वैदिक सूक्त संग्रह | Vedic Sukta Sangrah PDF In Hindi

‘वैदिक सूक्त संग्रह’ PDF Quick download link is given at the bottom of this article. You can see the PDF demo, size of the PDF, page numbers, and direct download Free PDF of ‘Vedic Sukta Sangrah’ using the download button.

वैदिक सूक्त संग्रह – Vedic Sukta Sangrah PDF Free Download

वैदिक सूक्त संग्रह

वायुदेवता हमें सुखकारी औषधियाँ प्राप्त करायें। माता पृथ्वी और पिता स्वर्ग भी हमें सुखकारी औषधियाँ प्रदान करें। सोमका अभिषव करनेवाले सुखदाता ग्रावा उस औषधरूप अदृष्टको प्रकट करें हे अश्विनीकुमारो। आप दोनों सबके आधार है. हमारी प्रार्थना सुनिये ॥ ४॥

हम स्थावर-जंगमके स्वामी, बुद्धिको सन्तोष देनेवाले रुददेवताका रमाके निमित्त आहार करते हैं। वैदिक ज्ञान एवं धनको रक्षा करनेवाले, पुत्र आदिके पालक, अविनाशी पुष्टिकतर्ता देवता हमारी वृद्धि और कल्याणके निमित्त

महती कोर्तिवाले ऐश्वर्यशली इन्द्र हमारा कल्याण को: सर्वन, सबके पोषणकर्ता सूर्य हमारा कल्याण करें। जिनको चक्रधाराक समान गतिको कोई रोक नहीं सकता, वे गरुडदेव हमारा कल्याण करें बैरागी के स्वामी बृहस्पति हमारा कल्याण करें॥६॥

चितकबरे वर्णके घोडोंवाले, अदितिम्ततासे उत्पन, सबका कल्याण करनेवाले, यहशालाओंमें जानेवाले, अग्निरूपी जिद्ावाले सर्वप, सूर्यकरूपने्रयाले मरुद्गण और विश्वेदेव-देवता हविरूप अन्नको ग्रहण करनेके लिये हमारे इस यज्ञमें आयें॥७॥

है यजमानके रक्षक देवताओ! हम द अंगानाले शरीरसे पुत्र आदिके साथ मिलकर आपकी स्तुति करते हुए कानों से कल्याणकी बातें यतो यतः समीहसे ततो नो अभयं कुरु। शं नः शं कुरु प्रजाभ्योऽभयं नः पशुभ्यः ॥ १२॥ [शु० बनुर्वेद]

सुनें, नेज्रोंसे कल्याणमयी वस्तुओं को देखें, देवतांकी उपासनायोग्य आयुको प्राप्त करें। है देवताओ। आप सी वर्षकी आयुपर्यनत हमारे समीप रहें, जिस आयुमें हमारे शरीरको जरावस्था प्राप्त हो, जिस आयुमें हमारे पुत्र पिता अर्थात् पुत्रवान् बन जायें,

हमारी उस गमनशील आयुकी आपलोग बीचमें खण्डित न होने दें.९ अख है देवताओ।

आप सी वर्षकी आयुपर्यनत हमारे समीप रहें, जिस आयुमें हमारे शरीरको जरावस्था प्राप्त हो, जिस आयुमें हमारे पुत्र पिता अर्थात् पुत्रवान् बन जायें,

हमारी उस गमनशील आयुकी आपलोग बीचमें खण्डित न होने दें.९ अखण्डित पराशक्ति स्वर्ग है, वहीं अन्तरिक्षरूप है यही पराशक्ति माता, पिता और पुत्र भी है। समस्त देवता पराशक्तिके ही स्वरूप हैं. अन्त्यजसहित चारों व सभी

शिल्पकाररूप रुद्रोंके लिये नमस्कार है, रथनिर्मातारूप आप रुद्रोंके लिये नमस्कार हैं, कुम्भकाररूप रुद्रोंके लिये नमस्कार है, लौहकाररूप आप रुद्रोंके लिये नमस्कार है, वन पर्वतादिमें विचरनेवाले निषादरूप रुद्रोंके लिये नमस्कार है, पक्षियोंको मारनेवाले पुल्कसादिरूप आप रुद्रोंके लिये नमस्कार है, श्वानोंके गलेमें बँधी रस्सी धारण करनेवाले रुद्ररूपोंके लिये नमस्कार है और मृगांकी कामना करनेवाले व्याधरूप आप रुद्रोंके लिये नमस्कार है॥ २७ ॥

श्वानरूप रुद्रोंके लिये नमस्कार हैं, श्वानोंके स्वामीरूप आप रुद्रोंके लिये नमस्कार है, प्राणियोंके उत्पत्तिकर्ता रुद्रके लिये नमस्कार हैं, दुःखोंके विनाशक रुद्रके लिये नमस्कार है, पापका नाश करनेवाले रुद्रके लिये नमस्कार है, पशुओंके रक्षक रुद्रके लिये नमस्कार है, हलाहल- पानके फलस्वरूप नीलवर्णके कण्ठवाले रुद्रके लिये नमस्कार हैं और श्वेत कण्ठवाले रुद्रके लिये नमस्कार है॥ २८ ॥

जटाजूट धारण करनेवाले रुद्रके लिये नमस्कार हैं, मुण्डित केशवाले रुद्रके लिये नमस्कार है, हजारों नेत्रवाले इन्द्ररूप रुद्रके लिये नमस्कार हैं, सैकड़ों धनुष धारण करनेवाले रुद्रके लिये नमस्कार है,

लेखक Gita Press
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 250
Pdf साइज़15.2 MB
Categoryधार्मिक(Religious)

वैदिक सूक्त संग्रह – Vedic Sukta Sangrah Pdf Free Download

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!