पर्दे के पीछे – Parde Ke Piche ekanki Pdf Free Download
पुस्तक का एक मशीनी अंश
ईश्वर पराकाष्ठा का नाम है, क्योंकि उससे बड़ा कुछ भी नहीं है। मैं मनुष्य के अन्तिम ध्येय को उपलब्ध करने की क्षमता रखता है। जैसा कि मैंने जीवन के ऊपर अपनी एक बड़ी कविता में लिखा है, मैं तो मान गा कि वहाँ तक पहुँचने के कारण मैं ईश्वर हूँ।
सुनन्दा-(धीरे से) ईश्वर ! रघुवंश-वर आपकी कविता क्या है?
भूषण-(सुनन्दा से) मैं ईश्वर ! जब मैं देखता हूँ तुम्हारा मानव समाज बीमार है, मानस गाना है, अवास्तविकता का दास है । मानवता के विकास की अपेक्षा, आत्मा के सौन्दर्य को पहचानने के अतिरिक्त वह केवल शरीर-सौन्दर्य को वास्तविक मान बैठा है,
तब मैं कहता हूँ उसकी दृष्टि में टोप दे, वह अस्वस्थ है । और जो मनुष्य की वास्तविक स्वास्थ्य-प्राप्ति में सहायक होता है उसे जीवन की सुन्दरता को पहचानने की शक्ति देता है; उसे सम्पन्न करता है…
रघुवंश-क्या इर साहित्यिक में, हर कवि में बद क्षमता है कि उसे ईश्वर माना जाय।
भूपण- श्राम बार-शर भूल बाते हैं, मिश्टर फिशोगीैलाल !) सुनन्दा-आपका नाम रघुवंश है।
भूषा-मनुष्य के भीतर अनन्त शक्ति का मर्डर है । कोई भी यस्तु से बाहर से लेने की आवश्यकता नहीं है । वह स्वयं प्रकाशमय है, केवल उसे जारत करने, बोधमय बनाने, कीचश्यकता है धरतः प्रत्येक व्यक्ति महान हो सकता है।
हमारे यहाँ रामायरा के याच्या काक-भुशुण्ड थे । उनमें भी जान इलना जमा हो गया कि ये राम के रूप को समझ सके । तो इसका आशय यह नहीं कि उन्हें कोई जादू पर गया था। वह उनका विकास था. आत्म-घका नाकात रूप। मनुष्य का कारखों व्यक्ति के जन्म के द्वारा असीम पुष्यी के मैदानी को पार करता जा रहा है ।
लेखक | उदयशंकर भट्ट-Udayshankar Bhatt |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 178 |
Pdf साइज़ | 8.1 MB |
Category | नाटक(Drama) |
पर्दे के पीछे एकांकी – Parde Ke Piche Book/Pustak Pdf Free Download