भूतनाथ उपन्यास | Bhutnath Novel PDF In Hindi

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भूतनाथ सभी भाग – Bhutnath PDF Free Download

भूतनाथ उपन्यास

जेठ का महीना और शुक्ल पक्ष की चतुदशी का दिन है। यरचपि चह पहर भर से कुछ ज्यादे जा चुकी है और आँखो मे ठखक पहचाने वाले चन्द्रदेव भी दर्शन दे रहे है

परन्तु दिन भर की पूप औरलू की बदौलत गरम भई हुई जमीन मकानो की छत प्रौर दीवारें अभी तक अच्छी तरह ठएवो नही हुई ।

अब भी कमी कभी सहारा दे देने वाले हवा के भापेटे में गर्मी मासूम पडती है और बदन से पसीना निकल रहा । वाग में सैर करने वाले शौकोनो को भी पखे की जरूरत है और जगल में भटकने वाले मुसाफिरो को भी पेडो को प्राड बुरी मालूम पड़ती है।

ऐसे समय में मिर्जापूर से बाईस कोम दक्खिन की तरफ हट कर छोटी सौ पहाटी के ऊपर जिम पर वड़े बडे और अपने पेडो को कमी तो नही है मगर इस समय पत्तो समो के समय से जिनकी सूपसूरती गप्ट हो गई है,

एक पत्थर की चट्टान पर हम दाल तलवार तया तोर कमान नगाए हुए दो बादमियो को बैठे देखते है जिनमे से एक औरत और दूसरा मर्द है । औरत की उम्र चौदह या पन्द्रह वर्ष की होगी मगर मर्द की उम्र बीस वर्ष से कम मालूम नही होती।

यद्यपि इन दोनो की पोशाक मामूली सादी मौर बिल्कुल ही साधारण हग की है मगर सूरत शबल से यही जान पडता है कि ये दोनो साधारण व्यक्ति नहीं है बल्कि किसी अमीर यहादुर योर क्षत्री खानदान के होनहार है।

जिस तरह मर्द चीकन पायजामा कमरदन्द और मुटाना पहिरे हुए ह उसी तरह पौरत ने भी चपकन पायजामा नमरवन्द पौर मुरामे से अपनी सूरत मदर्दाने ढग को बना रक्खी हैं मकायकी सरसरी निगाह से देख कर कोई यह नहीं कह सकता कि यह मौरत है,

वे इस दरवाजे को देख कर चौंके और चारो तरफ निगाह दौडा कर सोचने लगे, “ हैँ |! यह दरवाजा कैसा ? मैं तो विना इरादा किए ही यकायक यहा झा पहुचा । मालूम होता हैँ कि यह कोई सुरग है ।

मगर इसके मुँह पर किसी तरह की हिफाजत क्यो नहीं है ? यह दरवाजा तो एक लात भी नहीं सह सकता ? शायद इसके अन्दर किसी त’ह को रुकावट हो जैसी कि उस सुरग के भ्न्दर थी जिसकी राह से मैं यहाँ श्राया था ?

खैर इसके भ्रन्दर चल के देखना तो चाहिए कि वया है ! कदाचितृ इस कैदखाने के बाहर ही निकल जाऊं ।

वेशक यह स्थान सुन्दर भौर सुहावना होने पर भी मेरे लिए कैदखाता ही हैं ।

गदि इस राह से में वाहर तिकल गया तो वढा ही श्रच्छा होगा, मे उस इन्दु को जरूर बचा लू गा जिसे इस भ्राफत के जमाने में भी मेने अपने से झ्लग नही किया था।

अ्रच्छा जो हो, मैं इस सुरग के भन्दर जरूर चलूगा मगर इस तरह निहस्थे जाना तो उचित नही !

पहिले वगले के श्रन्दर चल कर श्रपनो पूरी पौशाक पहिरना श्रोर श्रपने हरवे लगा लेना चाहिये, न मालूम इसके भ्रन्दर चल कर कसा मौका पडे ! न भी सोका पड़े तो क्या ? कंदाचित्‌ इस घाटो के बाहर ही हो जाय, तो प्रपने हरवे क्यो छोड जाय २!

इस तरह सोच विचार कर प्रभाकर सिंह वहा से लौटे श्रौर तेजी के साथ बगले के श्रन्दर चले गए । वात की वात में श्रपनों पूरी पोशाक पहिर कर और हवें लगा कर वे बाहर निकले भोर मैदान तय करके फिर उसी सुरग के मुहाने पर पहुचे ।

दरवाजा खोलने में किसी तरह की कठिनाई न थी भ्रतएवं वे सहज ही में दरवाजा खोल उस सुरग के अन्दर चले गए। सुरंग बहुत चोडी श्रौर ऊंँचो न थी, फेवल एक आदमी खुले ढंग से उसमें चल सकता था । भ्गर सामने से कोई दूसरा

भ्रादमी झाता हुप्रा मिल जाब तो बडी मुश्किल से दोनों एक टूयरें गो निकाल कर प्रपनी शभ्रपनो राह ले सकते थे ।

लेखक बाबू देवकीनंदन-Babu Devkinandan
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 348
Pdf साइज़10 MB
Categoryउपन्यास(Novel)

भूतनाथ सभी भाग – Bhutnath Pdf Free Download

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