भक्त कुसुम – Bhakt Kusum Book/Pustak Pdf Free Download
पुस्तक का एक मशीनी अंश
विपयोंसे हटाकर आपके चरणों में लगाऊँ । मैं तो विपयविमोहित .मोहके सागरमें डूब रहा हूँ । तुम्ही हाथ पकड़कर मुझे निकालो तो निकल सगा । दयामय ! मुझ-सा दीन और कौन होगा जो अपनी
दीनताके प्रकट करनेमें भी असमर्थ है, जो दीनबन्धुके चरणोंमें उपस्थित होकर इतना भी नहीं कह सकता कि ‘मैं दीन हूँ।’ अभिमान सदा-सर्वदा दीनताका बाधक बना ही रहता है ।
मुझे अब कोई भी मार्ग नहीं सूझता । करुणानिधे ! इस पतित प्राणीपर दया करो, अपने भजन करनेकी शक्ति दो और किसी दिन अपनी बाँकी झांकी दिखाकर कृतार्थ कर दो
इस प्रकार प्रार्थना और चिन्तन करते बहुत-सा समय बीत गया । एक दिन रात्रि के समय एकान्तमें जगन्नाथदास बिटाने पर पड़े हुए मन-ही-मन प्रार्थना करने लगे-‘प्रभो ! बहुत दिन हो गये ।
अब तो अपनी कृपाकी एक किरण मुझपर भी डालो । मैं अधिकारी नहीं, इसलिये मुझे भक्ति और प्रेम मत दो, परन्तु अपनी इतनी महिमा तो बता दो कि जिससे मैं दृढ़ विद्यासके साथ तुम्हारी
भजन कर सकूँ । हे दयामय ! मैं तुम्हारे शरण हैं । तुम्हारे सिवा लोक-परलोकमें मेरा कोई नहीं है । मारो या तारो, जो बुळ , तुम्हारा ही हैं ।”‘ यों कहते-कहते और मनमें प्रभुका ध्यान
करते-करते जगन्नाथदासको नीद आ गयी । आज दयामय का हृदय द्रवित हो गया। भगवान् बड़े कोमल-हृदय और भ्त- वत्सल है। एक ही शब्दसे द्रवित हो जाते हैं। वह चौबीसों घण्टे
इन्हीं विचारों में रहते और बारम्बार भगवान्से प्रार्थना करते कि है प्रभो ! इस अपार भवसागरसे पार करनेवाले तुम्ही एकमात्र कर्णधार हो, जबतक तुम्हारी कृपा नहीं होती तबतक
किसी भी उपायसे जीयका उद्धार नहीं हो सकता । नाथ ! मैं दीन, हीन, शक्तिहीन पामर प्राणी हूँ, मुझमें ताकत नहीं कि मैं मनको
लेखक | हनुमान प्रसाद-Hanuman Prasad |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 108 |
Pdf साइज़ | 2.4 MB |
Category | उपन्यास(Novel) |
भक्त कुसुम – Bhakt Kusum Pdf Free Download