प्रेम पूर्णिमा नवलकथा – Prem Purnima Book/Pustak Pdf Free Download
पुस्तक का एक मशीनी अंश
इस घटनाको हुए चौदह वर्ष बीत गये। इन चौदह वर्षों में सारी काया पलट गयी चारों ओर रामराज्य दिखायी देने लगा। इन्द्रदेखने कभी उस तरह अपनी निर्दयता न दिखायी और न जमीनने ही उमड़ी हुई नदियोकी तरह अनाजसे ढेकियों मर चली। उजड़े हुए गांव बस गये ।
मजदूर किसान बन बैठे और किसान जायदादकी तलाशमें नजरें दौड़ाने लगे। वही तके दिन थे। खरिहानों में अनाजके पक्ाड़ खड़े ये ।
भाट और मिखमंगे किसानोंकी बढ़तीके तराने गा रहे थे। सुनारोंके दरवाजे पर सारे दिन और आधी राततक गाहकोंका जमघट बना रहता था।
दरजीको सिर उठानेकी फुरसत न थी। इधर-उधर दरवाजोपर घोड़े हिनहिना रहे थे। देवीके पुजारि योंको अजीर्ण हो रहा था । जादोराय के दिन भी फिरे।
घर पर छप्परकी जगह खपरैल हो गया है। दरबाजे पर अच्छे बैलोंकी जोड़ी बॅधी हुई है।
वह अब अपनी बहलीपर सवार होकर बाजार जाया करता है । उसका बदन अब उतना सुडौल नही है । पेटपर इस सुदशाका विशेष प्रभाव पड़ा है और बाल भी सफेद हो चले हैं ।
देवकीकी गिनती भी गाँवकी बूढ़ी औरतों में होने लगी है। व्यावहारिक दातोंमें उसको बड़ी पूछ हुआ करती है ।
जब वह किसी पड़ोखिनके घर जाती है तो वहॉकी बहुएँ भयके मारे थरथराने लगती हैं। उनके जीवनका दूसरा भाग इससे कम उज्ज्वल नहीं है । उनकी दो सन्ताने हैं। लड़का माधोसिंह अब खेतीबारीके कामें बापकी मदद करता है।
लड़कीका नाम शिवगौरी है । वह भी मॉको चक्की पीसनेमें सहायता दिया करती है और खूब गाती है।
बर्तन धोना उसे पसन्द नहीं लेकिन चौका लगानेमें निपुण है । गुड़ियोंके व्याह करनेसे उसका जी कभी नही भरता । आये दिन गुड़ियोंके विवाह होते रहते हैं ।
लेखक | प्रेमचंद- Premchand |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 219 |
Pdf साइज़ | 13.2 MB |
Category | उपन्यास(Novel) |
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