प्रतिशोध | Pratishodh Novel Kanaiyalal Munshi PDF

प्रतिशोध उपन्यास – Pratishodh Book/Pustak Pdf Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश

रघुभाई को अधिक परियम नहीं करना पड़ा । उसने ऐसा भाव दिचामा मानो उसमें अनन्तानन्द में अट्ट मितता है और वह उन्हें रिवर से भी अधिक मानता है।

आलिर दोलाशा उन्हें ऊपर ले गया और जहाँ वह स्वयं सोता था वहीं रघुभाई के सोने का प्रबन्ध कर दिया। रघुभाई चाहता भी यही था। उसने दोलाशा की खूब प्रशंसा की । बात पर बात चली ।

राजमाता यहाँ कहाँ पर उतरती और कहां रहती थी। जसुभा को किस प्रकार रखती थादि सभी बातें मालूम करने के बाद अनन्तानन्द के बचपन की बात रपुभाई ने छेड़ी, पर बात फेरकर अहमदाबादी चतुराई से निद्रा का बहाना कर दोलाशा सो गया ।

रघुभाई ने रात भर विचार किया। एक तो राजमाता का भेद था और दुसरा अनन्तानन्द का । एक भेद के दो भाग हो गए। दोलाशा की चालाकी तो वह समझ गया किन्तु वह बात जिसे दोलाणा छिपाना चाहता है, क्या है यह नहीं समझ सका ।

प्रातःकाल उठने पर दोलाशा जरा दूर ही रहा परन्तु उसकी चपल जीभ रघुभाई की वाणी मिठास के आकर्षण के सामने ठहर नहीं सकी ।

दिन भर रघुभाई ने दोलाशा की खुशामद की यौर रात में जब सोने के लिए धाया तब तक तो दोलाशा पिघल कर पानी हो गया था ।

‘दोलाशा ! पब में कल जाऊंगा। याद कीजिएगा न ?”‘परे क्या भक्ता ? पापको अवश्य लिखता रहेगा भईसा ग्रहमदादाद जाना तो पतासा की पोल है न ? बही चमन से मिलना, मैं भी उसे लिख दुंगा। ‘यह तो ठीक है दुकान । पर में यहाँ किसलिए आया है, पता है ?”

जी नहीं !”मुझे स्वामी जी ने तुम्हारे लिए ही भेजा है ।।’भवया में क्या कह नहीं रहा था सामी जी किनी दिन मुझे या नमन को भूल नहीं सकते। अनन्तानन्द ने याद किया इस भजन में यँखे मटकाते हुए दौलाथा बोला ।

लेखककन्हैयालाल मुंशी-Kanaiyalal Munshi
भाषाहिन्दी
कुल पृष्ठ329
Pdf साइज़15.8 MB
Categoryउपन्यास(Novel)

प्रतिशोध – Pratishodh Book/Pustak Pdf Free Download

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!