अन्धा युग नाटक: धर्मवीर भारती | Andha Yug PDF In Hindi

अँधा युग – Andha Yug Drama PDF Free Download

पहला अंग: कौरव नगरी

इस द्रश्य काव्य में जिन समस्याओ को उठाया गया है, उनके सफल निर्वाह के लिए महाभारत के उत्तराद्ध की घटना का आश्रय ग्रहण किया है

कथा-गायन

टुकडे-टुकडे हो विखर चुकी मर्यादा उसको दोनो ही पक्षो ने तोडा है पाण्डव ने कुछ कम कौरव ने कुछ ज्यादा यह रक्तपात ध्रुव कव समाप्त होना है यह अजब युद्ध है नही किसी की भी जय दोनो पक्षो को खाना ही खोना है अन्धो से शोभित था युग का सिहासन दोनो हो पक्षो मे विवेक हो हारा दोनो ही पक्षो मे जीता श्रन्धापन भय का अन्धापन, ममता का श्रन्धापन अधिकारो का अघापन जीत गया जो कुछ सुन्दर था, शुभ या कोमलतम था वह हार गया द्वापर युग बीत गया

[पर्दा उठने लगता है]

पा गही शाी दुए थोर इस्तिनासुर है। पाया। जाकर कहूँगा क्या इस सम्जाजनक पराजय के बाद भी त्यो जीवित बचा हूँ?

कैसे कहूँ मैं कमी नहीं शब्दो की माज भी मैने ही उनको बताया है युद्ध में घटा जो-जो. लेकिन माज अन्तिम पराजय के अनुभव ने जैसे प्रकृति ही बदल दी है सत्य की आज कैसे यही शब्द

वाहक बनेंगे इस नूतन मनुसूति के ? साथ कर बह योदा पुकारता है-‘जय’] किसने पुकारा मुझे प्रेतो की ध्वनि है यह या मेरा भ्रम ही है ? मैं हूँ कतेब्मा ।

जीवित हो सजय तुम 7 पाटब योडापो ने छोड दिया जीवित तुम्हे ? जीवित हूँ।

भाग जब कोसो तक फैली हुई धरती को पाट दिया अर्जुन ने भूल ठित कौरव-कवन्धो से, मेष नही रहा एक भी जीवित कौरव-बीर सात्यकि ने मेरे भी वध को उठाया शस्त्र भी यदि पान नही बचता शेष, किन्तु कहा व्यास ‘मरेगा नही सजय अयध्य है

पंसा यह शाप मुझे प्यास ने दिया है अनजाने मे हर सकट, युद्ध, महानाश, प्रलय, विप्लव शेष बचोगे तुम सजय सत्य यहने को अपो से किन्तु रंमे कहूँगा

हाय सात्यकि के उठे हुए शस्त्र के मृत्यु कोई मेरी सारी नुभूतियो को चीर गग कैसे दे पाऊँगा मैं सम्पूर्ण सत्य उन्हें विकृत अनुभूति से

चमक्दार ठडे लोहे के स्पश मे को इतने निक्ट पाना मेरे लिये यह वित्युल हो नया अनुभव था। जैसे तेज वारण किसी कोमल मृणाल को ऊपर से नीचे नक चौर जाय नरम त्रास के उस बेहद गहरे क्षण में पैय घरो सजय ।

क्योचि तुमको ही जाकर यतानी है दोनो को पराजय दुर्योधन को । परी बताऊँगा । वह जो सम्राटो का पधिपति या अश्वत्थामा यह मेरा धनुष है

धनुष भश्वत्यामा का जिसकी प्रत्यचा खुद द्रोण ने चढाई थी भाज जब मैंने दुर्योधन को देखा नि शस्त्र, दीन माखो मे पासू भरे । मैंने छोड़ दिया अपने इस गाने को । कुचले हुए सांप-सा गयावह किन्तु

लेखक धर्मवीर भारती-Dharamvir Bharti
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 138
Pdf साइज़1.1 MB
Categoryनाटक(Drama)
Sourcesarchive.org

अन्धा युग नाटक – Andha Yug Pdf Free Download

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