भगवत चर्चा – Bhagwat Charcha Book/Pustak Pdf Free Download
पुस्तक का एक मशीनी अंश
ये सब गुण सिद्ध संतमें स्वाभाविक होते हैं और साधक इनको प्राप्त करने के प्रयत्नमें लगा रहता है; परंतु यह नहीं समझना चाहिये कि संतमें इतने ही परिमितसंख्यक गुण हैं ।
सत्यस्वरूप परमात्मामें नित्य स्थित होनेके कारण संतरकी अंदर-बाहरकी प्रत्येक चेष्टा और क्रिया एक-एक सद्गुण और सदाचार ही है; वस्तुतः संत सद्गुणों के भंडार होते हैं,
उपर्युक्त चालीस गुण तो उन अनन्त सद्गुणोंके साररूप बतलाये गये हैं। और भी संक्षेपमें कहें तो यों कह सकते हैं, जिनमें निम्नलिखित छः लक्षण हों, वे पुरुष निश्चय ही संत हैं
१-नित्य सत्य परमात्मस्वरूपमें या भगवत्प्रेममें अचल स्थिति, २- सर्वत्र समदृष्टि, जीवमात्रमें आत्मोपम प्रेम, ३-राग-द्वेप, काम-क्रोध और लोभ अभिमानादि मानसिक
दोपोंका और मान-बड़ाई-प्रतिष्ठाकी इच्छाका सर्वथा अभाव, १-स्वाभाविक ही समस्त प्राणियोंके हितमें रति, ५-शान्ति, सरलता, शम, दम, शीतलता, त्याग, संतोष, दया, अहिंसा,
सत्य, निर्भयता, अनासक्ति, निष्कामता, निरहंकारता, निर्ममता, स्वाधीनता, निर्मलता, क्षमा, सेवा, तप आदि सद्गुण और सदाचारोंका पूर्ण विकास और ६-हर एक
स्थितिमें अखण्ड असीम आनन्द ..संतोंके हृदयमें पाप-तापके लिये स्थान नहीं है, उनके आचरणोर्मे किसी प्रकारका भी दोष नहीं आ सकता । अज्ञान, असत्य, दम्भ,
कपट, स्तेय, व्यभिचार आदि दुराचार उनके समीप भी नहीं रह पाते । उनका सरल जीवन सर्वथा सदाचारमय, दिव्य आदर्श गुणोंसे युक्त, सबको सुख पहुँचानेवाला तथा
सबका हित करनेवाला होता है; वे जहाँ रहते हैं, जहाँ विचरते हैं, यहीं मङ्गल संदेश देते हैं, मङ्गलमय वायुमण्डल तैयार करते हैं और सबको मङ्गलमय बना देते हैं ।
लेखक | हनुमान प्रसाद-Hanuman Prasad |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 443 |
Pdf साइज़ | 11.4 MB |
Category | धार्मिक(Religious) |
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