शिक्षाप्रद कहानी – Shikshaprad Gyarah Kahani Book Pdf Free Download

शिक्षाप्रद ग्यारह कहानियां
‘जो अनन्यप्रेमी भक्तजन मुझ परमेश्वरको निरन्तर चिन्तन करते हुए निष्कामभावसे भजते हैं, उन नित्य-निरन्तर मेरा चिन्तन करनेवाले पुरुषोका योगक्षेम मैं स्वय प्राप्त कर देता हूँ ।’
कोई-कोई इस श्लोकका सर्वथा सकाम और निवृत्तिपरक अर्थ करते हैं और संसार यात्रा की कुछ भी चिन्ता न कर केवल भगवान्पर निर्भर रहते हुए भजन करना ही उचित मानते हैं ।
इसपर वे निम्नलिखित दृष्टान्त दिया करते हैं ।एक ईश्वरभक्त गीताभ्यासी निवृत्तिप्रिय ब्राह्मण थे । वे अर्थको समझते हुए समस्त गीताका बार-बार पाठ करने एवं भगवान्के नामका जप तथा उनके
स्वरूपका ध्यान करनेमे ही अपना सारा समय व्यतीत करते थे । वे एकमात्र भगवान्पर ही निर्भर थे। जीविकाकी कौन कहे, वे अपने खाने पीने की भी परवाह नहीं करते थे । उनके माता-पिता परलोक सिधार चुके थे ।
वे तीन भाई थे । तीनों ही विवाहित थे । वे सबसे बड़े थे और दो भाई छोटे थे । दोनों छोटे भाई हो पुरोहितवृत्तिके द्वारा गृहस्थीका सारा काम चलाया करते थे । एक दिनकी बात है,
छोटे भाइयोने बड़े भाईसे कहा-‘आप कुछ इसलिये ‘भाई। हमलोगोको तो बस, अपने भगवान्पर ही निर्भर रहना चाहिये । वे ब्रह्मासे लेकर क्षुट्रातिक्षुद्र जीव परमाणुतक-सभीका भरण-पोषण करते हैं ।
फिर खो उनके भरोसे रहकर नित्य-निरन्तर उन्हींका स्मरण-चिन्तन करता है, उसका योगक्षेम चलानेके लिये तो वे वचनबद्ध ही हैं। हमलोगोको तो नित्य गीताका अध्ययनाध्यापन और निरन्तर
अद्धी-प्रेमपूर्वक भगवान का भजन-स्मरण ही करना चाहिये ।दोनो भाइयोने कहा-‘माई साहेब । आपका कहना तो ठोक है, पर जीविकाके लिये कुछ भी चेष्टा किये बिना भगवान् किसीको हमलोग कमाकर लाते हैं
तब भरका काम चलता है। आप केवल पडे-पडे श्लोक रटना और बड़ी-बड़ी बाते बनाना जानते हैं । आपको पता ही नहीं, हमलोग कितना परिश्रम करके कुछ जुटा पाते हैं ।
लेखक | हनुमान प्रसाद-Hanuman Prasad |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 113 |
Pdf साइज़ | 3.8 MB |
Category | कहानियाँ(Story) |
शिक्षाप्रद ग्यारह कहानियां – Shikshaprad Gyarah Kahaniya Book/Pustak Pdf Free Download