जैन पूजा संग्रह | Jain Pooja Sangrah PDF In Marathi

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जैन पूजा संग्रह – Jain Pooja Sangrah PDF Free Download

जैन पूजा संग्रह

(दरसणके लोभी नैना दर० ए चाल हो पूजनके लोभी सेया, लोभी० हो पू० ॥ पूजनकु जिला नित २ चाहे, को गुरु वचन तज देना हो पु०॥१॥ या पूजा समिति)

करणी, गुरु वचन सुन लेना हो। गिरी वर गड गिरनार विराजे, रामकुमार सुख देना ॥ हो० ॥ २॥ वस्त्र युगल की पूजा करिये, तन मन उज्जल वेना ॥ हो॥

मिथ्या तम सब दूर निवारी, सुमति रमण संग रेहना ॥ हो॥३॥ सरधा केसरिया रंग वाले, जिन श्रम रंग लेना॥ हो० ॥ विमल गिरी अष्टा पद पूजो, आदीसर सुख देना ॥ हो० ॥१॥

सिखर समेत वडो जगमाहे, वीस प्रभु हित देना ॥ हो ॥ आधी गिरी की महिमा अद्भुत, मानो हमारा केना ॥ हो ० ॥ ५ ॥ रथयात्रा तो सही जोवो ए चाल) तुम करो रे सुमतिको संग, रंगीला सेवो तो सही, सेवो तो सही। म्हारा चेतन, आवो तो सही ॥

सु०॥ मुनिवरकी करणी हितकारिणी, लेबो तो सही। मिथ्या तम करणी दूर हियामें, देखो तो सही ॥ दे० म० स० ॥ १ ॥ [आतां कर निज गुण धरणि, देवो तो सही ॥

तू क्यों रे हमारो मान सुज्ञानी,बे वो तो सही ॥ वे० म्हा० तु० ॥ २ ॥ समकित शुद्ध करणी भाषा हरणी, लेवो तो सही ॥ ब्रोपदी जिम जिन राज भगतिकर, सेवो तो सही ॥ म्हा० ०॥३॥

राग कतरणी जग जस भरणी, जियो तो सही ॥ श्री कल्कि गुण होय भ्रम सब, धोखा तो सही ॥ ० मा० ०॥४॥ सब मन हरणी गुणमणि धरणी, बाबो तो सही ॥ कूड कपट कर दूर हियामें, लावो तो सही ॥

ला० म्हा० तु० ॥ ४ ॥ आावू गिरिनो पूजन करणी, ध्यावे तो सही। तनमन प्रीत लगाय जिंद गण, गावो तो सही ॥ म्हा ० ०॥६॥

अनुपम सुख करणी थघ हरणी भावो तो सही॥ तुम करो रे सुगंधी पूजा, भविक पावो तो सही पा० म्हा० तु ॥७॥ इम गुण वरणी पूजन करणी, गावो तो सही। सुमति रंगीला सेण हियामें लायो तो सही।

ला० म्हा० तु० ॥ ८ ॥ ॐ ह्रीं आावृगिरीद्वाय तीर्थ सिरो० श्री आदेश्वर सुगंधिं ढोक- चामिः ॥ इति गुलाब जल पूजा ॥ १० ॥

तथा इस पुस्तक में महान् उपकारी बाचक गणि उपाध्यायादि छानेक पद धारक कविवर समय सुन्दर जीकी बनाई हुई चौवीसी इस पुस्तक के अन्तमें प्रकाशित की गई है यह आगे प्रकाशित नही हुई थी।

इस लिये श्री जिन कृपाचन्द्र सूरिहान भंडार बीकानेर – से लेकर प्रकाशित की गई है। और भी अच्छे उपयोगी स्तवन दिये गये हैं।

इस पुस्तक में पूजा विधि चैत्यवदन विधि आदि आवश्य कीय विषयोंका छपानेका विचार था लेकिन कई कारण वश नहीं कर सका हू आगामी द्वितीया वृचिमें दिया जायगा ।

नमी सरतर गच्छकी पूजाए बहुत कम प्रकाशित हुई हैं सो मी मूल्य बहुत होने के कारण साधारण आदमी लाभ नही उठा सकते थे।

इस असुमीते को दूर करनेके लिये खरतर गच्छ भूपण प्रात स्मरणीय चारित्र चड़ामणि श्री श्री १००८ श्री जिन कृपा चन्द्र सुरीश्वजीने कुछ ज्यादा आवश्यकीय पूजाओं का समा करके छपानेका कहा।

उन्होंके उपदेशानुसार प्रर्वतक मुनिराज श्र सुरक्षागर जी की प्रेरणा से यह प्रन्थ प्रकाशित किया गया है।

इस पुस्तके प्रकाशन करनेमे फई असुविधायें थीं लेकि श्रीमान् तिलक विजय जी महाराजने कृपाकरके इसके सशोध चार का मार अपने ऊपर लिया इसलिये उनको फोटिश धन्यवा दिये बिना मैं नहीं रह सकता।

इत्यादिका दिग्दर्शन कराते हुए जीवनको सफल बनाने तथा सुखी बनानेके सहज मार्ग बतलाये हैं।

जुदे जुड़े परिच्छेदोमं क्रमसे जीवन निर्माण, स्त्री और पुरुष, स्त्री संस्कार, सालु और वह, विधवाओंको परिस्थिति, संममता, चारिव और अध्या- त्मिक जीवन, इत्यादि गृहस्थके उपयोगी विषयोंपर युक्ति ‘दृष्टान्त पूर्वक प्रकाश डाला गया है, यह पुस्तक जितना पुरुषोंके लिये उपयोगी है उससे भी कुछ अधिक दियोंके लिये उपयोगी है। पक्की जिल्द सहित मूल्य मात्र १)

1 जैन साहित्यमांविकार थवाथी थयेली हानि ‘यह पुस्तक पंडित वेचरदासजोकी प्रौड लेखनी द्वारा ऐतिहा- ‘सिक दृष्टिसे गुर्जर गिरा लिखा गया है।

श्रोमहावीर प्रभुं बाद किस किस समय जैन साहित्यमें किस किस प्रकारका परिवर्तन हुआ और उस विकृत परिवर्तनसे क्या दानि हुई यह बात सूत्रोंके प्रमाण द्वारा बड़ी ही मार्मिकता से लिखो गई है। मूल्य मात्र १)

लेखक तिळक विजय – Tilak Vijay
भाषामराठी
एकूण पृष्ठे 4369
Pdf साइज़10 MB
Categoryधार्मिक(Religious)

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