वेद और स्वामी दयानंद – Ved Aur Swami Dayanand Book PDF Free Download
वेद का औचित्य
कितावें वर्तीर विजली की रोशनी के हमारी ज़िन्दगी के रास्ते को रोशन करती और हमको राहत बख्याती हैं। मगर मिट्टी के विराग को महज इसलिये हाथ में पकड़े रखना किये
हमारे बाप दादा हमारी नरल या हमारे मुल्क का कदीमी चिराग है और इसके मुकाबले में विजली के लैम्प से फायदा उठाने से इन्कार कर देना मुल्की नस्ली या पैदाईशी तरसे है
जिससे आजाद होने के लिये मिस्टर हरबर्ट स्पैन्सर ने हर एक मुहक्कक को नसीहत की है, मैं मुल्की तअस्सुय का कायल नहीं हूँ मैं नरली या पैदाईशी तअरसुव का भी गुलाम नहीं हूँ।
अगरचे उन लोगो की तरफ़ से जो वेदों को खुदा का कलाम मानते हैं मेरे वेदों के कलामे इलाही होने से इनकार करने पर मुझ पर पैदाइशी तअस्सुय का इलज़ाम गया लगाया जा रहा है
लेकिन वह इस बात को एक मिनट के लिए भी सोचने के वास्ते तैयार नहीं होते कि अगर मैं इस किस्म के तअस्सुवात का शिकार होता तो मैं दीगर मज़ाहिव के परखिलाफ एक लफ्ज़ भी न लिख सकता।
लेकिन मेरे इस किस्म के दोस्त जवकि मैं दीगर मज़ाहिब के बरखिलाफ धुवादार तहरीरें निकाल रहा था । मेरी तारीफ में जमीन व आसमान के कलावे मिलाते बताते थे
अगर मैं उस वक्त हक व हकानियत का तालिब या तो अब मैं झूठ और यातिल परस्ती का तालिय नहीं कहा जा सकता। मुख्यकक इन्सान नशो नुमा पाने वाले बच्चे की मानिन्द होते हैं
जिस तरह बच्चे के वह कपड़े जो कि वह पाँच साल की उम्र में पहनता था पन्द्रह साल की उम्र में इसके लिए छोटे हो जाते हैं इसी तरह मुहक्कक इन्सानों के पहले ड्यालात है
लेखक | गाजी मुहम्मद धर्मपाल-Ghazi Muhammad Dharampal |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 50 |
Pdf साइज़ | 10 MB |
Category | साहित्य(Literature) |
वेद और स्वामी दयानंद – Ved Aur Swami Dayanand Book/Pustak Pdf Free Download