सामाजिक मानवशास्त्र | Social Anthropology PDF In Hindi

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सामाजिक मानवशास्त्र की प्रकृति – Definition and Objectives of Social Anthropology PDF Free Download

समाजशास्त्र का अर्थ एवं परिप्रेक्ष्य

प्रस्तावना: समाजशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है जिसका मुख्य उद्देश्य मानव समाज के सामाजिक संरचना का आध्ययन करना है। सामाजिक संबंधों के ताने-बाने से बने समाज कि एक अपनी अलग पहचान है।

प्रत्येक समाज का अपना अपना इतिहास संस्कृति, रीति-रिवाज, संस्कार, प्रतिमान व मूल्य होते है जिसका निर्माण मानव समुदाय मिलजुलकर एक दूसरे के परस्पर सहयोग से करते हैं।

इस दृष्टिकोण से प्रत्येक समाज के कुछ आधारभूत समूह होते है। जिसकी उस समाज के निर्माण में एक रचनात्मक भूमिका होती है।

समाजशास्त्र उन सभी सामाजिक सम्बन्धों, मानव समूहों के बीच परस्पर सहयोग व संघर्ष का क्रमबद्ध अध्ययन करता है जिस प्रकार अन्य सामाजिक विद्वान जैसे अर्थशास्त्र, भूगोल, इतिहास, मनोविज्ञान, राजनीतिविज्ञान आदि अपने विषयों का एक खास अध्ययन विधि के द्वारा विधिवत अध्ययन करता है।

इसलिए इसे विज्ञान का दर्जा भी दिया जाता है। यहाँ सामाजिक संदर्भ में मनुष्य के व्यवहार का उनके बीच के संबंधों का वैज्ञानिक विश्लेषण करने की चेष्टा की जाती है।

समाजशास्त्रीय अध्ययन की परंपरा यूरोप में लगभग 200 वर्ष पहले ही शुरू हो पायी। इसके पहले जो भी अध्ययन हुए उसमें समाजशास्त्रीय तरीके द्वारा अध्ययन नहीं हुए परंतु फिर भी उन अध्ययनों में समाज को केन्द्र बनाकर सामाजिक परिस्थितियों तथा मानवीय व्यवहार का अध्ययन किया गया।

समाजशास्त्र के आरंभिक चरण की व्याख्या जब कभी होती है तो उसमें फांस के प्रमुख विचारक सेंट साइमन अगस्त काटे तथा दुर्खिम का नाम बड़े आदर और सम्मान से लिया जाता है।

सेंट साइमन को फ्रांस के एक प्रमुख सक्रीय मुद्धिजीवी की कोटी समाजशास्त्र के आरंभिक चरण की व्याख्या जब कमी होती है तो उसमें फ्रांस के प्रमुख विचारक सेंट साइमन अगस्त का तथा दुर्खिम का नाम बड़े आदर और सम्मान से लिया जाता है।

सेंट साइमन को फ्रांस के एक प्रमुख सक्रीय बुद्धिजीवी की कोटी में गिना जाता है।

उन्होंने समाजशास्त्र को एक नये आधार दिशा प्रदान करने के लिए अगस्त काटे के साथ मिलकर कुछ पुस्तकें लिखी अगस्त का उन्हें अपना गुरु मानते थे अगस्त को समाजशास्त्र का पिता कहा जाता है।

उन्होंने ही सर्वप्रथम इस शब्द का प्रयोग अपने पुस्तक पाजिटिव फिलान्की (1838) के चौथे खंड में किया और उनके द्वारा इस को लोकप्रियता मिली।

आज समाजशास्त्र का अध्ययन क्षेत्र काफी विकसित हुआ है परंतु 19वीं शताब्दी के उत्तराद्ध में इसे एक रूढ़िवादी दृष्टिकोण की संज्ञा दी गयी। यद्यपि इसे रूढ़िवादी विषय के रूप में देखा गया परंतु इसे एक वैज्ञानिक विषय के रूप में प्रतिष्ठित करने का श्रेय भी अगस्त कान्ट (1798-1857) को दी जाती है।

जहाँ तक इस विषय के शाब्दिक अर्थ का प्रश्न है अंग्रेजी का यह शब्द (Sociology), सोसियस (Socious) तथा ग्रीक शब्द (Logos) लोगोस शब्द से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ है समाज का अध्ययन सोसियस शब्द का अर्थ समाज तथा लोगोस का अर्थ है.

” ज्ञान व अध्ययन इस प्रकार समाजशास्त्र का शाब्दिक अर्थ हुआ समाज का अध्ययन करने वाला विषय जिसमें सामाजिक क्रियाओं के अध्ययन को प्रधानता दी जाती है। तकनीकी दृष्टिकोण से समाजशास्त्र का अर्थ प्राय सामाजिक संरचना के विश्लेषण, सामाजिक संबंधों के जाल, सामाजिक तथ्यों के अध्ययन सामाजिक अंतकिया के समझने से किया जाता है।”

यहाँ मनुष्य के व्यवहार का सामाजिक संदर्भ की पष्ठभूमि में वैज्ञानिक तरीके द्वारा अध्ययन का प्रयास किया जाता है। समाजशास्त्रीय अध्ययन विधि कि विशेषता उसके वैज्ञानिक व वस्तुनिष्ठ दृष्टिकोण से भी जुड़ी हुई है जिसकी विस्तार से चर्चा समाजशास्त्र के प्रकृति के विश्लेषण के साथ ही किया जायेगा।

यहाँ पर यह समझ लेना ही आवश्यक होगा कि समाजशास्त्र विषय में समाज में रहने वाले व्यक्ति के बीच के संबंध एक दूसरे के बीच परस्पर सहयोग, प्रतिस्पर्धा, संघर्ष के साथ-साथ मनुष्य का समूह के साथ संबंध समूह का व्यक्ति के साथ संबंध और एक समूह का दूसरे समूह के व्यक्ति के साथ संबंध का अध्ययन विधिवत और क्रमबद्ध तरीके से किया जाता.

लेखक
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 120
PDF साइज़50MB
CategoryEducation
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