आत्म विकास के चार चरण | Four Step For Self Development PDF

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आत्म विकास के चार चरण – Self Development PDF Free Download

आत्म विकास के चार चरण

देवियो, भाइयो! भजन-पूजन की बात आप सुन चुके, स्वाध्याय और सत्संग की बात भी कर ली। इसके अतिरिक्त पूजापरक-उपासनापरक दो और भी आध्यात्मिक प्रयोग हैं, जो आपको करने ही चाहिए।

इनमें से एक का नाम है, ‘चिंतन’ और दूसरे का नाम है, ‘मनन’। चिंतन और मनन के लिए किसी कर्मकांड की जरूरत नहीं है, किसी पूजा विधान की जरूरत नहीं है और किसी समय निर्धारण की जरूरत नहीं है।

अच्छा तो यह हो कि इन सब कामों के लिए आप सवेरे का समय ही रखें अध्यात्म साधना के लिए सबसे अच्छा समय प्रातःकाल का ही है। दूसरे कामों के लिए भी प्रात:काल का ही है, यानी कि चौबीस घंटों में जो सबसे अच्छा समय है,वह प्रात:काल की ही है।

प्रात:काल के समय को आप जिस भी काम में लगा देंगे, उसी काम में आपको बड़ी प्रसन्नता मिलेगी और सफलता भी मिलेगी।अंतर्गुहा में प्रवेश करें इसलिए चिंतन और मनन की एकांत साधना के लिए अगर आप प्रातःकाल का समय निकाल पाएँ, तो बहुत अच्छा।

कदाचित् प्रात: काल का समय निकालना आपके लिए संभव न हो तो आप ऐसा करें कि और कोई समय एक साथ मनोयोगपूर्वक काम करने हेतु आप निकाल लें। जब कभी आप यह देख पाएँ कि एक आधा घंटा या पंद्रह मिनट का समय ऐसा निकलता है,

जिसमें आप शांतचित्त हैं। इसमें मन के लिए शांतचित्त होना जरूरी है। भागदौड़ में, रास्ता चलते, चलते-फिरते कहीं भी जप कर लेंगे, नहीं, ऐसा मत कीजिए। चिंतन-मनन के लिए ऐसा संभव नहीं है।

इसके लिए ऐसा स्थान होना चाहिए, जहाँ बाहरी विक्षेप उत्पन्न न होता हो और आपका मन शांत और एकाग्र हो जाता हो।

इसके लिए कोई मुनासिब एकांत का स्थान मिल जाए, तो और भी अच्छा, लेकिन अगर न मिले, तो आप आँखें बंद करके भी ऐसी जगह बैठ सकते हैं, जहाँ कोलाहल न हो।

अपनी आदतें भी अच्छी, अपना विचार भी अच्छा, सब कुछ अपना ही अच्छा, बाहर वालों का गलत। आमतौर से लोगों की यही मनोवृत्ति होती है और यह मनोवृत्ति गलत है।

आध्यात्मिक उन्नति में यह मनोवृत्ति बहुत भयंकर है।

आध्यात्मिक उन्नति में इसके बराबर अड़चन डालने वाला दूसरा और कोई व्यवधान है ही नहीं इसलिए आप पहला काम वहाँ से शुरू कीजिए, आत्मसमीक्षा से एकांत में चिंतन के लिए जब आप बैठें तो आप यह विचार किया करें कि हम पिछले दिनों क्या भूल करते रहे हैं?

हम रास्ता भटक तो नहीं गए, भूल तो नहीं गए। इसके लिए ही जन्म मिला था क्या? जिस काम के लिए जन्म मिला था, वही किया गया ? पेट के लिए जितनी जरूरत थी, उससे ज्यादा कमाते रहे क्या ?

कुटुंब की जितनी जिम्मेदारियाँ पूरी करनी थीं, उसके स्थान पर अनावश्यक संख्या में लोग बढ़ाते रहे क्या और जिन लोगों को जिस चीज की जरूरत नहीं थी, उनको प्रसन्न रखने के लिए उपहार रूप में लादते रहे क्या ? क्यों ? आखिर क्या वजह थी ? यह सब गलतियाँ हैं।

इनकी समीक्षा करना शुरू कीजिए। इसी तरह अपने खान-पान के लिए, स्वास्थ्य के लिए, आहार-विहार के लिए, जैसा रखना था, वैसा ही रखा क्या? चिंतन की शैली में जैसी शालीनता का समावेश होना चाहिए था, वैसा रखा क्या ?

नहीं न हमने अपने शरीर के प्रति अपने कर्त्तव्य का पालन किया, न अपने मस्तिष्क के प्रति कर्तव्य का पालन किया, न अपने कुटुंबियों के प्रति अपने कर्त्तव्य का पालन किया।

कर्त्तव्यों की दृष्टि से हम बराबर पिछड़ते हुए चले गए। अतः जहाँ-जहाँ पिछड़ते हुए चले गए, उन सबके विषय में एक बार फिर विचार कीजिए।

लेखक श्री राम शर्मा-Shri Ram Sharma
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 18
Pdf साइज़3.6 MB
Categoryधार्मिक(Religious)

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