न्याय सूत्र – Nyaya Sutra(Shastra) Book Pdf Free Download
पुस्तक का एक मशीनी अंश
मवज्ञानहै श्रविकारी की बला इसी यमन का भावा शय विचारने से कई भाति के संबध मती टेपन है जैसे मेश्द डोर मलसान का अन्पजनकभाव संबंध ह आर्ान मात जन्म कार्य) और बंद ज्ञान जन- कारण इसी भांति शास और तत्वज्ञान का मीन न भा ही संबध है;
श्र्थात नत्कलान कार्य और शास कारण है। यारों कारस के कार्य के प्रयोजक और कार्य के कार्यको प्रयोज्य कहते हैं इसलिये मेक का शा- र् के साथ मयेध्यप्रये जक भाव संबंध हुः कि मैत प्र- योग (शास के कार्य नल्वज्ञानका कार्य) डोर शस्त
मयोज क(मोन के कारण नवज्ञान का कारण) है, प्रमेय शायरी सलइ पराथी का नंबर के साथ विषय विषय भाव में. बेध है; सेलद पदार्थ विषय और तत्वज्ञान विषयी है। इस स्त्र में निम्रेयसाधिगमः) यहां अधिगम पद अधिक दे नेरू यह तध्यपर्य है:
वर परि लैकिक कर्यें की नाई मे- की उत्पनि और प्राति के कारण एथक २ नहीं जानने, कि aमेत की उत्पति र प्राप्ति का भी कारण त्व ज्ञानही । प्रोयों के तत्व ज्ञान से में गौतम जीन माना है
तो श्रदि में प्रमेयों का निरूपण ही करना चाहिये प्रमाश का नाम आरि में इस निमिन लिया दे सारे पदार्थों की अवस्था प्रमाणे से ही बांधी जाती है इसलिये प्रमाण सबसे प्रया नया प्रमाण के दारा प्रमेयें काथार्थ) जानना ही है:
इसलिये प्रमारें से अनंतर प्रमेयों का निरूपण किया है । जरूयें के विवार में पदक बवस्या के हैत न्याय एपांचश्रव यवे के समाद़ का निरूप करने के लिये न्याय के इं्बी ग] एपहिले सपेलित) संशय और प्रयोजन का निरूपण करना पड़ा;
परंत्र प्रयोजन साता नय का अंगनहीं, किंतु प्रयोजन का ज्ञान न्याय का श्रंग है; इसलिये पहिले साक्षात् न्याय के रंग संशय का निरु पण कर के प्रयोजन का निरूपण किया है ।
लेखक | महामुनि गौतम-Mahamuni Gautam |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 398 |
Pdf साइज़ | 61.5 MB |
Category | विषय(Subject) |
न्याय सूत्र – Nyaya Sutra(jurisprudence) Book/Pustak Pdf Free Download