मनु के राजनीतिक विचार | Political Thoughts of Manu PDF In Hindi

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भारतीय राजनीतिक चिन्तन मनु – Indian Political Thought Manu PDF Free Download

मनु का राजनीतिक दर्शन

मनु का राजनीतिक दर्शन भारतीय परम्परा की श्रृंखला में एक कड़ी है। मनुस्मृति अत्यन्त उदात्त, सनातन, सार्वभौमिक एवं मानवतावादी धर्म ग्रन्थ है जिसमें राजधर्म (राजनीतिक व्यवस्था) और राजधर्म से उपजने वाले संघर्षों के समाधान का अनुपम वर्णन है।

प्राचीन काल से ही राज व्यवस्था में जिस धर्म का सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान रहा, उसे मनु ने विस्तृत परिधि देकर संचालित किया।

राजनीतिक दर्शन की जो व्यापक, विशाल एवं सशक्त पृष्ठभूमि मनुस्मृति में दृष्टिगोचर होती है, वह दुर्लभ है।

संघर्ष की अवधारणा राजनीतिक अध्येताओं के मध्य विमर्श का मुख्य मुद्दा रहा है। राजनीतिक चिन्तन जब व्यक्ति पर केन्द्रित होता है तो वह प्रथम मानव संघर्ष पर विचार करता है।

साथ ही व्यक्तियों एवं समूहों के मध्य के संघर्षो पर विचार करता है जिसके आधार पर वे समुदाय में एक-दूसरे से जुड़े होते हैं।

संघर्षो के कारणों की जब विवेचना का प्रयत्न किया जाता है तब इस बात पर ध्यान दिया जाता है कि वे किस रूप में व्यक्त होते हैं, लेकिन विचार गंभीरतापूर्वक इस तथ्य पर होता है कि कैसे संघर्षो को नियंत्रित किया जा सकता है। पाश्चात्य राजनीतिक विश्लेषकों के लिये संघर्ष ‘हिंसा’ का प्रारूप है।

जिसके समाधान के लिये वे परम्परागत संरचना में परिवर्तन पर बल देते है वही भारतीय राजनीति के पुरोधाओं में मनु संरचन एवं संस्था की जगह प्रथमतः मनुष्य में परिवर्तन, तत्पश्चात् संस्था की उस संरचना में परिवर्तन करते हैं जिसके द्वारा संघर्षो का समाधान हो सके।

मनु ऐसे प्रथम राजनीतिवेत्ता हैं जिन्होंने व्यक्ति, समाज व राज्य के प्रत्येक अंग को धर्म से जोड़ने का प्रयास किया।

धर्म से जोड़ने का उनका उद्देश्य एक ऐसी जीवन पद्धति विकसित करना था जिससे व्यक्ति का राज्य के अन्य अंगों से परस्पर संघर्ष की जगह सौहार्द की स्थापना हो सके।

मनुस्मृति जो कि मानव कल्याण का एकमात्र साधन है, उसमें मनु ने अपने राजनीतिक विचारों द्वारा भिन्न-भिन्न प्रकार के राजनीतिक संघर्षो के समाधान के मौलिक सिद्धांत को उद्भूत किया है। इसे दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि “राजनीतिक संघर्षों का समाधान मनु के चिन्तन का प्राण है।

” मनु ने अपने राजनीति संबंधी विचारों में राजनैतिक समस्याओं पर सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक पक्षों से गहनता से विचारकिया और राज्य के उस कल्याणकारी स्वरूप को बहुत पहले ही व्यापक रूप से चित्रित कर दिया जिसकी कल्पना पाश्चात्य चिंतकों ने आधुनिक युग में की है।

मनु के राजनीतिक विचारों से ऐसा प्रतीत होता है कि इन्होंने पाश्चात्य विचारकों के समान ही नहीं बल्कि कुछ क्षेत्रों में उनसे भी बढ़कर राज्य और शासन की परमावश्यकता को स्वीकार किया।

साथ ही अराजकता के दोषों की ओर ध्यान दिलाया, तथा राजनीतिक चेतना का श्रीगणेश किया।

राजनीतिक क्षेत्र की प्रत्येक समस्याओं के समाधान का न केवल मार्ग दिखाया बल्कि उसे प्रशस्त भी किया। इसी कारण वर्तमान राजनीतिक चिन्तन का व्यापक क्षेत्र मनु का ऋणी है।

इसी परिप्रेक्ष्य में मनु के राजनीतिक विचारों जैसे राज्य, राजा, प्रजा के कर्त्तव्य, अधिकार, धर्म व न्याय, प्राशासनिक व्यवस्था का स्वरूप, राज्य का लक्ष्य इन सबसे बढ़कर लोक कल्याणकारी राजतंत्रीय राजनीतिक व्यवस्था एवं ग्राम शासन के आधार पर स्थापित विकेन्द्रित व्यवस्था से संबंधित मान्यताओं का विश्लेषण आवश्यक हो जाता है जिसमें उन्होंने राजनीतिक संघों के समाधान का बीजारोपण किया।

राज्य

सामाजिक संस्थाओं में सर्वाधिक व्याप्त एव सशक्त संगठन के रूप में प्रचलित राज्य एक मानवीय संस्था है।

अपनी आन्तरिक एवं बाहय सुरक्षा हेतु राजनैतिक, जीविका निर्वाहार्थ आर्थिक तथा भावनात्मक तुष्टि के रूप लिये धार्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये स्वाभाविक संस्था परिवार से परे विस्तृत दायरे में जिस सामाजिक परिक्षेत्र की मानव समुदाय ने कल्पना किया वह संस्था ही ‘राज्य’ है।

दूसरे शब्दों में, “सुख, शान्ति, समृद्धि तथा मानव के सर्वोन्मुखी विकास के लिये उत्तरदायी राजनीतिक संगठन युक्त समाज ही राज्य है। “

एक ही लातीनी शब्द “Status” (जिसका भावार्थ पद अथवा स्थिति है) दोनों शब्द “Status” (राज्यक) तथा “Status” (राज्य) का जन्मदाता है।

यूनानी शब्दावली में इसे ‘पोलिस’ जबकि रोमनों ने इसे ‘सिविटस’ की संज्ञा दी, परन्तु सब में राज्य के अर्थ का आभास इसी रूप में हुआ कि यह भौगोलिक दृष्टि से परिसीमित मानव समाज का ऐसा भूखण्ड है जो एक निश्चित संप्रभु की आज्ञाकारिता के लिये संगठित हुआ जबकि इकाई के रूप में राज्य का सर्वप्रथम प्रयोग मैकियावली ने किया।

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भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 31
PDF साइज़15 MB
CategoryEducation
Source/Creditsdrive.google.com

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