संत रविदास के विचार – Sant Ravidas Book/Pustak Pdf Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
वैदिक कर्मकाण क प्रतिचिया-वरूप दुसरी और एक और नई निकारवारा चायत पर जिसमें वेदों की अपीरषेपता पर भी संदेह किया। इसमें जैन और बौद्ध मत प्रमुख थे । वें लोर आह्मथों] की परम्परागत सत्ता और रिया के विरुद्ध में और जातिवाद को नहीं मानते थे।
इसका कारण वैदिक काल से चला आया ब्राह्मण सतिय बरोक्ता का संघर्ष भी हो सकता है। परन्तु प्रमुख कारण वैदिक मंत्रों के भातों का सुप्त हो जाना और जनसाधारण की पहुंच से दूर हो जाना था जिनके कैवल पाठ करने से ही पुष्य लाभ होने आया था
जैन और बोडों का दर्शन केवल आवारविनार पर आधारित भा, जिसका उस समय बहुत हास हो चुका था। उनका दर्शन न्याय हारिक भी था। उन्होंने संस्कृत को छोड़कर जनसामान्य की भाषा पाली में धर्म प्रचार प्रारंभ किया था । यद्यपि बौद्ध धर्म शान्ति प्रिय था.
तचापि उसके कारण पाहाणों के आकार को चोट लगी पी और बौद्धों की उदारता के आवजूद वे सम्मात को कमी का अनुभव करते रहे थे, क्योंकि जो उस पद उन्हें हिन्दू समाज में प्राप्त था र नोड धर्म में नहीं हो सकता था ।
जैसे पी बौड धर्म का द्वान हुआ याहागों ने सत्ता संभाल लो चिन्हा और बुद्धि तो उनके पास परम्परागत यो हो। बुद्ध भगवान के पाश्चात् उसका संगठन दो भागों में विभाजित हो गया एक महायान और दूसना होनमान । महायान बौद्ध धर्म को समाज के निकट तो लाया, परन्तु त्याला विचार मूल्य था।
हीन्यान में व्यक्तिवाद का प्रचार किया जो आगे चलकर बहुत से संगठनों में अपतता हुमा रिक्त होता चला गया। ये संगठन अन्तरः हिन्दू धर्म के सम्प्रदाय बनकर रह गये और उसी में तीन हो गये।
लेखक | इंद्रराज सिंह-Idraraj Singh |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 165 |
Pdf साइज़ | 16.2 MB |
Category | Biography |
संत रविदास जी की पोथी – Sant Ravidas Book/Pustak Pdf Free Download