भक्त नारी – Bhakt Naree Pdf Free Download
पुस्तक का एक मशीनी अंश
जो मेरी भकतिसे बिमुख हैं यज्ञ, दान, तप औौर बेदाण्पयन करके भी वे मुझे नहीं देख सकते । यही घोषणा भगवान्ने गीतामें की है ।
इसके बाद भगवान्ने शबरीको नवधा भ्तिका लरूप बतलाया तस्साद्भामिनि ! संक्षेपादवक्ष्येऽहं भक्तिसाधनम् । सतां सङ्गतिरेवात्र साधनं प्रथमं स्मृतम् ॥
द्वितीयं मत्कथालापः तृतीयं मदुगुणेरणम् । व्याख्यातृत्वं मद्वचसां चतुर्थ साधनं भवेत् । आचार्योपासनं भद्रे मदबुद्धघा मायया सदा । पञ्चमं पुण्यशीलत्वं यमादि नियमादि च ॥
निष्टा मत्पूजने नित्यं पष्ठं साधनमीरितम् । मम मन्त्रोपासत्वं साङ्ग सप्तममुच्यते ॥ मद्भकेप्यधिका पूजा सर्वभूतेषु मन्मतिः । वाह्यार्थेषु विरागित्वं शमादिसहितं तथा ॥
अष्टम नवमं तस्वविचारो मम भामिनि । पवं नवविधा भक्तिः साधनं यस्य कस्य वा ॥(अध्यात्मरामायण) इसी नवधा भक्तिको कुछ रूपान्तरमें श्रीगुसाईजीने इसप्रकार कहा है इसप्रकार भजिका वर्णन करनेके बाद भगवान् शबरीको अपना परमपद प्रदान करते हैं । जोगि-वृन्द दुर्लग गति जोई ।तो कह आजु सुलभ मइ सोई ॥
उसी समय दण्डकारण्यवासी अनेक ऋषि मुनि शबरीजीके आश्रममें आगये। मर्यादापुरुषोत्तम भगवान् श्रीराम और लक्ष्मणने खड़े होकर मुनियोंका स्वागत किया और उनसे कुशल प्रश्न किया। सबने उत्तरमें यही कहा त्वद्दर्शनाद्रपुश्रेष्ठ ! जाताः स्मो निर्मया वयम् ।
हे रघुश्रेष्ठ । आपके दर्शनसे हम सब निर्भय हो गये हैं। प्रभो ! हम बड़े अपराधी हैं। इस परम भक्तिमती शबरीके कारण हमने मतङ्ग जैसे महानुभावका तिरस्कार किया ।
योगिराजोंके लिये मी जो परम दुर्लभ हैं ऐसे आप साक्षात् नारायण जिसके घरपर पधारे हैं वह भक्तिमती शबरी सर्वथा धन्य है । हमने बड़ी भूल की ।
इसप्रकार सब ऋषि-मुनि पश्चात्ताप करते हुए भगवान्से विनय करने लगे। आज दण्डकारण्यवासी ज्ञानामिमानियों की औंखें खुडी !
जब व्रजकी ब्राह्मण-वनिताओंने अपने पति-देवोंकी आज्ञाका उठनकर साक्षात् यज्ञपुरुष श्रीकृष्णकी सेवामें पहुँचकर अनन्य इस परम भक्तिमती शबरीके कारण हमने मतङ्ग जैसे महानुभावका तिरस्कार किया ।
लेखक | हनुमान प्रसाद-Hanuman Prasad |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 98 |
Pdf साइज़ | 1.5 MB |
Category | उपन्यास(Novel) |
भक्त नारी – Bhakt Naree Book/Pustak Pdf Free Download