तुलसीदल – Tulsidal Gita Press Pdf Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
और यो मी पे है, उसमें परन पचोकि मिर बीकनसा मेर बकेलक हुण्हारी रुचि र अनुसरण कारनामात्र ही खचाता है। यही तो दशा प्रेम है । मोगमे रहकर मोगोको अपना भाग्य ग समझना,
संखारमे राहकर संसारको भूल जाना, जगत्में रहकर अपने आपको सारे जगद्- सहित तुम्हारे चरणोमें अर्पण कर देना, केवल तुम्हारा होकर तुम्हारे लिये ही जीवन धारण करना,
संपर्क पुंगी-मनिपर चनेवाले सॉपके समान निरन्तर प्रमत्त होकर वंशी-बनिके पीछे-पीछे बप्रमत्तरूपसे नाचना जिसके जीवनका खभाव वन जाता है, यही तो तुम्हारा प्रेमी है ।
कहते हैं, फिर उसको तुम्हारी बंशी-वनि नित्य सुनायी देती है, क्षण-क्षणमे तुम्हारा मन-मोहन मुरली-खर उसे पथ-प्रदर्शककी मसाळके समान मार्ग दिखलाया करता है।
वे प्रेमी महात्मा धन्य हैं जो तुम्हारे इस प्रकारके प्रेमको प्राप्त कर त्रैलोक्यपावन पदवीपर पहुँच चुके हैं।हम तो नाथ | इस प्रेम-पाठके अधिकारी नहीं है । चुना है कि परम बैराम्यबान्
पुरुष ही इस प्रेम-पाठशाडामे प्रवेश कर सकते हैं। नहीं तो यह प्रेम का पारा झट निकलता है और सारे शरीर-मनको क्षत-विक्षत कर डालता है। प्रेमका पारा वैराग्यसे ही शुद्ध होता है,
वैराग्यके अभावमें नीच काम ही प्रेमके सिंहासनपर बैठकर सारी साधनाओंको नष्ट-भ्रष्ट कर डालता है । अतएव प्रनो ! भोगों में फंसे हुए, हम संसारी जीव इस दिव्य प्रेमाची पात करनेका दुःसाहस कैसे फर सकते हैं
इम तो दोन हीच पतित पामर प्राणी हैं तुम्हारे पतित-पावन खरूपपर मरोसा किये दरवानेपर पदे हैं, परन्तु नाय ! हमें न प्रेम है, न भक्ति है और न श्रह्मा है । फिर किस मुंहसे तुमसे बाई कि प्रभो
तुम हमारी रक्षा करो । तुम भक्तोंके परम सखा हो, जो जगत्का सारा भरोसा छोडकर केवल तुम्हारी दयापर ही निर्भर करते हैं, उनकी तुम रक्षा करते हो । हम तो संसारासक्त म्बिहौन दान प्राणी |
लेखक | हनुमान प्रसाद-Hanuman Prasad |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 264 |
Pdf साइज़ | 4.8 MB |
Category | धार्मिक(Religious) |
तुलसी दल – Tulsi Dal Gita Press Book/Pustak Pdf Free Download