भारत वंदना कविता का भावार्थ | Bharat Vandana Kavita ka bhavarth PDF In Hindi

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भारत वंदना सूर्यकांत त्रिपाठी – Bharat Vandana Suryakant Tripathi PDF Free Download

भारत वंदना कविता का भावार्थ

भारत वंदना कविता का भावार्थ भारत वंदना की व्याख्या करें तो सुनो भारत वंदना कविता का केंद्रीय भाव निराला जी ने इस कविता के माध्यम से हर भारतवासी को अपनी मातृभूमि के प्रति कर्तव्य निभाने के लिए प्रेरित किया है कभी कहते हैं कि अपनी मातृभूमि को स्वतंत्र करना और उसके सामान के लिए अपना सर्वस्व अस्त्र अपन कर देना ही हर देशवासी का कर्तव्य है।

\महाकवि ‘सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी’ द्वारा रचित ‘मातृ वंदना’ कविता देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत कविता है।

उन्होंने अपनी कविता ‘मातृ वंदना’ के माध्यम से मातृभूमि भारत के प्रति अपनी श्रद्धा और भक्ति भाव प्रदर्शित किया है।

अपने जीवन में स्वार्थ भाव तथा जीवन भर के परिश्रम से प्राप्त फल को निराला जी ने माँ भारती के चरणों में अर्पित करते हैं।

उन्होंने ने इस कविता के जरिये से हर भारतवासी को अपने देश के प्रति कर्तव्य तथा फर्ज को निभाने के लिए प्रेरित किया है।

निराला जी कहते हैकि अपनी मातृभूमि को स्वतंत्र रखना और उसके सम्मान के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर देना ही हर देशवासी का कर्तव्य है।

भारत वंदना कविता का संपूर्ण भावार्थ ‘अभी न होगा मेरा अंत’ कविता का मूल भाव स्पष्ट कीजिए? उत्तर: ‘अभी न होगा मेरा अंत’ कविता कवि निराला के जीवन-दर्शन पर प्रकाश डालती है।

कवि इस रचना द्वारा संदेश देना चाहता है कि मनुष्य को आत्मविश्वास और उत्साह के साथ जीवन बिताना चाहिए।

युवावस्था जीवन का सर्वोत्तम सुअवसर होता है। मृत्यु की चिन्ता न करते हुए व्यक्ति को युवावस्था में जीवन का आनन्द लेना चाहिए।

अपने आनन्द और उत्साह से समाज के सोए हुए लोगों को लाभान्वित करना चाहिए।

कवि अंत की उपेक्षा करते हुए जीवन के आरम्भ को महत्व देना चाहता है। उसे विश्वास है कि उसकी जीवन-लीला शीघ्र समाप्त नहीं होने वाली।

उसे सक्रियता से सार्थक जीवन बिताना चाहिए और अन्य लोगों को भी प्रेरित करना चाहिए। ‘मातृ-वन्दना’ कविता का केन्द्रीय भाव अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर: निराला जी की कविता ‘मातृ-वन्दना’ मातृभूमि भारत के प्रति असीम भक्ति भाव पर केन्द्रित है। ‘निराला’ अपने सारे स्वार्थभाव तथा जीवनभर के श्रम से प्राप्त सारे फल माँ भारती के चरणों में अर्पित करने का संकल्प व्यक्त कर रहे हैं।

चाहे उनके जीवन में कितनी भी बाधाएँ और कष्ट क्यों न आएँ, वह सभी को सहन करते हुए पराधीन जन्मभूमि को स्वतन्त्र कराने के लिए कृत संकल्प है।

कवि ने हर देशवासी के सामने देश के प्रति उसके पवित्रतम् कर्तव्य को प्रस्तुत किया है।

मातृभूमि को स्वतन्त्र और सुखी बनाने के लिए सर्वस्व समर्पण कर देना, कवि के अनुसार सबसे महान कर्तव्य है।

कवि निराला को अभी न होगा मेरा अंत’ यह विश्वास किस कारण है? उत्तर: कवि निराला को पूरा विश्वास है कि उनके भौतिक और कवि जीवन का अंत शीघ्र नहीं होने वाला है।

इसका कारण कवि बताता है कि उसके जीवन में वसंत ऋतु जैसा उल्लास, उत्साह और आनंदमय समय अर्थात् युवावस्था अभी-अभी ही आई है। अत: अभी उसका बहुत जीवन बाकी है।

‘अभी न होगा मेरा अंत’ कविता में निराला अपने जीवन में और जन-जीवन में क्या-क्या परिवर्तन लाना चाहते हैं? उत्तर: कवि के जीवन में वसंत ऋतु जैसी युवावस्था अभी-अभी आई है।

