योगिनी तंत्र – Yogini Tantra Book/Pustak PDF Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
हे पर्वतनन्दिनी ! जो मनुष्य उस हृदकी उसीके जलसे पूजा करवा है, उसका जितना फल है. वह मैं करोड हजार जीम और सौ करोड मुख प्राप्त होनेपरमी वर्णन करने में समर्थ नहीं होसकता।
हे महे श्वारी उस हृदके जलमें हाथ डालकर एकसौ आठवार जप करनेपर वह मनुष्य पृथ्वीतलमें महासिद्धीश्वर होता है
तत्काल उसके मंत्र को सिद्ध होती है, इसमें सन्देह नहीं ॥४५ ॥नैनो वा वैष्णवो वापि झञाक्को नान्यो महेश्वर । जयते यैस्तु मन्त्री हि तत्क्षणं सिद्धिघृच्छति । अधोत्तरशतेनापि नाव कार्या विचारणा ॥ २८ ॥
हे देवोश ! शाक्त वैष्णव वा शैवदी क्यों न हो. अववा अन्य जो कोई हो, वहां जो एक सौ आटवार मंत्र जपता है, तो तत्काल उसकी मंत्रसिदि होती है इसमें सन्देह नहीं ॥ ४८ ॥
कुशाग्रोत्थितं तद्देवि पितृभ्यो यः प्रयच्छति । गयाश्राद्ं कृत तेन नियुताब्दं महेश्वरि ॥ १९ ॥
जो मनुष्य वहां कुशाप्रदारा वह जल पितरों को प्रदान करता है उसके द्वाराही उसको नियुताव्दष्यापी अर्थात् लक्ष वर्ष पर्यन्त गया श्राद करनेका फल होता है ।। ४९ ॥एतत्ते कथितं देवि कामास्यायोनिमण्डलम् । संक्षेपेण मह्ेशानि वक्ष्याम्येवें विशेषतः
हे देवि। यह मैंने तुमसे कामारल्या योनिमण्डल कहा ।हेमह अब संक्षेपसे उसका माहात्म्य कहता हूं ।॥ १०॥ किन्त्वस्य कथ्यते देवि माहात्म्यं च यशाश्विनी ।
तत्रः कोटियोगिनीभिः काली वसति तारिणी ॥५॥हे परमैन्धर्यसम्पन्न देवी ! अब इम उसके माहात्म्यका वर्णन करते हैं, तुम श्रवण करो ।
वहां करोड करोड योगिनियोंके सहित जगचा रिणी कालिका वास करती है॥ ५१ ॥छिन्नमस्ता भैरवी सा सप्त सप्त विभेदिता । धूमा च सुवनेशानी मातङ्गी कमलालया ॥ ५२ ॥ भगछिन्ना भगधारा तथा चैव भगन्दरी ।
दुर्गा च जयदुर्गा च तथा महिषमर्दिनी ॥ ८,३ ॥सप्त सप्त विभेदमें छिन्नमस्ता, भैरवी, धूमावती, भुवनेश्वरी, मातंगी कमलालया, भगक्लिन्ना, भगधारा, भगन्दरी दुर्गा जयदुर्गा महिष मर्दिनी
लेखक | कन्हैयालाल मिश्र-Kanaiyalal Mishra |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 527 |
Pdf साइज़ | 26.2 MB |
Category | धार्मिक(Religious) |
योगिनी तंत्र – Yogini Tantra Book/Pustak Pdf Free Download
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