समर्थ रामदास स्वामी – Samarth Ramdas Swami Book Pdf Free Download
पुस्तक का एक मशीनी अंश
समर्थ वालपन में सदा प्रसन्नचित्त और हास्यवदन रहते थे। रोना नो वे कभी जानते ही न थे। वे बहुत शीघ्र बोलने और चलने लगे थे।
शरीर सुटृह और तेजस्वी था नटखट और उपद्रवी थे सदा खेलकूद में निमग्न रहते और क्षणभर भी एक स्थान में न रहते थे। चपलता उनके रोम रोम में भरी हुई थी ।
यानर की तरह यहाँ से बहाँ और वहाँ से यहाँ फिरते रहना और अपने साथ के लड़को को, मुँह बिगाड़ कर विराना और चिडाना भी उनका एक खेल था ।
उनके माता पिता ने जय देखा कि, ये बहुत उपद्रव करते हैं तब उन्होंने वाल समर्थ को भैयाजू के यहाँ पढने को बैठा दिया; पर भैयाजू के यहां उस समय जितनी शिक्षा दी जाती थी उतनी शिक्षा का ज्ञान उन्होंने थोड़े ही दिनों में कर लिया
फिर इधर उधर खेलने कूदने लगे गाव के लड़कों को साथ लेकर गोदावरी के किनारे जाते और वहाँ वृक्षों पर, बन्दर की तरह, चढ़ जाते । एक डाल पर से दुसरी डाल पर आना तो उन्हें बहुत सहज था।
कभी कभी वे किसी बड़े वृक्ष की चोटी पर चढ़ कर उसे हिलाते थे। वृक्षा के फल स्वय तोड कर खाते और अपने साथियों को खिलाते थे।
कभी कभी वे वृक्ष के ऊपर ही से, तीचेवाले लड़कों को फलों की गुठलियों फेक फेक कर मारते थे । वृक्ष पर चढने का उनका साहस देख कर सब लोग अक्सर करते ।
उनके साथी तो, उनको, वृक्ष पर चढ़ कर ढाल हिलाते हुए देख कर, बहुधा चिल्लाया करते कि, ” अरे ! अब यह गिरा-गिरा-गिरा। पानी मे ऊँचे पर से कूदना और तैरना भी उन्हें बहुत पसन्द था। इस प्रकार ये गाँव के बाहर खेला करते थे। इसके सिवा |
लेखक | माधव राय-Madhav Rai |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 548 |
Pdf साइज़ | 26.9 MB |
Category | आत्मकथा(Biography) |
समर्थ रामदास स्वामी – Samarth Ramdas Swami Book Pdf Free Download