श्री उड़िया बाबाजी के उपदेश | Shri Udiya Baba Ji Ke Updesh Book/Pustak Pdf Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
किन्तु इसी समय थापके वित्त में ऐसे विचार आने लगे-‘इस अनुष्ठान से क्या होगा ? एक मात्र मिल भी गया तो क्या इस उससे संसार के सभी प्राणियों का दुख दूर कर सकते हैं?
यह केवल हमारी विडम्बना ही है। संसार तो ऐसा ही चलता रहता है। हमारे पास से अन्न लेने के लिये भी मला कितने लोग आयेंगे ? और हम भी क्या सर्वदा जीवित रहेंगे ?
इसलिये इस संकल्प को छोड़ना ही अच्छा है। इन्हीं दिनों पूर्ण गिरि नाम के एक महात्मा से आपने भगवान् शंकराचार्य की विवेक-चूड़ामणि भी सुनी। उसने आपके विचार को बदलने में और भी सहायता की | अतः आपने वह अनुष्ठान बीच ही में छोड़ दिया।
परन्तु सिद्धि प्राप्त करने की ओर से आपका चि पूर्णतया उदासीन नहीं हुआ। अतः गोहाटी से काशी जाने का बिप्यार किया और कुछ दिन मयूरभंज में ठहरकर आप काशी पहुँचे ।
इस प्रान्त में आपकी यह प्रथम यात्रा थी। यहाँ न तो थापका कोई परिचित था और न गांठ में कोई पैसा ही था। इधर की भाषा भी समझते नहीं थे और न अपनी बात ही किसी को समझा सकते थे।
किन्तु आपको विश्वास था कि यह माता अन्नपूर्णा को पुरी है, यह मुझे भूखा नहीं रखेगी। अतः आप अन्नपूर्ण और विश्वनाथ के दर्शन कर मणिकर्णिका घाट पर एक स्नाली गुफा में बैठ गये
यह निश्चय कर लिया कि मैं किसी से कुछ भी मॉगू गा नहीं । आपको उसी गुफा में तीन रात और तीन दिन बीत गये । शौच और लघुशङ्का के लिये भी आप वहाँ से नहीं उठे । परन्तु भोजनादि के विषय में आपसे किसी ने कुछ भी नहीं पूछा।
आखिर, चौथे दिन आप स्नान करने के लिये गुफा से बाहर आये। उसी समय वहाँ एक स्त्री आयी। उसने आपको पंचामृत पान कराया। फिर भी विश्वनाथजी के दर्शनों के लिये गये तो वहाँ एक मादाय ने आपको अनार दिया।
लेखक | स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती-Swami Akhandanand Saraswati |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 497 |
Pdf साइज़ | 15.7 MB |
Category | प्रेरक(Inspirational) |
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