मुद्राराक्षस विशाखदत्त कृत नाटक | Mudrarakshas PDF In Hindi

मुद्राराक्षस हिंदी अनुवाद – Mudrarakshasa Book/Pustak PDF Free Download

नाटक की पूर्व कथा

पूर्व काल में भारतवर्ष मे मगधराज्य एक बड़ा भारी जनस्थान था । जरासन्ध आदि अनेक प्रसिद्ध पुरुषसी राजा यहा बड़े प्रसिद्ध हुए है। इस देश की राजधानी पाटलिपुत्र अथवा पुष्पपुर थी।

इन लोगों ने अपना प्रताप और सो इतना बढ़ाया था कि आज तक इनका नाम भूमण्डल पर प्रसिद्ध है। किन्तु कालचक्र बड़ा प्रवल है कि किसी को भी एक अवस्था मे रहने नहीं देता ।

अन्त में १०० नन्दवश ने पौरवों को निकाल कर वहा अपनी जयपताका उड़ाई। वरच सारे भारतवर्ष मे अपना प्रबल प्रताप विस्तारित कर दिया ।

इतिहास ग्रन्थों मे लिखित है कि एक सौ अड़तीस बरस नन्दवश ने मगध देश का राज्य किया । इसी वश में महा- १५ नन्द का जन्म हुआ। यह बड़ा प्रसिद्ध और अत्यन्त प्रताप शाली राजा हुआ।

जब जगद्विजयी सिकन्दर (प्रक्षेन्द्र) ने भारतवर्ष पर चढ़ाई किया था तब असख्य हाथी, बीस हजार सवार और दो लाख पैदल लेकर महानन्द ने उस के विरुद्ध प्रयाण किया था ।

सिद्धान्त यह कि भारतवर्ष में २० उस समय महानन्द सा प्रतापी और कोई राजा न था। महानन्द के दो सत्नी थे । मुख्य का नाम शकटार और दूसरे का राक्षस था।

शकटार शुद्ध और राक्षस ब्राह्मण था। ये दोनों अत्यन्त बुद्धिमान और महा तिभासम्पन्न थे – थे। केवल मेद इतना था कि राक्षस धीर और गम्भीर था, उस के विरुद्ध शक्टार अत्यन्त उद्धतस्वभाव था ।

यहा तक कि अपने प्राचीनपने के अभिमान से कभी कभी यह राजा पर भी अपना प्रभुत्व जमाग चाहना ।

महानन्द सी अन्त उग्रस्व भाव, असहनशील और क्रोधी था, जिस का परिणाम यह हुआ कि महानन्द ने अन्त को एकटार को क्रोधान्ध हो कर बडे निविड़ बन्दीखाने में कैद किया और सपरिवार उस के भोजन का केवल दो सेर सत्त देता था।

विशाखदत्त रचित संस्कृत मुद्राराक्षस को भारतभूषण भारतेन्दु श्रीहरिश्चंद्र ने हिंदी में भाषानुवाद किया है।

शकटार ने बहुत दिन तक महा-मात्य का अधिकार भोगा था, इस से यह अनादर उस के पक्ष में अत्यन्त दुखदाई हुआ।

निय सत्त का बरतन हाथ में लेकर अपने परिवार से कहता कि जो एक भी नन्दवश के जड़ से नाश करने में समर्थ हो वह यह सत्त, खाय ।

मत्री के इस वाक्य से दुक्ति हो कर उस के परिवार का कोई भी सत्तू न खाता । अन्त में कारागार की पीड़ा से एक एक करके उसके परिवार के सब लोग मर गए ।

एक तो अपमान का दुख, दूसरे कुटुम्ब का नाश, इन दोनो कारणों से शकटार अत्यन्त न मनमलीन दीन हीन हो गया। किन्तु अपने मनसूबे का ऐसा पक्का था कि शत्रु से बदला लेने की इच्छा से अपने प्राण नही त्याग किए और थोड़े

बहुत भोजन इत्यादि से शरीर को जीवित रक्खा। रात दिन इसी सोच मे रहता कि किस उपाय से वह अपना बदला ले सकेगा ।

कहते हैं कि राजा महानन्द्र एक दिन हाथ मह धोकर हसते हसते जनाने मे आ रहे थे । विचक्षणा नाम की एक दासी जो राजा के मुह लगने के कारण कुछ धृष्ट हो गई थी, राजा को हसता देख कर हस पड़ी।

राजा उस की ढिठाई से बहुत चिढ़ो और उस से पूछा- तू क्यों हसी ? उस ने उत्तर दिया- “जिस बात पर महाराज हॅसे उसी पर मै भी हसी” । महानन्द इस बात पर और भी चिढ़ा। और कहा कि अभी बतला मैं क्यों हंसा, नहीं तो तुझ को प्राणदण्ड होगा।

लेखक विशाखदत्त- Vishakhadutt
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 173
Pdf साइज़20.8 MB
Categoryनाटक(Drama)

मुद्राराक्षस विशाखदत्त – Mudrarakshas Sanskrit PDF Free Download

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