विवाह, सेक्स, और प्रेम | Vivah Sex Aur Prem PDF

‘Sex Books For Marriage’ PDF Quick download link is given at the bottom of this article. You can see the PDF demo, size of the PDF, page numbers, and direct download Free PDF of ‘Persian Love Poetry’ using the download button.

विवाह, सेक्स, और प्रेम – Vivah, Sex, Aur Prem PDF Free Download

संक्षिप्त विवरण और प्रविधि

प्रेम, विवाह तथा सेक्स के वारे में चर्चा करना तथा मत व्यक्त करना भारत में अपेक्षाकृत नयी बात है । श्रामतौर पर अव लोग यह जानने के लिए उत्सुक होते जाते रहे हैं कि समाज के विभिन्न वर्गों के लोग इन महत्त्वपूर्ण समस्याओं के वारे में क्या सोचते हैं, क्या महसूस करते हैं और क्या करते हैं।

मानव जीवन के इन महत्त्वपूर्ण पहलुओं के प्रति समकालीन अभिवृत्तियों अथवा व्यवहार के बारे में या इन श्रभि- वृत्तियों में हो रहे परिवर्तनों के वारे में किसी वैज्ञानिक तथा विस्तृत अध्ययन के अभाव में लोग आमतौर पर अटकलों तथा श्रवैज्ञानिक स्थूल मान्यतायों को अपनी धारणाओं तथा श्रपनी जानकारी का आधार बना लेते हैं ।

समाज का लक्षण है गतिशीलता । गतिरोध से उसे बैर है। परिवर्तन उसका सारन्तत्त्व है। बह कमी गतिहीन नहीं रहा, नहीं तो उसका भस्तित्व ही मिट चुका होता । परन्तु परिवर्तन का वेग और दिशा निरन्तर वदलती रही है। मूलतः भ्राज की दुनिया पहले की तुलना में बड़ी तेजी से बदलती हुई दुनिया है और परिवर्तन सभी दिशाओं में हुधा है। हमारी दृष्टि के सामने नये क्षितिज उभरे हैं और मनुष्य के लिए नये कार्य-क्षेत्रों का विकास हुआ हैं।

यह परिवर्तन मानव-जीवन के भौतिक और श्र-भोतिक दोनों ही क्षेत्रों में हुआ है। बदली हुई भौतिक, सामाजिक, राजनीतिक, भ्रार्थिक तथा धार्मिक गतिविधियां और लोगों की बदली हुई अभिवृत्तियाँ तथा मूल्य एक-दूसरे का कारण तथा परिणाम हैं। इस प्रकार श्रभिवृत्तियाँ – प्रच्छन्न व्यवहार- और प्रत्यक्ष व्यवहार एक ही समय में एक-दूसरे पर प्रभाव डालते भी हैं और एक- दूसरे से प्रभावित होते भी हैं।

बदली हुई भौतिक-श्रभौतिक परिस्थिति में मनुष्य के दृष्टिकोण में परिवर्तन इसलिए होता है कि वह तनाव में कमी करके अपने मानसिक सन्तुलन को बनाये रखने की भावश्यकता अनुभव करता है । बदलते हुए समय और बदलती हुई दुनिया के परिवर्तनों तथा चुनौतियों का सामना करने के लिए उसे निरन्तर अपने को नयी परिस्थितियों के अनुसार ढालना पड़ता है। परिवर्तन प्राणी-मात्र का जीवन है, जिसके विना जीवन गतिहीन हो जायेगा और जो भी चीज़ गतिहीन होती है वह मर जाती है।

मैं बह कहा करती थी कि भिन्नतिगी व्यक्ति के साथ अकैते बाहर जाने के अतिरिक्त कोई लड़की और लड़का शारीरिक पनिष्ठता की किली भी सीमा तक जा सकते है, विशेष रूप से मदि जिन्हें एक-दूसरे से प्रेम हो पौर उनकी पाषस में मंगनी हो चुकी है।

मैं समझा करती थी कि बो लड़की भिन्नलिंगी व्यक्तियों के साथ सुलाकर व्यवहार नहीं करती, या दुर्भाग्य से जिसे इसन अमसर गहीं मिलता, सोफी लोग न तो कामना करते हैं उनकी सराहना करते हैं।

मैं समझती थी कि मिनाह से पहले धर बियाह की परिषि के बाहर सेक्स अनुभव लड़कों तया लड़कियों दोनों ही के लिए उचित है और यह कि सेक्स एक पारीरिक यावश्यकता है

जिसे तुष्ट मारने में कोई हर्ज नहीं है और यह कि विवाह के लिए यह फोई गावश्यक गुण नहीं है कि सड़की अक्षत योनि तथा सड़का धक्षतवीर्य हो ।

मैने इस बात को समझा ही नहीं था कि अधिकांश पुण्य अब भी ऐसी लड़की से विवाह करना चाहते हैं तो प्रक्रातयोनि हो। मैं अपनी उन सहेलियों या अन्य लड़कियों के पावरण को ठीक समभती थी जिनके विवाह से पहले सेक्स सम्बन्ध रह चुके थे|

रमैं यह सोचती थी कि विवाहित रूपी के लिए भी विवाह को परिमि के बाहर व-सम्बन्म स्थापित करना उचित है

यदि अपने पति से उसे से् का पूरा सन्तोष न मिस्ता हो या बह उरसे प्रेम न करती हो या घर उत्ते प्रेम न करता हो रा गिनका निवा विल्ध हो ! मेरा विरवा ना कि या अनुचित है और कमा उचित|

इसका निर्णय करना हर स्याक्ति प निजी मामला है। उस समय में यह सोचती थी कि यदि विवाह मे पहते या विवाह परिमि के बाहर मैंने निसी से शेक्सानाम्बन्ध स्थापित कर भी लिये तो मैं पाी अनुभव नहीं करती।

परन्तु अब मेरे विचार बदल गये हैं। यदि, ईश्वर न करे, अब में अपने विवाह की परिधि |

लेखक प्रमिला कपूर – Pramila Kapoor
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 364
Pdf साइज़17.45 MB
Categoryसाहित्य(Literature)

Related PDFs

Kokshastra PDF

विवाह, संभोग, और प्रेम – Vivah Sex Aur Prem Book/Pustak PDF Free Download

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!