विवाह, सेक्स, और प्रेम – Vivah, Sex, Aur Prem PDF Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
मैं बह कहा करती थी कि भिन्नतिगी व्यक्ति के साथ अकैते बाहर जाने के अतिरिक्त कोई लड़की और लड़का शारीरिक पनिष्ठता की किली भी सीमा तक जा सकते है, विशेष रूप से मदि जिन्हें एक-दूसरे से प्रेम हो पौर उनकी पाषस में मंगनी हो चुकी है।
मैं समझा करती थी कि बो लड़की भिन्नलिंगी व्यक्तियों के साथ सुलाकर व्यवहार नहीं करती, या दुर्भाग्य से जिसे इसन अमसर गहीं मिलता, सोफी लोग न तो कामना करते हैं उनकी सराहना करते हैं।
मैं समझती थी कि मिनाह से पहले धर बियाह की परिषि के बाहर सेक्स अनुभव लड़कों तया लड़कियों दोनों ही के लिए उचित है और यह कि सेक्स एक पारीरिक यावश्यकता है
जिसे तुष्ट मारने में कोई हर्ज नहीं है और यह कि विवाह के लिए यह फोई गावश्यक गुण नहीं है कि सड़की अक्षत योनि तथा सड़का धक्षतवीर्य हो ।
मैने इस बात को समझा ही नहीं था कि अधिकांश पुण्य अब भी ऐसी लड़की से विवाह करना चाहते हैं तो प्रक्रातयोनि हो। मैं अपनी उन सहेलियों या अन्य लड़कियों के पावरण को ठीक समभती थी जिनके विवाह से पहले सेक्स सम्बन्ध रह चुके थे|
रमैं यह सोचती थी कि विवाहित रूपी के लिए भी विवाह को परिमि के बाहर व-सम्बन्म स्थापित करना उचित है
यदि अपने पति से उसे से् का पूरा सन्तोष न मिस्ता हो या बह उरसे प्रेम न करती हो या घर उत्ते प्रेम न करता हो रा गिनका निवा विल्ध हो ! मेरा विरवा ना कि या अनुचित है और कमा उचित|
इसका निर्णय करना हर स्याक्ति प निजी मामला है। उस समय में यह सोचती थी कि यदि विवाह मे पहते या विवाह परिमि के बाहर मैंने निसी से शेक्सानाम्बन्ध स्थापित कर भी लिये तो मैं पाी अनुभव नहीं करती।
परन्तु अब मेरे विचार बदल गये हैं। यदि, ईश्वर न करे, अब में अपने विवाह की परिधि |
लेखक | प्रमिला कपूर – Pramila Kapoor |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 364 |
Pdf साइज़ | 17.45 MB |
Category | साहित्य(Literature) |
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