वसंत के आगमन पर जैसे प्रकृति में हरियाली छा जाती है और डालों पर कलियाँ दिखाई देने लगती हैं, उसी प्रकार कवि के जीवन में प्रसन्नता की हरियाली छा गई है। उसकी अनेक मनोकामनाएँ कलियों की तरह खिलने की प्रतीक्षा कर रही हैं।

कवि अपनी मनोकामनाएँ पूर्ण करने के साथ जन-जीवन में भी सवेरा लाना चाहता है ताकि औरों की कामनाएँ रूपी कलियाँ भी खिलकंर फूल बन जाएँ। कवि ने निश्चय किया है कि वह जन-जन को सक्रियता और जागरण का संदेश देगा।

अपने जीवन में जागे उत्साह और आनन्द से, औरों के जीवन को भी आनंदमय बनाएगा। है जीवन ही जीक्न अभी’ कवि निराला ने इस विश्वास का आधार क्या बताया है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: ‘अभी न होगा मेरा अंत’ कविता में निराला जी ने अपने दृढ़ आत्मविश्वास और जीवंत उत्साह का परिचय कराया है।

वह मृत्यु के भय को अपने मन में नहीं आने देना चाहते।

इसी मनोभाव को कविता के अन्तिम चरण में उन्होंने तार्किक रूप से पुष्ट किया है। वह कहते हैं कि अभी तो उनके जीवन को प्रथम चरण ही आरम्भ हुआ है।

अभी मृत्यु का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। अभी तो उनके सामने जीवन ही जीवन पड़ा हुआ है। पूरी युवावस्था आगे है।

अतः अभी जीवन के अंत के बारे में सोचने की कोई आवश्यकता नहीं। नर जीवन के स्वार्थ सकल, बलि हों तेरे चरणों पर इस काव्य पंक्ति में निहित कवि निराला के मनोभाव को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: इस पंक्ति द्वारा कवि ने मातृभूमि के प्रति अपने भक्तिभाव और सर्वस्व समर्पण का भाव व्यक्त किया है।

मनुष्य अपने जीवन को सब प्रकार से सुखी बनाना चाहता है। इसके लिए वह अनेक स्वार्थों को सफल बनाने की इच्छा किया करता है।

धन, कीर्ति, पद, प्रभाव आदि प्राप्त करना मनुष्य के स्वाभाविक स्वार्थ हुआ करते हैं।

कवि इन सभी स्वार्थों को मातृभूमि के हित में त्यागने को तत्पर है। इतना ही नहीं वह अपने परिश्रम से अर्जित समस्त फलों को भी माँ के चरणों में अर्पित कर देने की भावना भी व्यक्त कर रहा है।

‘मुझे तू कर दृढ़तर’ कवि मातृभूमि से दृढ़ता का वरदान किसलिए चाहता है? ‘मातृ-वन्दना’ कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए। उत्तर: कंवि चाहता है कि वह निर्भीकता से मृत्यु के पथ अर्थात् जीवन में आगे बढ़ता जाय।

जीव मात्र को अपना ग्रास बनाने वाला काल या मृत्यु चाहे उस पर कितने भी विघ्न, बाधा और कष्टरूपी तीखे बाण चलाए। वह सभी का सामना करते हुए मातृभूमि की सेवा करता रहे।

इसीलिए वह मातृभूमि से दृढ़ता का वरदान चाहता है।

उसका मन बाधाओं और घोर कष्टों में भी अडिग बना रहे, यही कामना इस पंक्ति में व्यक्त हुई है।

कवि अपने हृदय में माँ भारती की कैसी मूर्ति जगाना चाहता है और क्यों? उत्तर: कवि भारत माता की आँसुओं से धुली निर्मल मूर्ति अपने हृदय में जगाना चाहता है।

इसका कारण यह है कि जब मनुष्य अपने प्रिय या श्रद्धेय व्यक्ति को कष्ट में देखता है तो उसके हृदय में उसकी सेवा और सहायता का भाव उमड़ उठता है। भारत माता परतन्त्रता से या अभावों और कष्टों से पीड़ित हैं।

अतः उनकी आँखों से बहते आँसू देखकर कवि बड़े से बड़ा त्याग करने को तत्पर हो जाएगा।

माँ की आँखों से आँसू उसे अपना जीवन और श्रमजनित सारा फल माँ के चरणों में न्योछावर कर देने की प्रेरणा और बल प्रदान करेंगे।.

लेखक
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 12
PDF साइज़2 MB
CategoryPoem
Source/Creditsemmanuelbeawar.com

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