आत्मानुभूति तथा उसके मार्ग – Atmanubhuti Tatha Uske Marg Book/Pustak PDF Free Download

आज रात को मैं तुम्हें वेदों में लिखी हुई एक कहानी बतलाता हूँ। वेद हिन्दुओं के पवित्र शाखप्रंथ हैं । ये साहित्य के विस्तृत संकलन है। इनका अन्तिम भाग बेदान्त ‘ कहलाता है अर्थात् वेदों का पूर्ण विकास ।
वेदों में प्रतिपादित सिद्धान्त ही वेदान्त में विवेचना का विषय है, विशेषकर वह तत्वज्ञान जिसके सम्बन्ध में मैं आज ब.गा। स्मरण रहे कि वे आर्य संस्कृत भाषा में हजारों वर्ष पूर्व के लिखे हुए हैं।
लिखा है कि एक मनुष्य बड़े बड़े यज्ञ करना चाहता था । हिन्दू धर्म में यज्ञों का बहुत बड़ा महत्त्व है।
यज्ञ अनेक प्रकार के होते हैं। उसमें वेदियाँ बनाते हैं, अग्नि को आहुतियाँ समर्पण करते हैं, स्तोत्र आदि ढ़ते हैं और अन्त में ब्राह्मणों तथा गरीबों को दान देते हैं ।
प्रत्येक यज्ञ की कोई विशेष दक्षिणा होती है । यह मनुष्य जो यज्ञ करना चाहता था वह ऐसा था कि उसमें मनुष्य को अपना सर्वस्व दान कर देना पडता था ।
यह मनुष्य यद्यपि धनिक था तथापि कंजूस था, परन्तु फिर भी यह चाहता था कि उसकी यह कीर्ति हो कि उसने यज्ञों में अत्यन्त कठिन यज्ञ किया है ।
इस यज्ञ में अपना सर्वस्व दान करने के बदले उसने अपनी अंबी, लंगड़ी और बूढी गाएं दी जिन्होंने दूध देना बंद कर दिया था।
लेकिन उसका नचिकेता नाम का एक लड़का था । नचिकेता बड़ा होशियार लड़का था। जब उसने देखा कि उसका पिता निकृष्ट दान दे रहा है जिसका निश्चय ही उसे बुरा फल मिलेगा तो उसने निश्चय किया
कि वह स्वयं को दान में अर्पण करके इस कमी की पूर्ति करेगा। इसलिए वह पिता के पास गया और पूछने लगा, मुझे आप किसे अर्पण करोगे!” पिता ने कुछ उत्तर न दिया। लड़के ने फिर वही प्रश्र दूसरी और तीसरी बार पूछा ।
लेखक | स्वामी विवेकांनद-Swami Vivekanand |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 152 |
Pdf साइज़ | 7.4 MB |
Category | प्रेरक(Inspirational) |
आत्मानुभूति तथा उसके मार्ग – Atmanubhuti Tatha Uske Marg Book/Pustak Pdf Free Download