होली की किताब | Holi Book PDF Hindi

गजब की होली या राष्ट्रिय फाग – Gajab Ki Holi Ya Rashtriy Fag Book/Pustak Pdf Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश

कोटि बार है तुम्हें बदना, हम्हाभूमि सुखकारी। शस्य श्यामला रस कि गर्मा, भार बार तेरी ॥ १ बीर प्रसू तू घोर अनि है, तीनि लोक से न्यारी। सब से पढिले कोशन तेथ, रद्दा विহ । में जारी ॥२ दे वरदान हमें हे जननी ! इटै चिता सारी। हो अशक सुख मोग करें हम, तेरे से क मैझारी ॥

दयाट दो जावे तेरी, जगी श्राश है भारी। ह्व स्वतंत्र हम जग में विचरें, गई न दीन दुखारी ४ गावें तो गुण तेरे गायें, रूप रंग विस्तारी । प्रेम पन्थ के पथिक वरने तो, होवे चाई निहारी ॥ उजड़ गई है सत्य भूमि यह, सुर मुनि की फुलवारी] । हरी भरी फिर एक बार हो, दम दोवें धि हारी ॥ ६॥

अंतिम विनय यही है जननी ! देहु न हमें विकार । तीस कोटि हम तन मन धन से, सेवा करें तुम्हारो पौ ी ीकलारे, हपर जग ची हली । दधा पान है बात बात में, घर प्रेम की बोसी है। र बैन की बंशी बाजे, घर में में भोली है ।

बड़ी चोट है गोकरशा री महा वि नाम भोळनी है- यह बड़े गजब की होली है ॥अपर खेल का अ मोहन, गई ह तथा कर जो है। टोपी धोनी झर भगोड़ा कदर ही की भालो है। परि हम जदचे चुप न हुईशे यही सदन की बोजी है। जईँ देखी ता कुंज गलिन में, घूम रही यह टोली है

यह चड़े गज़ब की दूरी है । जब सुधार में सार न भायो ज्यो होत टिटाली है। ग्वान शक नव निगे जोगी डारि लियो उर भोली है। अलख की टेर लगाई, लोगन यनी खोदी है। तिलक फंड की कानी भरिगै, क्या जादू की बोली है

लेखकशिवशंकर मिश्र-Shivshankar Misra
सिद्धगोपाल शुक्ल-Siddhagopal Shukl
भाषाहिन्दी
कुल पृष्ठ17
Pdf साइज़1 MB
Categoryकाव्य(Poetry)

गजब की होली – Holi Fag Book Pdf Free Download

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