सौर ऊर्जा की कहानी – Story of Solar Power Book/Pustak PDF Free Download

सूर्य उर्जा
सूर्य सभी जगह है। भारत में तो ही जगह धूप-ही-धूप है। सूरज में तपने और पसीने से लथपथ होने की बजाए हम सूर्य की गर्मी से खाना पका सकते हैं और घर में उजाला ला सकते हैं।
जमीन के 150 सेमी x 150 सेमी टुकड़े पर पड़ने वाली धूप की मात्रा ‘फुल’ पर जलती रसोई गैस के बराबर होती है। काश अगर हम इस धूप को एक बिन्दु पर इकट्ठा और केन्द्रित कर पाते। तो फिर हम बिना किसी ईंधन के खाना पका पाते!
भारत में अथाह धूप है। इसीलिए हमें ऊर्जा के इस स्वच्छ और शाश्वत स्रोत को पूरी गम्भीरता के साथ लेना चाहिए। देश के सबसे होशियार और जहीन लोगों को सौर ऊर्जा पर शोध करना चाहिए।
उन्हें दुनिया के सबसे सस्ते सोलर सेल्स और सबसे बेहतरीन सोलर-चूल्हे डिजाइन करने चाहिए। भारत में आज भी 40 करोड़ लोग बिजली के बिना जीने को मजबूर हैं।
सौर ऊर्जा में दूर-दराज स्थित हरेक भारतीय घर को रौशन करने की सम्भावना है। यह सचमुच में सत्ता का विकेन्द्रीकरण और लोगों का सच्चा सशक्तीकरण होगा।
तब सही मायने में गांधीजी का लोगों के हाथों में सत्ता का नारा साकार होगा। पवन ऊर्जा द्वारा हमने एक सही शुरुआत की है।
एक निजी कम्पनी सुझलोन ने पिछले कुछ सालों में 6000 मेगावॉट की प्रदूषण मुक्त विद्युत क्षमता स्थापित की है।
यह सब इसलिए हुआ क्योंकि भारत सरकार ने पवन ऊर्जा सम्बंधी सही नीतियां बनाईं और निजी कम्पनियों को टैक्स आदि में छूट दी। पवन ऊर्जा की कहानी को सौर ऊर्जा के साथ भी दोहराने की सख्त जरूरत है।
बहुत से मित्रों के सहयोग के कारण ही इस पुस्तक का लिखना सम्भव हो पाया है। डा. अनर्बिन हाजरा और अनीश मोकाशी ने मुझे सौर ऊर्जा शोध के लिए कई महत्वपूर्ण पुस्तकें भेजीं।
प्रिया कामथ ने पुस्तक के शुरुआती चित्र बनाकर उसका आधार रचा। जब-जब सौर ऊर्जा की पुस्तक पर बादल मंडराए तब-तब मेरी सहकर्मी डा. विदुला महिस्कर ने कहीं से सूरज की किरणें ढूँढकर उन बादलों को दूर किया।
मैं नीला शर्माजी का आभारी हूँ जिन्होंने इस पुस्तक की युवा डिजाइनर और चित्रकार रेशमा बर्वे को खोजा रेशमा ने अपने संवेदनशील चित्रों से किताब में जान फूँकी है।
मैं आशा करता हूँ कि बच्चे इस किताब को रुचि से पढ़ेंगे और उनका जीवन भी सूर्य की किरणों से रोशन होगा।
अपने मित्रों में मैं विशेष रूप से डा. अर्नब भट्टाचार्य, डा. सम्पत कुमार, अलभ्य सिंह, जोइस, नायला कोइल्हो, पवन अयनगार और राजकिशोर का आभारी हूँ।
उन्होंने पाण्डुलिपि पढ़कर न केवल त्रुटियाँ सुझाई पर बेहतरीन सुझाव भी दिए।
अंत में मैं आयुका और नवाजीबाई रतन टाटा ट्रस्ट का तहेदिल से आभार व्यक्त करना चाहता हूँ जिन्होंने इस प्रकल्प के लिए सुविधाएँ और आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई।
लेखक | अरविंद गुप्ता-Arvind Gupta |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 53 |
PDF साइज़ | 18 MB |
Category | Story |
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