टाम काका की कुटिया – Tam Kaka Ki Kutiya Pdf Free Download

टाम काका की कुटिया
उसकी गांवों से नम्रवा पौर सेज टपक रहा था। उसके सादे खच्छ वस मुख की सुन्दरवा को জर मी बढ़ा रहे थे चालक का भजन और निडर भाव देसते ही पता लग जाता था कि वह अपने मालिक का प्यारा है ।
शेवी ने बालक को देखते ही “जिम, लेना कह कर एक मुट्ठी किशमिश उसके सामने ढाल दी । बालक को किशमिश उठाने के लिए आपको देख कर उसका मालिक उसका सगा ।
किशमिश उठा लेने के चाद शेल्वी ने उस बालक को अपने पास बुला कर प्यार से कहा, “जिम, इन्हें जरा स्पपना नाचना दिखता तो । ” बालक झट तैयार होकर मुक मुक नाचने और गुलामों में प्रचलित एक गीत को बड़े मधुर स्वर से गाने लगा ।
इस पर हती बड़ा .खुश हुआ. .खूब जाह बाह की पौर एक नारंगी लड़के को दी । शेल्वी ने कहा- अब जरा अपने कुबड़े चाचा के समान कमर मुक्का कर लकड़ी के सहारे चलने की नकल तो करना ।
देखते देखते वालक ने मालिक की लाठी लेकर कुचड़ों के लाठी के सहारे चलने की हम सकल कर दी। बालक की इस विचित्र याल लीला को देख कर शेल्वी भोर हेली दोनों इस पड़े ।
इसी भांति ्पने मालिक की आशा से बालक ने और भी कई नकले दिखलाई। यह सब देख कर हेली बोला “वाह वाह ! खूब अलवेला छोकडा है। बस, इसी छोड़े को टाम के साध दे दो ।
फिर तुम्हारी हुट्टी-एक दम हट्टी। कसम है तुम यही करो, सारी सफ़ाई हुई जाती है । “इसी समय एक बर्णसर युवती धीरे से दरवाज़ा खोल कर मंदर माई । बद बालक की माता जान पड़ती थी।
लेखक | महावीर प्रसाद पोद्दार-Mahavir prasad Poddar |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 555 |
Pdf साइज़ | 19.1 MB |
Category | कहानियाँ(Story) |
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