शिव संहिता | Shiv Samhita PDF In Hindi

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शिव संहिता हिंदी में – Shiv Samhita Pdf Free Download

शिव संहिता गीता प्रेस

टीका-श्रीमहादेवजी कहते हैं कि सप शास्त्रको देखके भोर वारम्वार विचारके यह निश्चित हुआ कि एक यह योगशास्त्र उत्तम परममत है, अर्थात् यह सबसे उत्तम है

तात्पर्य यह है कि ऐसे मतको छोडके जिसकी प्रशंसा ईश्वर अपने मुखारवि दुसे करते हैं और जिसके ग्रहण करनेसे ब्रह्म करामलकषत् जान पडता है,

मनुष्य बिक्षिप्तके तरह इधर उधर चित्तको दौडाते हैं और बहुत लोग यह विचारते हैं कि यह वडा कठिन है आश्चर्यकी घात है कि मनुष्यशरीरसे जब

ऐसा उत्तम श्रम न होगा तो जान पडता है कि रोगादिकसे शरीरके नाश होनेसे पीछे फिर जब पशुका जन्म होगा तब कुछ ईश्वरके जाननेमें श्रम करेंगे

टीका-कोई कोई धुद्धिमाच् गुप्त शास्त्रके जाननेमें – तत्पर अर्थात् गठदर्शी बहुत आत्मा नित्य और सर्व व्यापक कहते हैं, बहुत प्रत्यक्षवादी यह कहते हैं कि जो वस्तु प्रत्यक्ष देखने में आता है वही सत्य है,

और कुछ नहीं है जिनकी बुद्धि स्वर्गादिकके न मानने में निश्चित है ज्ञानप्रवाह इत्यन्ये शून्यं के चित्र विदुः ॥ दावेव तत्त्वं मन्यन्तेऽपरे प्रकृतिपूरुषौ ॥ १२ ॥

टीका-कोई मनुष्य कहते हैं कि सिवाय ज्ञानपाराके और कुछ नहीं है, जो वस्तु संसारमें वर्तमान देखने या सुननमें आती है या किसी प्रकारसे उसका होना निश्चय होता है वह सब ज्ञानही है

कोई पुरुष यही जानता है कि सिवाय शून्यके और कुछ नहीं है इसीतरह कोई मनुष्य प्रकृति पुरुष दोहींको तत्त्व मानते हैं ॥ १२॥

मित्र मति अपने मायके को मानदेय मोर करते हैं कोई कहते हैं कि ईग्र नहीं इसीवर बहुत लोग कहते हैं कि यह संसार विना हैंग्रके नहीं है अर्थात ईश्वर ही से है यही आश्रय जानते हैं अपनी युक्तिसे बहुत २ भेद कहते और उसमें स्थिरतासे तत्पर रहते हैं॥ १३ ॥ ११ ॥

एते चान्ये च मुनयः संज्ञामेदाः थग्विधाः॥शास्त्रेषु कथिवा ह्येते लो कव्यामोइकारकाः॥ १५॥ एतद्धि बादशीलानां मतं वक्तुं न शक्यते ॥ भ्रमन्त्यस्मिन जनाः सर्वे मुक्तिमा- र्गबहिष्कृताः॥ १६॥

टीका-ऐसे बहुत मुनिलोगोंने नाना प्रकारके मत शास्त्रमें स्थापन किये हैं, ससंसारके मोहअममें पड़- नेका हेतु है अर्थात् शास्त्रमें बहुत प्रकारके मत देखन |

लेखक गोस्वामी रामचरणपुरी- Goswami Ramcharan Puri
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 212
Pdf साइज़5.6 MB
Categoryधार्मिक(Religious)

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