प्रेम सागर ग्रंथ – Prem Sagar History of Krishna Book/Pustak Pdf Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
इस भांति राजा को श्राप, अपने बाप के पास था गले से साप निकाल कहने लगा, हे पिता! तुम अपनी देह संभालो, में ने उसे श्राप दिया है जिसने त्र प के गले में मरा सर्प डाला था.
यह बचन सुनतेही लोमम ऋषि ने चैतन्य हो नैन उघाड़ अपने ज्ञान ध्यान से बिचार कर कहा, अरे पुत्र! ढूने यह क्या किया, क्यों श्राप राजा को दिया विमक राज में थे हम सुखी, कोई पश्ए पंछी भी न था दुखी,
ऐसा धर्म राज था कि जिम में मुंह गाय ए क माथ रहते और आपम में कुछ न कहते; अरे पुत्र जिनके देश में हम बसे क्या हुआ तिनके हमे? मरा हुआ माप डाला था उमे श्राप क्यों दिया? तनक दोष पर ऐसा श्राप, ते ने किया बड़ा ही पाप,
कुछ विचार मन में नहीं किया, गुण छोड़ा औगु् हीजिया साध को चाहिये शील सुभाव से रहे, आप कुछ न कहे, और की सुन ले, मद का गुण ले ले, औगण तज दे ।
इतना कह लोमश ऋषि ने एक चेले को बुलाके कहा तुम राजा परीक्षित को जाक जता दो जो तुम्हें पटगो ऋषि ने श्राप दिया है; भला लोग तो दोष देहींगे, पर वह सुन मावधान तो हो.
इतना बचन गुरू का मान चेला चला चला वहां आया जहां राजा बैठा मेच करता था. आते ही कहा महा राज! तुम्हें श्टगो ऋषि ने यह श्राप दिया है कि भातवें दिन तक्षक डमेगा,
अब तुम अपना कारज करो जिसमे कर्म की फामी में कोटा. सुनते ही राजा प्रसन्नता में खड़ा हो हाथ जोड़ कहने लगा, कि मुझ पर णি ने तडी कम की जो के च म में
लेखक | लल्लू लाल-Lallu Lal |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 448 |
Pdf साइज़ | 26.8 MB |
Category | धार्मिक(Religious) |
प्रेम सागर – Prem Sagar History of Krishna Book/Pustak Pdf Free Download