पर्दादारी – Pardadari Book PDF Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
मगर आज कोई औरत नहीं कहती की मस्जिद में जमाअत से नमाज़ पढना चाहती हैं, क्यूंकि वो तो पहले ही घर में भी नमाज़ पढना नहीं चाहती और नमाज़ में कसरत है वुजू और हाथ पैर हिलाने की और चेहरा दिखाने में हुस्न का दिखावा जीनत का इज़हार है
कोई कसरत मशक्कत नहीं बल्कि दिल को भाता है, की गैर हमारा हुसन देखें. होँ”पद गौर कर ले की नफस की गलबे की खातिर चेहरा खोलना चाहती है या शरीअत की खातिर.
इसलिए तरह तरह के हीले करती है और नफस पर फौरन शरीअत और रसूल का दौर याद आ जाता है.
जमाअत से नमाज पर कभी ना आया, पहली सदी में औरते मस्जिद जाती मगर बाद में वक्त की नजाकत के तहत दौरे फास्के आजम में इसे भी बंद करना पड़ा उस वक्त क्या हजरत उमर और हजरत आयशा को ये नहीं मालूम था की वो ऐसे काम पर पाबन्दी लगा रहे है जिस पर हबीवे खुदा ने पाबन्दी ना लगाई बल्कि हजरत आयशा ने फरमाया
इस कलाम को पढ़ने के बाद कहेंगे कुछ बेवाक लोग की “पर्दा आँखो का है” फिर मैं कहूँगा की अगर इस दौर में लोगो मे हया ज्यादा आ गई क्या उस पहली सदी में हयादार नहीं थे और मुमकिन है फिर कोई बेबक बोल बैठे की दिल साफ होना चाहिए
तो मेरा जवाब यही होगा की जब हजरत आयशा हुजूर. ) के मजार पर हाजिर होती तो पर्दे का खास ख्याल ना रखती फरमाली ये मेरे शोहर है, फिर जब हजरत अबु बकर हुजूर के कदमो में दफन हुए तो भी यही हाल था क्यूकी अब एक शोहर एक वालिद थे मगर जब हजरत उमर का मजार भी वही बना
लेखक | सिकंदर वारसी-Sikander Warsi |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 107 |
Pdf साइज़ | 1.6 MB |
Category | धार्मिक(Religious) |
पर्दादारी – Pardadari Book/Pustak Pdf Free Download