सांख्यिकी के सिद्धांत | Principle Of Statistics PDF In Hindi

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सांख्यिकी के सिद्धांत – Principle Of Statistics Pdf Free Download

सांख्यिकी के सिद्धांत

सामग्री अनावश्यकीय है, इसलिए शेती जा सकती है। यह निश्चित हो जाने के अनुसंधान में अपिक परिजुदवा (nccuracy) या नाती है। इसके साथ-साथ अनुसंधान का क्षेत्र जानना भी आवश्यक है ।

प्रारम्भ करने से पूर्व यह निश्चित कर लेना चाहिये कि दौहुईसमस्या के हस के लिए यहाँ तक समकों का उपयोग किया जा सकता है। जो भी सामग्री सहीत की जाती है उसका पूर्ण होना आयश्यक है।

पर अगर पूर्णता पर ही विचार किया जाय तो यह इतनी विस्तृत हो जायगी कि विषय के बारे में भ्रान्ति हो जाय और संग्रहीत सामग्री, समस्या का हल निकालने के लिए अनुपयुक्त हो जाय ।

अनुसंधान का चेत्र निश्चित करते समय साननी-पर्याप्तता, सामग्री उपयोगिता और समय एवं व्यय पर विचार करना पड़ता है

अनुसंधान का आयोजन (Planning of the Investigation)समस्या का उद्देश्य और क्षेत्र निश्चित करने के बाद अनुसंधान का आयोजन किया जाता है अर्थात् यह निश्चित किया जाता है कि सामग्री-संग्रहन किस प्रकार किया जायगा।

प्रायोजक सर्वप्रथम यह निश्चित करता है कि दी हुई समस्या के लिए तत्सम्दन्दी समृप्र (uaiverse) के प्रत्येक सदस्य के बारे में अलग-अलग जानकारी मात करनी है या इस समय के प्रतिनिधियों को समूह के रूप में बुन कर इन समूहों के प्रत्येक सदस्य के बारे में जानकर,

निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं। यदि यह यह समझता है कि प्रत्येक सदस्य के बारे में अलग-अलग जानना आवश्यक है तो कहा जाता है कि अनुसंधान संगणना अनुसंधान (census inquiry) के अनुसार किया गया है।

इसका उपयोग बहुत कम होता है, पर जन-गगाना इस प्रकार के अनुसंधान का उदाहरण है ।

इसके विपरीत कुछ समूहों को प्रतिनिधि मान कर अनुसंधान करने की रीति को निदर्शन-चनुसंबान (3ample-enquirg) कहते हैं।

अगर किसी अनुसंधान में परिशुद्धता (३८८५४४८ए) को अधिक महत्व देना हो तो प्रत्यक्ष-अनुसंघान (396८८ ४ए८४४2५४07 ) किया जाता है।

प्रलक्षअनुसंधान के लिए यह आवश्यक है कि वस्तु-स्थिति का अध्ययन निरीक्षण करके किया जाता है ओर इस प्रकार समस्या-सम्ब्रन्धी जानकारी प्रत्यक्षु रूप से उससे संबंधित रहती है |

पर इस रीति का उपयोग केवल उन्हीं अनुसंधानों तक सीमित है जहाँ गहन ((0:2005876) अध्ययन करना हो श्रोर जहाँ विषय-वस्तु को ठीक रूप से सांख्यिकी द्वारा जाना जा सके |

अगर किसी समस्या का विस्तृत (८४८४8ए८) अध्ययन करना हो तो यह प्रायः सम्भव नहीं हो सकता कि सामग्री-संग्रहण प्रत्यक्ष-अनुसंघान की रीति से किया जाय और न ही इसका उपयोग ऐसी सामग्री-संग्रहण में किया जा सकता है जहाँ विषय-वस्तु को पूरी जानकारी सांख्यिकीय रीतियों द्वारा नहीं की जा सकती ।

ऐसी दशाओं में श्रति (8०9:59ए ) या विषय-वस्तु पर अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव डालने वाले ओर आंकिक रूप से मापनीय तथ्यों की सहायता से सामग्री-संग्रहण किया जाता है,

क्योंकि इसमे अध्ययन वस्तु स्थिति का निरीक्षण करके नहीं होता बल्कि ऐसे लोगों की सहायता से होता है जो उससे घनिष्ठ रूप से परिचित माने जा सकते है या ऐसे तथ्यों की सहायता से होता है

जो उससे अप्रत्यक्ष रूप से सम्बन्धित है, इसलिए इस ग्रकार के अनुसंधान को अप्रत्यक्ष अनुसंधान (70977०८: 4740८४४ए) कहा जाता है| यह सम्भव है कि एक ही सर्वेक्षण (5प्राए०ए) का कुछ माग प्रत्यक्ष अ्रनुसंघान की रीति से किया जाय ओर शेष भाग अप्रत्यक्ष अनुसंघान की रीति से |

इसको निश्चित कर लेने पर यह तय करना पड़ता है कि प्रश्नावली को सीधे समग्न के सदस्यों के पास भेजकर उनके उत्तर प्राप्त किए जाये या अन्वेषकों (0ए०४08270:5 ) को सहायता को जाय |

पहली स्थिति में समग्र के सदस्य स्वयं इच्छित उत्तर दे देते हैं। पर इसके लिए. यह आवश्यक है

लेखक देवकीनंदन-Devkinandan
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 538
Pdf साइज़30.1 MB
Categoryसाहित्य(Literature)

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