आषाढ़ का एक दिन | Ashadh Ka Ek Din PDF In Hindi

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आषाढ़ का एक दिन – Ashadh Ka Ek Din PDF Free Download

आषाढ़ का एक दिन नाटक समीक्षा सहित

कालिदास उज्जयिनी को प्रस्थान करते हैं किन्तु उनका हृदय में बोझिल हो जाता है । उस समय उनके हृदय-भार को हलका करते हुए मतिमतका कहती है: “विश्वास करो, तुम यहां से जाकर भी यहां से विच्छिन्न नहीं होनोगे ।

यहा की वायु, यह के मेच और यहां के हरिण, इन सबको तुम साथ मे जाोगे । और मैं भी तुमसे दूर नहीं रहूंगी। जब भी मैं तुम्हारे निकट होना चाहूंगी पर्वत- विखर पर चली जाऊंगी और लड़का करते हुए मेघों में घिर जाया करूंगी।

” कालिदास की प्रस्थान-वेता में मल्लिका के नेत्रों से अश्रुधारा उमड़ने लगती है तो मां की गोद में मुह ढक वह बैठ जाती है। यहीं प्रथम परक ममाप्त हो जाता है। कालिदास उज्जयिनी की राजसभा में सम्मानित होकर काव्य-रचना में ज्यस्त रहने लगे ।

उनकी काव्य-प्रतिभा पर रीमकर राजा ने अपनी कन्या प्रियंगुमंजरी से विवाह कर दिया पीर उन्हें काश्मीर का शासक नियुक्त किया। कालिदास के साथ राजवंभव पला। मार्ग में प्रिय गुमंगरी कालिदास के ग्राम का दर्शन करते हुए गई।

उसने मल्लिका के उस जर्जर गृह की यात्रा की और उसे नवीन रूप देने का प्रयास किया, किन्तु मल्लिका ने यह सब स्वीकार नहीं किया। प्रियंगु पोर मस्तिका का इस अवसर पर वार्तालाप बड़ा ही प्रभावोत्यादक है। प्रयाग : मैं उनसे जान चुकी हूं कि तुम शंशव से उनकी मंगिनी रही हो। उनकी रचनापों ने तुम्हारा मोह स्वाभाविक है ।

प्रियंगु मल्लिका को अपने साथ कारमीर चलने के लिए बाध्य करना चाहती है किन्तु मल्लिका किसी प्रकार साथ जाने को तैयार नहीं होती। नवीन भवन बनाने के पाबह को भी यह कहकर टाल देती है : “रेमा मत कीजिए । इस पर को गिराने का ग्रादेश मत दोजिए ।”

यद्यपि उक्त गुणों से सम्पन्न होने के कारण इस नाटक का गौरव है ही परन्तु इसकी बडी विशेषता यह है कि इसमें समस्या-नाटकों की प्रायः सभी विशेषताएं विद्यमान हैं ।

समस्या-नाटक में प्राय: प्रेम की समस्या का मनोवेज्ञानिक विश्लेषण पाया जाता है । इस नाटक में भी हमें उसीका दर्शन होता है। मल्लिका का विवाह उसकी माता विलोम से करना चाहती है ।

मल्लिका और कालिदास का चिरकाल का परिचय है। दोनों एक-दूसरे की ओर स्नेह एवं सहानुभूति-भरे भावों से आकर्षित हैं। अभी तक धनाभाव के कारण विवाह का प्रसंग नहीं उठा है ।

इतने ही में कालिदास उज्जयिनी को प्रस्थान करता है और राजकाय में संलग्न होते हुए भी मल्लिका के सरल स्नेह से प्रेरणा पाते हुए ‘मेघदूृत’, “अभिज्ञान शाकुन्तल’ आदि काव्यों की रचना कर डालता है ।

काशध्मीर से लौटते समय वह मल्लिका के स्नेह-सरोवर में डूबने को आराकुल हो उठता है । इस प्रकार उसके हृदय का स्वाभाविक प्रेम प्रस्फुटित हो उठता है ।

इधर मल्लिका भी प्रियंगु के श्रागमन से सारी स्थिति का अनुमान कर लेती है और माता के आग्रह से विलोम के साथ परिणय-सूत्र में बंध जाती है ।

दोनों (कालिदास और मल्लिका ) अपने-अपने जीवन-पथ पर चलते हुए बाल्यकाल की स्मृति जागरित करते रहते हैं। इस प्रकार जीवन-यात्रा को सुखद बनाने में एकदूसरे के जीवन में दोनों की अनुपस्थिति जीवन-संबल का कार्य करती है।

प्रेम की ऐसी निमंल धारा सुरसरि के समान पाठकों के मन को पावन बना देती है। महाकवि की जीवन-गाथा के धुंधले चित्रों को स्पप्ट करनेवाला यह नाटक ग्राद्योपान्त पाठक को रसघारा में आप्लावित करता चलता है ।

समस्या-नाटकों के समान इसमें तीन अंक है और प्रत्येक अंक का पर्दा उसी एक ग्रामीण बाला के निधन ग्रह का दर्शन कराता है । ग्राम्य जीवन में उज्जय्रिनी का वेभव पहुंचकर जो उत्सव का अवसर प्रस्तुत कर देता है वह एक निराली छटा का द्योतक बन जाता है ।

आज यह समस्या है कि कलाकार को राजप्रश्नय स्वीकार करने में आपत्ति होनी चाहिए या नहीं ; राजप्रश्नय॒ कलाकार का विकास करता है या ह्वास । इस नाटक में इस समस्या पर भी पर्याप्त प्रकाश डाला गया है।

यदि कलाकार अपने ग्रभावों की पृष्ठभूमि को आंखों से श्रोकल न होने दे और उसकी हृष्टि राजवंभव से चकाचौंध न हो जाए तो कलाकार राजप्रश्नव के कारण प्राप्त सुखमय जीवन में अभावमय जीवन से कहीं अधिक उदात्त रचना कर सकता है।

लेखक मोहन राकेश-Mohan Rakesh
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 214
Pdf साइज़8.8 MB
CategoryDrama

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