कालिदास कृत शाकुंतल – Kalidas Krit Shakuntal Book/Pustak PDF Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
रूप मे मन मे बनी है कह नही सकता कि यह सब कब तक करना सम्भव होगा, और, होगा भी नहीं। ‘मृच्छकटिक और ‘शाकुन्तल’ के इन अनुवादो में शूद्रक और कालिदास के साथ कहाँ तक न्याय हुआ है, यह मै नही कहू सकता।
पट मेरा प्रयत्न अवश्य रहा है कि जहाँ तक बन पडे, मूल के भाव और अर्थ दोनों की अनुवाद मे रक्षा की जाय।
साथ यह भी कि अनुवादक की ओर से अतिरिक्त शब्दो का प्रयोग कम-से-कम हो, और किसी भी तरह का अतिरिक्त आशय उसमे न आने पाये।
फिर भी कुछ स्थल ऐसे है जहाँ नाटकीय अन्विति के निर्वाह के लिए, या श्लोको के अनुवाद की मुक्तक लय बनाये रखने के लिए, थोडी बहुत स्वतन्त्रता मुझे लेनी पड़ी है।
इसके लिए बहुत अधिक अधिकार नैने अपने को नही दिया, पर मूल का अनुसरण करने के लिए लय और अन्विति की उपेक्षा कर जाने से अनुवाद का उद्देश्य ही शायद पूरा न हो पाता।
अनुवाद में बहुत सी सीमाएँ अनुवादक की हो सकती है, पर कुछ सीमाएं ऐसी भी है जो इस तरह के प्रयल मे स्वत अन्तहित रहती है
फिर मून-रचना से आज का सदियो का अन्तर- भ्षा, शिल्प, भावयोजना तथा परिकल्पना का अपने में ही एक सीमा है ।
किसी ने यह प्रश्न उठाया था कि राजा लक्ष्मणसिह के अनुवाद के रहते ‘शाकुन्तल’ का एक और अनुवाद क्यो ?
इस सम्बन्ध में इतना ही कहा जा सकता है कि हर दूसरी-तीसरी पीढ़ी के बाद, और नही तो भाषा की दृष्टि से ही, इन रचनाओं के नये-नये अनुबादी की आवश्यकता पडती रहेगी।
इस तरह यह अनुवाद भी आज के लिए है आनेवाले कल को इसका स्थान किसी और अनुवाद को लेना होगा।
लेखक | कालिदास-Kalidas |
भाषा | हिन्दी, Sanskrit |
कुल पृष्ठ | 224 |
Pdf साइज़ | 8.8 MB |
Category | नाटक(Drama) |
कालिदास कृत शाकुंतल – Kalidas Krit Shakuntal Book/Pustak PDF Free Download