पृथ्वीराज रासो काव्य – Rewa Tat Prithviraj Raso Book/Pustak Pdf Free Download

वस्तु-वर्णन
काव्यों में विस्तृत विवरण के दो रूप होते हैं—एक वस्तु वर्णन द्वारा और दूसरा पात्र द्वारा भावाभिव्यंजना से ।
वस्तु वर्णन की कुशलता इतिवृत्तात्मक अंश को बहुत कुछ सरस बना देती है। रासो में ऐसे फुटकर वर्णनों का ताँता लगा हुआ है जिन्हें कवि ने वर्णन विस्तार हेतु चुना है। संक्षेप में उनका उल्लेख इस प्रकार है :
व्यूह-वर्णन- भारत की हिन्दू सेनाओं का व्यूह बद्ध होकर लड़ने का विवरण मिलता है और कभी-कभी मुस्लिम सेना को भी किसी भारतीय व्यूह को अपनाये युद्ध करता हुआ बतलाया गया है।
व्यूह-वर्णन के ढङ्ग की परम्परा कवि को महाभारत से मिली प्रतीत होती है। एक चक्रव्यूह का प्रसंग देखिये जिसके वर्णन के अन्त में बड़े काव्यात्मक ढंग से कवि कहता है कि अरुणोदय होते ही रण का उदय हुआ, दोनों ओर के सुभटों ने तल इम निसि वीर कढिय समर, काल फंद अरि कढि ।
होत प्रात चित्रंग पहु, चकाव्यूह रचि ठढि ।।
समर सिंह रावर। नरिंद कुण्डल अरि घेरिय ॥
एक एक असवार । बीच विच षाइक फेरिय ॥
मद सरक्क तिन अग्ग। बीच सिल्लार सु भीरह ॥
गोरंधार विहार । सोर छु कर तीरह ||
रन उदै उदै वरन हुआ | दुहू लोह कढूढी विभर ||
जल उकति लोह हिल्लोर | कमल हंस नंचै सु सर ॥
७१, स० ३६ लगभग तत्कालीन फ़ारसी इतिहासकारों ने हिन्दू सेना को बिना किसी ढंग के अस्त-व्यस्त युद्ध करने वाला वर्णन किया है तथा अपने पक्ष की युद्ध-शैली का विवरण देते हुए कहीं यह उल्लेख नहीं किया है कि उनमें भार तीय-युद्ध-पद्धति कभी अपनाई जाती थी।
नगर-वर्णन — अनेक नगरों, ग्रामों और दुर्गों का उल्लेख करने वाले इस महाकाव्य में अन्हलवाड़ा पट्टन, कन्नौज, दिल्ली और ग़ज़नी के वर्णन विस्तृत हैं जो संभवत: युगीन चार प्रतिनिधि शासकों की राजधानियाँ होने के कारण किये गए प्रतीत होते हैं। इन वर्णनों को अनुमान या काव्य-परं
सुया इन बर्मानों को इस देने में कोई बाधा पाने की संभावना भी नही है। महाभारत, भागवत और भविष्य पुराण चादि सदक-देशन, ममेजय के नाग-ना और वापस कथा ऐसे ही प्रसंग हैं । अतिरिक्त अन्य ने राजा परीत के (तथा दशावतार की की भी है
सपा पृथ्वीराज की जिक्सा पूर्छि आारा समाचान किये गए अनेक ममोहर उपास्यान है औ जानकारी, अनुभव, अनुरुषमति तथा विशाल बच्चपन के परिचायक हैं। इनमें विनोद की मात्रा भी गये हैं।
पशुषों के विस्तृत वर्णन और मापार मणकी समात्मिका कि केबलम्बन तथा इससे मिश्र-मिश्र -मारयों की उतपति होने का इनमें रसात्मकता का पूरा आमास मिलता है। पाश्चात्य महाकानों के रस पान पर वस्तु-पर्यन को ही प्रधानता दी गई है।
भावाभिव्यंजना रासो गु्-प्रचान कामय है और पुष्यीराज-सदश दबीर वोदा पर होने के कारण इसमें उस समय की আदर्श बीरता क चित्रण बितता हैं। चत-धर्म धर ख्वामि -धर्म निकपया करने वाले इस काव्य में तेजसवी दत्रिय चोरों के दुद्धोन्हर उथा तुम्ल घौर बेजोड़ बुड दर्शनोग हैं
यसार संवार में की षठा और प्रधानता को षटिगत करके उसकी परादे स्पानि-य्न पालन में निहित की गई है। स्वामि-धर्म की अनुवर्तिता का आर्थ पतिपदी से युद्ध में
तिल-तिल करके कट जाना परन्तु यह न मोडना इस प्रकार स्वाभि-धर्म में शरीर नष्ट होने की बात को गोया रूप देकर वश सिरनौर कर दिया गया है।
और भी एक महान प्रलोभन तया इस संसर बर हांसारिक बलुखों से भी अधिक चाकर्षक भित्र लोक-मास तथा अनम्य सु्दरी यप राघों को प्रति है।
धर्ग-भीर और बागी योगा के लिए शिव की माला में उसका सिर पोहे आने तथा तुरन्त मुक्ति-पानिपादि की व्यवसारे। कर्म-धानी मिटने वाले, बैधि के विधान में संधि कर देने व
लेखक | महाकवि चंद बरदाई-Mahakavi Chand bardai |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 471 |
Pdf साइज़ | 58.6 MB |
Category | Poetry |
पृथ्वीराज रासो रेवा तट – Rewa Tat Prithviraj Raso Book/Pustak Pdf Free Download