श्री स्वामी कथा सार – Shri Swami Katha Sar Pdf Free Download
स्वामी कथा सार
इस श्रुति के अनुसार परब्रह्म रसस्वरूप है। रसिक शेखर परब्रह्म दो रूपों में रस का आस्वादन करते हैं- रस अर्थात् प्रेम और ज्ञान के विषद रूप में, दूसरे प्रेम व ज्ञान के आश्रय रूप में।
वास्तव में इन दोनों रूपों में रसास्वादन ही रस आस्वादन और रसिक शेखरत्व की चरम सीमा है। प्रेम का विषय होकर रसास्वादन करते समय ब्रह्म ही बृज बिहारी गोपीवल्लम
श्री कृष्ण कन्हैया के रूप में प्रकट होते हैं, जान का विषय होकर वे ही कैलाशपति शंकर बन जाते हैं। प्रेम का आश्रय होकर रसास्वादन करते समय वे ही राधिका जी हो जाते हैं
तो ज्ञान वैराग्य और भक्ति के मिश्रित आश्रय रूप में रसास्वादन करते समय वे ब्रह्म ही श्री पीताम्बराजी की कान्ति और शिवत्व भाव धारण कर श्री स्वामीजी महाराज के स्वरूप में प्रकट होते हैं।
रसशेखर महेश्वर ही आश्रय-जातीय रस का आस्वादन करने के लिए मूल आश्रय विग्रह महाभाव स्वरूपा योगमाया श्री बगला भगवती की काति और लोक कल्याण भाव अङ्गीकृत कर
राष्ट्रगुरु श्री स्वामी जी के रूप में प्रादुर्भूत हुए। इस ग्रन्थ के आश्रय से ही प्रभु के चरणों का आश्रय प्राप्त हो सकता है, यही इस ग्रंथ का मुख्य महात्म्य है।
श्री स्वामी जी महाराज के विषय में यह बात कि वे कहाँ के निवासी थे, किस जाति के थे और उनका नाम क्या था इत्यादि बातों का निश्चित ज्ञान न तो उन्होंने स्वयं किसी को दिया
किसी को है ही किसी के पास इस विषय में यदि कोई जानकारी है तो वह भी अनुमानों के आधार पर ही है कुछ लोग जो उनके सान्निध्य में रहे और जिन्हें यह सब जानने की जिज्ञासा रही,
लेखक | शिवनाथ शर्मा-Shivnath Sharma |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 336 |
Pdf साइज़ | 64.1 MB |
Category | धार्मिक(Religious) |
श्री स्वामी कथा सार – Shri Swami Katha Sar Book/Pustak Pdf Free Download