रतिमंजरी – Rati Manjari (Kama Shastra) Book/Pustak PDF Free Download

रति मंजरी भाषा टिका अर्थ सहित
नत्वा सदाशिवं देवं नोगराणां मनोहरम् ।
रच्यते जयदेवेन सुबोधा रतिमञ्जरी ॥ १ ॥
टीकाकून्मङ्गलम्
कृपापाङ्गवशान्मनोभूः पुष्पायुघोऽप्यङ्गविहीनरूपः । * जेजेति लोकानखिलान् क्षणाऐं तां विश्वबीजां त्रिपुरां नमामि ॥ १ ॥ लोका व्यंवाये पशुवत्प्रवृत्ताः कामाऽऽगमाचारविचारहीनाः ।
तेषां सुबोधाय करोमि टीका भाषानिबद्धां रैंतिमञ्जरीयाम् ॥ २ ॥ प्रन्थ के आरम्भ में निर्विन पूर्वक प्रन्थ समाप्ति होने के लिये मङ्गलाचरण आवश्यक जानकर जयदेव कवि मङ्गलाचरण करते हैं।
टी०- रसिक जनों के मन को हरनेवाले सदा शिवजी को नमस्कार कर मैं जयदेव सुबोध ( सुख से बोध करानेवाला) रतिमञ्जरी नाम कामशास्त्र बनाता हूँ ॥ १ ॥
रतिशास्त्र कामशास्त्रं तस्य सारं समाहृतम् ।
सुप्रबन्धं सुसंक्षिप्तं जयदेवेन भाष्यते ॥ २ ॥
टी० – रतिशास्त्र और कामशाख का सार ( तत्त्वभूत) मनोज्ञ दूनावाला और अति लघु (यह रविमारी नाम मन्य) जयदेव से कहा जाता है ॥ १ ॥ भय त्रीपुंसोर्जाविलक्षणम् -पद्मिनी चित्रिणी चैव शङ्घिनी हस्तिनी तथा ।
टी०—कियों के चार भेद हैं-एक पद्मिनी, दूसरी चित्रिणी, तीसरी शशिनी, चौथ इस्विनी। इसी प्रकार पुरुषों के भी चार भेद है – पहिला शश, दूसरा मृग, तीसरा वृष, चौथा अश्व ॥ ३ ॥
शशो मृगो वृषोऽपश्च स्त्रीपुंसोर्जातिलक्षणम्
अथ पद्मिनीलक्षणम्भ वति
कमलनेत्रा नासिकाक्षुद्ररन्धा अविरलकुच
युग्मा चारुकेशी कृशाली ।
मृदुवचनसुशीला गीतवाद्यानुरका सकल तनुसुदेशा पद्मिनी पद्मगन्धा ॥ ४ ॥ टी०- अब पद्मिनी स्त्री का लक्षण कहते हैं- बद्दी स्त्री पद्मिनी है जिसके नेत्र कमल के सदृश और नासिका की छिद्र छोटे हों,
सघन कुचयुग्म हो, सुन्दर केश हो, दुर्बल शरीर हो, कोमल वाणी हो, सुन्दर स्वभाव दो, और गाने बजाने में आसक्त हो, सम्पूर्ण शरीर का वेश सुन्दर हो, पद्म के समान शरीर की सुगन्ध हो ॥ ४ ॥
अय चित्रिणीलक्षणम् -भवति रतिरसज्ञा नातिखर्वा न दीर्घा
तिलकुसुमसुनासा बिम्पनीलोत्पलाक्षी ।
घन कठिन कुचाया सुन्दरी पद्धशीला
सकलगुणयुता सा चित्रिणी चित्रवक्त्रा ॥ ५ ॥
टी०—अब चित्रिणी स्त्री का लक्षण कहते हैं-वही श्री चित्रिणी है जो रतिरस को जानती हो, और न बहुत छोटी हो और न बहुत लम्बी हो । तिल पुष्प के समान नातिका बाली हो,
चिचण नीलकमल के सदृश नेत्र बाली हो, और निरन्तर कठिन कुचों से युक्त हो, सुन्दर स्वभाव वाली हो, सकल गुणों से युक्त हो, बौर बाश्रर्य मुखबाली हो ।अथ शनिीलक्षणम् –
दीर्घातिदीर्घनयना वरसुन्दरी या
कामोपभोगरसिका गुणशीलयुक्ता |
रेखात्रयेण च विभूषित कण्ठदेशा
सम्भोग के लिरसिका (निरता) किल शनिी सा ॥ ६ ॥
टी०- अब शक्ङ्खिनी स्त्री का लक्षण कहते हैं जो की लम्बी कदवाळी हो, दीर्घनेत्रवाळी हो, अत्यन्त सुन्दरी हो, काम के उपयोग में रसिक हो, गुण-शील सम्पन्न हो और जिसका कण्ठदेश तीनरेखा से युक्त (शोभाय मान ) हो,
सम्भोग क्रीडा में आसफ हो, वह स्त्री शक्तिनी है ॥ ६ ॥ अथ इस्विनीलक्षणम् -स्थूलाघरा स्थूलनितम्बभागा
लेखक | श्री जयदेव-Sree Jaydev |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 18 |
Pdf साइज़ | 11.8 MB |
Category | साहित्य(Literature) |
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