझो ! ब्रह्मचर्य के प्रभाव से करोड़ों [ऋपि] ब्रह्मलोक में वास करते हैं।

सत्येरतानां सततं, दन्तानाम्च्च-रेतसाम् । प्रह्मचयदहेद्राजन् ! सर्व-पापाग्पुपासितम् ॥ सत्य से सदैव प्रेम करने वाले निमल ब्रह्मचारी का ्रदाब्य अत, हे राजन् ! समस्त पापों को नष्ट कर देता है। चिरायुयः सुसंस्थाना, डढ़संहननानरा:। तेजस्पिनो महावीर्या, भवेयु ग्रह चर्यतः ॥

(देमचन्द्र )जो लोग विधिवत् ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं, वे चिरायु, सुन्दर शरीर, टद़ कर्शन्य, तेजस्वितापूर्ण कभौर ढ़़े पराबरमी क्षोते हैं।मामूर्ं चरिजस्य, पररहेककारणम् । समाचरन् प्रमचर्य, पूजितेरपिपूज्यते ॥

अचच सफचरित्रता का प्रा -स्वरूप हैं, इसका पालन करता हुआ मनुष्य, सुपूजित लोगों से मी पूजा आता है। पर के कोकों में जिस ब्रह्मचर्य के इतने गुर बतलाये गये हैं, उसके विषय में अधिक कहने की आवश्यकता नहीं ।

पाठक इवने से ही अक्षचर्य की महिमा का अनुमान कर सकते हैं। हमारे विचार से तो ब्रह्मचर्य की ययार्थ महिमा कहने और सुनने से नहीं विदित हो सकती ! इसको तो मली भाँति वे ही जान सकते हैं, जो कुछ समय तक इस प्रत की साधना करें।

लेखक जगनारायण देव शर्मा-Jaganarayan Dev Sharma
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 380
Pdf साइज़9 MB
Categoryसाहित्य(Literature)

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