श्री तंत्रालोक | Shri Tantraloka PDF In Hindi

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श्री तंत्रा लोक – Tantraloka Hindi Translation PDF Free Download

तन्त्रालोक के बारेमें

‘तन्त्रालोक’ भारतीय मनोषा के प्रतिमान श्रीमदभिनवगुप्तपादाचार्य को आकर’ रचना है, जिसमें तन्त्रशास्त्र सम्बन्धी समस्त विषयों के बारे में अपने समय में प्राप्त समस्त जानकारी का आकलन है और सिद्ध-साधकों की अनुभूतियों का निचोड़ है।

यह ग्रन्थ सर्वप्रथम कश्मीर-सीरीज में प्रकाशित हुआ था। हिन्दी व्याख्या के साथ इसका प्रकाशन पहली बार हो रहा है। यह ग्रन्थ इतना गढ़ है कि व्याख्या के बिना लगता नहीं।

इसके बारे में उचित हो कहा गया है कि तन्त्रालोक “अशेषागमोपनिषदालोक” है। यह उल्लेख स्वच्छन्दतन्त्र में है।

श्रीतन्त्रालोक, साधना की पराकाष्ठा को पार करने वाले सिद्ध साधकों को अनुभूतियों का निकष दर्शन है ।

अपने विश्वामित्र हिन्दी महाकाव्य के प्रणयन प्रसङ्ग में मैंने गायत्री की साधना की थो। उस रश्मिपरिवेश का स्पर्श भी मुझे हुआ था, जहाँ वाक्तत्त्वालोक मन्त्रद्रष्टा के लिये दर्शन का विषय बन जाता है।

ऋषयः मन्त्रद्रष्टारः’ के अनुसार ऋषियों ने मन्त्रों के दर्शन किये थे। उनका ऋषित्व साधना की उच्च भूमि पर ही प्रतिष्ठित होता है। ‘तदेनान् तपस्यमानान् स्वयं ब्रह्म अभ्यानषत् ।

तदेतेषाम् ऋषित्वं सिद्धम्’ को उक्ति के अनुसार ब्रह्म के अभ्यानर्षण को प्रक्रिया के क्रम में बोध का प्रकाश पीयूष उनके मस्तिष्क में चू पड़ता है और मन्त्र दर्शन हो जाता है।

इस साधना के क्रम में मुझे शरीरस्थ चक्रभेदन किया, कुण्डलिनी जागरण, अधः द्वादशान्त से ऊवं द्वादशान्त की यात्रा का अनुभव, अनुप्रवेश विधि, श्वास की उद्गम, मध्य और निर्गम विधियों का क्रियात्मक ज्ञान हो चुका था।

श्रीमन्महामाहेश्वर श्रीमदभिनवगुप्तपादाचार्य दशवीं ख्रीष्ट शताब्दी के द्वैपायन व्यास थे। व्यासदेव महर्षि थे। प्रज्ञा प्रकाशकात्म्य के प्रतीक पुरुष थे।

भारतीय सांस्कृतिक सुधा-प्रवाह के प्रवर्तक थे। आध्यात्मिकता के अधीश्वर अधीष्ट पुरुष थे। उनके विराट् व्यक्तित्व का आकलन विश्व के प्रज्ञापुरुष करते हैं।

श्रीमदभिनवगुप्त में प्रज्ञाप्रकाशक व्यक्तित्व के वैराज्यविभूषित वे सभी गुणधर्म थे, जो महर्षि व्यास थे। सारस्वत सुरसरिता के संवाहक दोनों शिखर पुरुष थे।

एक ने वैदिक सुधाधारा को महाप्रवाह प्रदान किया, तो दूसरे ने शैवतादात्म्यमयी त्रिक-कुल-क्रमकमनीया त्रिस्रोतसामृतमयी आगमिकोपनिषत्पीयूषपयस्विनी मोक्षमन्दाकिनी को प्रवाह प्रदान कर परमशिव-सामरस्य में समाहित कर तन्त्रालोकोपम ज्ञानगङ्गासागर को उजागर कर दिया।

इस परम्परा के स्वाध्याय का अवसर मुझे मिला। इसे मैं अपने जीवन का सौभाग्य मानता हूँ। प्रथम संस्करण के स्वात्म-विमर्श के द्वितीय अनुच्छेद में मैंने इस सौभाग्य सूत्रपात की चर्चा की है।

इसके लिये आराध्या की परानुकम्पामयी वात्सल्यसुधा से सिक्त और तृप्त होने के अवसर मुझे मिले। महामाहेश्वर के दिव्यतम दमकते दक्षिणामूर्ति रूप के स्वप्न में दर्शन,

साथ ही पार्श्वभाग में वज्रासन पर विराजमान माहेश्वर सिंहासन के समक्ष ही ओज-ऊर्जस्वल राजानक जयरथ के दर्शन तथा श्री ईश्वर आश्रम, गुप्ता, श्रीनगर, काश्मीर के महामाहेश्वर महामनीषी त्रिकदर्शनसुधा के आधार कलानिधि अधुनातन महामाहेश्वर लक्ष्मण जी

का दीक्षा वरदान मेरे दार्शनिक जीवन के वे शैव-सन्दर्भ है, जिनसे मेरा स्वात्म सन्दुब्ध है। परमात्मा के अनुग्रह अवधान के तले पले.

फले और त्रिक मानस में खिले इस शिष्य के ये तीनों महापुरुष परमेष्टि, परम और दीक्षक गुरुवर्य हैं। इनसे आज भी मैं सतत सम्पृक्त हूँ और प्रेरित हो रहा हूँ।

मुझे इस बात की परम प्रसन्नता है कि, श्रीतन्त्रालोक का स्वाध्याय सहज भाव हो रहा है। नश्वर संसार में अविनश्वर की जिज्ञासा के समाधान के लिये मनीषा के माननीय स्तर पर भी प्रयास और अध्यवसाय हो है,

श्रीतन्त्रालोक के प्रथम खण्ड के समाप्त हो जाने से यह स्वयं सिद्ध है। मुझे इस बात की और भी प्रसन्नता है, मेरे माध्यम से लिखे गये ‘नीर-क्षीर- विवेक भाष्य को मनीषी समाज ने अपनाया और यह सिद्ध कर दिया है

लेखक परमहंस मिश्रा-Paramhansa Mishra
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 653
Pdf साइज़106.3 MB
Categoryधार्मिक(Religious)

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श्री तंत्र लोक – abhinavagupta Tantraloka PDF Free Download

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