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तर्क संग्रह संस्कृत – Tarka Sangraha Sanskrit PDF Free Download
तर्कसंग्रह
मैं जो अन्नम्मट्टोपाध्याय नाम करके हूँ सो मैं तर्कसंग्रह नाम क ग्रंथको करता हूं क्या करके करता हूँ,
संपूर्ण विश्वका स्वामी जो परमेश्वर उसको हृदयमें स्थापन करके अर्थात् निरंतर उसका ब्यान करके फिर क्या करके,
अपने विद्यागुरुको वंदना करके इतने करके ग्रन्थके आदिमें ईश्वरका और गुरुका नमस्काररूप मंगलमी दिखा दिया.
यद्यपि आगे पूर्वले आचार्योंके बनाये हुए ग्रन्थ बहुतसे हैं तथापि उनके पढनेसे जलदी पदार्थों का ज्ञान नहीं होता है क्योंकि वह अविकठिन हैं
जिसबास्ते उनमें शीघ्र बुद्धि प्रवेश नहीं कर सकी है इसषास्ते यह अतिसुगम – नवीन ग्रन्थकी रचना करते हैं जिसके पढनेसे बालकों को शीघ्रही पदार्थोंका बोध हो जावे इसलिये इस ग्रन्थकी रचना निष्फल नहीं है
इसी हेतु को लेकर मूलकारने कहा है:- “बालानां सुख बोधाय” अर्थात बालकोंको सुखेनतासे बोधके वास्ते (पदार्थों का विनाही भमसे ज्ञान के लिये) यह तर्कसंग्रह नामक ग्रन्थको करते. हैं
अब बालकपदके अर्थको लक्षण करके दिखाते हैं: – “अघी तव्याकरणकाव्यकोशोऽनधीतन्यायशास्त्रो बालः ” अ ध्ययन किया है व्याकरण काव्य कोश जिसने और नहीं अध्य यन किया है
न्याय जिसने उसका नाम यहांपर बाल है सो ऐसा बालक लेना. यदि इतनाही लक्षण करते ” अनधीतन्यायशा स्त्रो वालः” अर्थात् नहीं अध्ययन किया है न्याय जिसने उसका नाम बाल है. तब दूध पीनेवाला जो बालक है
पास्ते जो व्याकरण काव्य को पढा हो और श्यायशासन पढा हो रही यहां पर बालक लेना बालक के लक्षण जो कहा है सो निर्दोष है
और जिसने व्याकरणिक का अध्ययन किया है उसमे न्यायशासके पदार्थों की ग्रहण और धारण करनेकी साम्य बन सकी है. प्रसिद्ध बालकॉमें नहीं बन स्की इस वास्ते महण धारण शक्ति वाले का नाम वाळ है |
” तप्यन्ते प्रतिपाद्यन्ते इति ताः द्रव्यादि पदार्थाः तेषां संग्रहः संक्षेपेण स्वरूपकथनं कस्मिन् ग्रन्थे सत संग्रह” जो तर्कना करके प्रतिपादन किये जावें उनका नाम है
तर्क अर्थात् द्रव्यादि पदार्थ के नाम वर्क है. उन व्याधि पदार्थों का जो संप्रह पाने संक्षेपसे उनके स्वरूपका कथन दोपे जिस ग्रन्थ में उस ग्रन्थ का नाम वर्कसं्ह है. मंगलाचरणका निरूपणकर दिया ।
अब पदार्थों का निरूपण करते हैं: व्यगुणकर्मसामान्यविशेषसमवायाभावाः सप्त पदार्थाः।। द्रव्य, गुण २, कर्म ३, सामान्य ४, विशेषण, समवाय६, अभाव, यह सातही पदार्थ है
अब सामान्य को दिखाते हैं: सामान्य दो प्रकारका है, एक तो परसामान्य है, दूसरा अपर सामान्य है सो सत्ताका नाम परसामान्य और द्रव्यत्वादिजातियोंका नाम अपर सामान्य है जो अधिक देशमें रहे उसका नाम पर है और अल्प देशमें रहे वह अपर है
सो सत्ता सच द्रव्यत्वादिजातियोंकी अपेक्षा करके अधिक देश जो द्रव्य, गुण, कर्म तीनोंमें रहती है इसवास्ते वह पर कहाती है और द्रव्यत्व, गुणत्व, कर्मत्व सत्ताकी अपेक्षा करके अल्पदेश जो द्रव्य, गुण, कर्म उनमेंही रहती है
इस वास्ते यह अपर कहाती है अर्थात् द्रव्यत्व द्रव्यमें ही रहती है गुणकर्ममें नहीं रहती और गुणत्व गुणमेही, कर्मत्व कर्ममेंही रहती है अन्य में नहीं इसीसे यह सत्तासे अपर हैं
और सत्ता सब जातियों की अपेक्षा करके पर है इसवास्ते सत्ता परही कहाती है अपर नहीं कहाती और द्रव्यत्वादिक जातियोंमें पर अपर दोनों प्रकारका व्यवहार होता है इसवास्ते उनमें परत्व अपरत्व रहता है
लेखक | अन्नम भट्ट – Annam Bhaṭṭa |
भाषा | हिन्दी, संस्कृत |
कुल पृष्ठ | 86 |
PDF साइज़ | 2.5 MB |
Category | साहित्य(Literature) |
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