यूक्रेनी लोक कथाएं | Ukraini Lok Kathayen PDF In Hindi

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यूक्रेनी लोक कथाएं – Ukraini Lok Kathayen PDF Free Download

यूक्रेनी लोक कथाएं

बहुत पुरानी बात है। एक मा बूढ़ा एक थी बुढ़िया एक दिन बूढ़ा मेला देखने गया, वहां पर उसने एक बकरी खरीदी। ब

करी लेकर वह घर आया और अगले दिन सुबह उसने अपने बड़े बेटे को बकरी घराने भेजा लड़का चरागाह में सुबह से शाम तक बकरी चराता रहा और दिन ढलते ही उसे घर वापस ले चला।

घर के पास पहुंचा ही था कि देवता क्या है बाड़े के फाटक पर लाल लाल जूते पहने बूढ़ा बड़ा है। बूढ़े ने पूछा

“बकरी, री बकरी, तूने कुछ बाया-पिया ?” “नहीं, बाबा, न मैंने कुछ खाया, न पिया, “बकरी बोली। उछल-कूदकर निकट पेड़ के जब मैं आई, तब इक पत्ती मौका पाकर मैंने खाई।

भरा सरोबर दिया सामने चलते-चलते झट से बढ़कर एक बूंद बस मैंने पी ली खाने को बस यही मिला था पीने को बस यही मिला था।”

बूढे को बडा गुस्सा आया कि बेटे ने उसकी प्यारी-प्यारी बकरी की ठीक से देखभाल क्यों नहीं की? उसने देखा न ताव बेटे को घर से निकाज दिया।

दूसरे दिन बूढ़े ने अपने छोटे लड़के को बकरी चराने भेजा लड़का सुबह से शाम तक बकरी चराता रहा और दिन बनने पर पर की ओर बना भो वह बाटे के फाटक पर पहुंचा ही था कि लाल लाल जूते पहने प बड़े ने फिर पूछा “बकरी री बकरी, तूने कुछ खाया-पिया ? “

“” नहीं, बाबा, न मैंने कुछ चाया न पिया, ” बकरी ने पहले जैसा राम अलापा |

उछल-कूदकर निकट पेड़ के जब मैं आई, तब इक पत्ती मौका पाकर मैंने खाई भरा सरोवर दिखा सामने चलते-चलते, झटपट बढ़कर एक बूंद बस मैंने पी ली खाने को बस यही मिला था, पीने को बस यही मिला था।

बूढ़े ने इस लड़के को भी घर से निकाल दिया। तीसरे दिन बुढ़िया को बकरी चराने भेजा गया।

बुढ़िया दिन भर बकरी चराती रही और शाम होते ही उसे घर वापस से आई। अभी बुढ़िया बाड़े के फाटक तक पहुंची ही थी कि लाल-लाल जूते पहने बूढ़ा वहां मौजूद था। बूढ़े ने बकरी से फिर वही सवाल किया:

“बकरी, री बकरी, तूने कुछ घाया-पिया ? ” नहीं बाबा न मैंने कुछ बाया न पिया, ” बकरी फिर वही रोना लेकर बैठ गई,

“उछल-कूदकर निकट पेड के जब मैं आई, तब इक पती मौका पाकर मैंने खाई भरा सरोबर दिखा सामने चलते-चलते, झटपट बढ़कर एक बूंद बस मैंने पी ली खाने को बस यही मिला था, पीने को बस यही मिला था। “

बूढ़े ने अपनी बुढ़िया को भी निकाल दिया। चौथे दिन वह खुद बकरी चराने गया। दिन भर वह बकरी चराता रहा, दिन उलते ही वह घर की तरफ चल दिया।

लाल-माल जूते पहने बाड़े के फाटक पर ट से रुक गया। इस बार भी बूड़े ने बकरी से पूछा “बकरी री बकरी, तूने कुछ खाया-पिया ? ”

“नहीं बाबा न मैंने कुछ छाया न पिया, “इसके आगे बकरी ने वही सब फिर कह सुनाथा “उछल-कूदकर निकट पेड़ के जब मैं आई, तब इक पत्ती मौका पाकर मैंने खाई भरा मरोबर दिखा सामने चलते चलते, भट से बढ़कर एक

बूंद बस मैंने पीसी खाने को बस यही मिला था, पीने को बस यही मिला था।” बूढ़ा क्रोध से आग-बबूला हो उठा।

वह सोहार के यहां जा पहुंचा, तोहार से उसने घरी की धार तेज कराई और घर आकर बकरी को हलाल करने लगा कि इसी बीच वह रस्सी तोड़कर निकल भागी और जंगल में जा पहुंची।

जगन में उसे खरगोश की भोपडी दिखलाई दी। वह भीतर पहुबकर अलावघर के ऊपर छिपकर बैठ गई।

लेखक
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 247
PDF साइज़47.8 MB
CategoryStory

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