वर्धा हिंदी शब्दकोश | Vardha Hindi Dictionary PDF In Hindi

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वर्धा हिंदी शब्दकोश – Vardha Hindi Dictionary PDF Free Download

हिंदी शब्दकोश

लिपि का प्रयोग अदालती में प्रारंभ हुआ। इसका एक दिलचस्प नतीजा यह निकला कि नागरी लिपि में लिखी खड़ी बोली हिंदुओं की हिंदी और फारसी लिपि में लिखी खड़ी बोली मुसलमानों की उर्दू बन गयी।

प्रारंभिक शब्दकोशी के निर्माण में संस्कृत को लेकर विशेष आग्रह इसी कारण दिखाई देता है।

खड़ी बोली से हिंदी बनने की प्रक्रिया काफी हद तक समावेशी थी। इस भाषा की शब्द संपदा में संस्कृत, फारसी और अरबी के तत्सम

शब्दों के अलावा बड़ी संख्या में अवधी, ब्रज, भोजपुरी, मैथिली, मगही, अंगिका. बज्जिका, मारवाड़ी जैसी बोलियों के शब्द जुड़े। इसके बावजूद तत्कालीन समाज में बढ़ रही सांप्रदायिक चेतना के कारण बड़ी

संख्या में भाषाविदों और रचनाकारों द्वारा प्रयास किया गया कि खड़ी बोली हिंदी संस्कृतनिष्ठ बने और जहाँ तक संभव हो उसमें अरबी और फारसी के शब्द कम से कम इस्तेमाल किए जाएँ।

स्वाभाविक था कि ऐसी कोई भी भाषा जो जनता के प्रयोगों से दूर हो

अधिक दिनों तक जीवित नहीं रह सकती और यहाँ भी यही हुआ। छायावाद के समाप्त होते होते और प्रगतिशील आंदोलन के मजबूत होने के फलस्वरूप साहित्य और बोलचाल की भाषा में फर्क धीरे-धीरे खत्म होता गया और आज सही

अर्थी में एक समावेशी हिंदी प्रयोग में आने लगी है जिसमें हिंदी प्रदेशों में प्रचलित बोलियों के साथ साथ अरबी, फारसी. तुकी. पुर्तगाली, फ्रेंच और इन सब से अधिक अंग्रेजी के शब्दों की भरमार है।

वर्षा हिंदी शब्दकोश की बुनियादी अवधारणा के पीछे यही सोच काम कर रही है

कि हमारे समय की समावेशी हिंदी के अधिकतम प्रचलित शब्द इस कोश में स्थान पा सकें।हिंदी शब्दकोशों की दूसरी सीमा एक संस्करणीय होना है। शुरुआती दौर के सभी शब्दकोश बेहद परिश

अध्येताओं की सुविधा के लिए कोशकारी का कर्तव्य है कि वे किसी शब्द के एक रूप को मानक रूप चुने और दूसरे शब्द के अर्थ में देखें लिख दें। वैसे यह काम केंद्रीय हिंदी निदेशालय जैसी संस्था ही कर सकती है।

यह निर्णय आवृत्ति के आधार पर जा सकता है। हमारे पास यह सुविधा नहीं है, इसलिए हमारा चयन वाइच्छिक है।

हिंदी में इस कथन (हिंदी में जैसा लिखा जाता है, वैसा पढ़ा जाता है) का इतना प्रचार हो चुका है कि लोग इसको ही सच मानने लगे हैं। ऐसा शत-प्रतिशत सही नहीं है।

यह हिंदी भाषियों के लिए भले ही कोई समस्या नहीं है, लेकिन विदेशियों के लिए बहुत बड़ी समस्या है। उपर्युक्त कथन के कारण अधिकतर हिंदी कोशी में न तो शब्दों का उच्चारण लिखा जाता है और न ही उच्चारण के संकेत दिए जाते हैं।

विदेशी प्रयोक्ता की सुविधा के लिए यहाँ उच्चारण के कुछ नियम दिए जा रहे हैं।

लिखित अंतिम अ का उच्चारण तभी होता है जब अंत में दो व्यंजन हो, जैसे- कर्म, कष्ट आदि।

अधिकतर स्थितियों में अक्षरांत ‘अ’ अनुच्चरित रहता है। संस्कृत में अक्षरांत में अ’ उच्चरित होता है। यदि संस्कृत के शब्द में अंत मे अन बोला जाए तो हल चिहन लगाना जरूरी है.

जैसे पश्चात् हिंदी वर्तनी व्यवस्था में इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप हल चिह्न लगाएँ या नहीं.

जैसे पश्चात् पश्चात उच्चारण में दोनों ही समान रूप में व्यंजनांत बोले जाते हैं। इसी दृष्टि से इस कोश में शब्दांत मै हल चिह्न नहीं लगाया गया है।

ह के पूर्व अ का उच्चारण हस्व ऐ हो जाता है, जैसे- कहना हिंदी में हस्व ऐ लिखने की कोई व्यवस्था नहीं है।

य’ और ‘व’ के पूर्व का व्यंजन उच्चारण में दवित्व हो जाता है, जैसे- विन्यास [विन्-न्यास) विश्वास [विश्-श्वास] संवाद जैसे शब्

लेखक राम प्रकाश सक्सेना-Ram Prakash Saxena
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 3185
Pdf साइज़28.5 MB
Categoryसाहित्य(Literature)

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