संपूर्ण गांधी वांग्मय | Gandhi Speech Collection PDF In Hindi

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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय – Sampuran Gandhi Vangmay Pdf Free Download

संपूर्ण गांधी वांग्मय

यही हाल हो तो कोई परवाह नहीं। शान्तिनिकेतन में चित्रकला किस तह दिखाता है, यह मैं नहीं जानता। किन्नू भारत में इस समय यह कला सीखनेके लिए इससे ज्यादा अच्छा कोई दूसरा स्थान नहीं है।

साथ ही यह भी है कि चौढके उदाहरण का अनुसरण करते हुए कोई सा भी ऐसा ही करना चाहे तो हम इसके लिए बहुत जल्वी राजी नहीं हो सकते।

धीरू इस कला के प्रति कई वर्षोंका अनु राग है, उसका मन निर्मित है | दूसरी तरह भी योग्य मालूम होता है, उसमें आवमके नियमों का पालन करनेकी शक्ति और इच्छा है, फिर वह आश्रम में कई वसि है।

यह और ऐसा ही बहुत-कुछ उसके पक्षमें कहा जा सकता है उमके विषयमें यदि मेरी यह धारणा गलत हो तो उसे नहीं भेजा जा सकता और उसके चरित्रके विषय में यदि थोड़ी भी शंका हो तो उसे नहीं भेजा जा सकता।

उसे तभी भेजा जा सकता है जब बह यह सब समझता हो, उसके नाम अपने पत्र में मैने जो दाते रखी है उन्हें शानपूर्वक स्वीकार करता हो और तुम सब लोगोंको उसकी प्रतिज्ञा पर विश्वास हो।

उस स्थितिमें फिर उसे भेजना हमारा धर्म भी होगा, ऐसा मुझे लगता है।

अब इस दृष्टि से तुम सब इस विषयपर विचार करना और निर्णय करना। इस चर्चामें नरहरिको अपने साथ रखना। . . की घटनाके बाद हमें सावधान दना है।

भयभीत व्यक्तिको हर जगह भय के कारण दिखाई देता है यदि धीह मनमें विषय-वासना का सेवन करता होगा |

यदि वह विकारोंका शिकार है तो शायद चित्रकला उसके लिए भयंकर वस्तु साबित होगी ये कलाएं मोहक तो होती ही है। जगत् ही मोहक है।

मोहक जगत्को कला मोहक हो, इसमें आश्चर्षकी कोई बात नहीं है। किन्तु जिस प्रकार जगत् मोहक होते हुए भी मनुष्यको मोक्ष-प्राप्ति का अवसर देता है और ईश्वरकी महिमाके प्रदर्शनके लिए क्षेत्र प्रस्तुत |

गत महीनेकी २३ तारीखके आपके उस पत्रके लिए धन्यवाद जिसके साथ ब्रिटिश भारतीय संघकी ओरसे पूना समझौतेके बारेमें दिया गया ज्ञापन नत्थी है।

बंगालका मत जाननेके लिए में इस सम्बन्धमें मित्रोंके साथ खानगी पत्र-व्यवहार करता रहा हूँ। मेरा अपना मत तो विलकुछ स्पष्ट है।

अस्पृश्यों या दलित वर्गोंके लिए आरक्षित किये जानेवाले स्थानोंकी संख्यामें मेरी कोई दिलचस्पी नहीं थी।

एक बार जब आरक्षणका सिद्धान्त स्वीकार कर लिया गया, तब मेरी दृष्टि यह हो गईं कि उन्हें जितने भी अधिक स्थान दिये जायें, स्वयं उनके लिए और हिन्दू धर्मके लिए, और इसलिए सारे भारतके लिए, हर तरहसे उतना ही अच्छा रहेगा।

अगर अस्पुद्य लोग हमारे अपने ही हैं, तो उनके छिए स्थानोंको आरक्षित करनेमें तनिक भी संकोच न रखनेसे अच्छा और क्या हो सकता है? मेरे विचारसे भेदभावकों मिटानेका

१, पुनश्ववाला अंश इन द्‌ रोडो ऑफ द महांत्मामें ही है और वहाँ उसमें यह भी कहा गया है कि यह अंश हिन्दीमें था। यहाँ उद्धुत अंश उक्त पुस्तकके हिन्दी संस्करण गांधीजी की छत्रछाया में से लिया गया है और सम्भवत: गांधीजी की ही हिन्दीमें है।

२. यह ज्ञापन सर विपिनविहारी घोषकी अध्यक्षतामें नियुक्त एक उप-समितिने तेथार किया था। यह उप-समिति ११ जनवरी, १९३३ को बिश्शि भारतीय संघ (ब्रिव्शि इंडियन एसोसिएशन ) के कक्षमें हुए स्वेदलीय बंगाली हिन्दू सम्मेलन द्वारा नियुक्त की गईं थी।

ज्ञापनमें अन्य बातोंके अछावा यह कहा गया था: “इस प्रकार यह स्पष्ट हों जायेगा कि बंगालके सवणे हिन्दुओंमें पहलेसे ही यह भावना विधमान है कि उनके साथ अन्याय हो रहा है; ओर प्रधान मन्त्री द्वारा पूना समझौतेकों स्वीकार कर लिया जाना उनकी शिकायतोंको काफी बढ़ा देता है।

ऊपर बताये गये तथ्योंके आधारपर, यह निवेदन है कि पूना समझौतेसे प्रधान मन्त्रीके निणवमें बताये स्थानापन्‍न समझौतेकी शत पूरी नहीं हुईं |

इसलिए इस बातका पूरा ओचित्य मोजूद है कि प्रधान मन्‍्त्री अपनी स्वीकृतिपर दोबारा विचार करें।” (एस० एन० २०३४१ )।

लेखक महात्मा गांधी-Mahatma Gandhi
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 588
Pdf साइज़71 MB
Categoryसाहित्य(Literature)

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