निर्मला – Nirmala Premchand Story PDF Free Download

कहानी
दोनों चश्चल, खिलाड़िन और सैर-तमाशे पर जान देती थीं दोनों गुड़ियों का धूम-धाम से ब्याह करती थीं, सदा काम से जी चुराती थीं।
माँ पुकारती रहती थी; पर दोनों कोठे पर छिपी बैठी रहती थीं कि न जाने किस काम के लिए बुलाती हैं ।
दोनों अपने माझयों से लड़ती थीं, नौकरों को डाटती थीं; और बाजे की आवाज सुनते ही द्वार पर आकर खड़ी हो जाती थीं; पर आज एकाएक एक ऐसी बात हो गई है, जिसने बड़ी को बड़ी और छोटी को छोटी बना दिया है।
कृष्णा वही है; पर निर्मला गम्भीर, एकान्तप्रिय और लज्जाशीला हो गई है। इधर महीनों से बाबू उदयभाजुलाल निर्मला के विवाह की बातचीत कर रहे थे ।
आज उनकी मिहनत ठिकाने लगी है। बाबू भालचन्द्र सिन्हा के ज्येष्ठ पुत्र भुवनमोहन सिन्हा से बात पक्की हो गई है ।
वर के पिता ने कह दिया है कि आप की खुशी हो दहेज दें या न दें, मुझे इसकी परवाह नहीं; हाँ, बारात में जो लोग जायँ उनका आदर-सत्कार अच्छी तरह होना चाहिए, जिसमें मेरी और आपकी जग-हँसाई न हो ।
वाबू उदयभानु- लाल थे तो वकील; पर सच्चय करना न जानते थे ।
दुहेज उनके सामने कठिन समस्या थी। इसलिए जब वर के पिता ने स्वयं कह दिया कि मुझे दहेज की परवाह नहीं, तो मानो रन्हे आँखें मिल गई ।
डरते थे, न जाने किस-किस के केवल फैलाना पड़े, दो-तीन महाजनों को ठीक कर रक्खा और अनुमान था कि हाथ रोकने पर भी बीस हज इसी सूचना ने अज्ञात बालिका को मुँह ढाँप कर एक कोने में विठा रक्खा है।
उसके हृदय में एक विचित्र शङ्का समा गई है, रोम-रोम में एक अज्ञात भय का सञ्चार हो गया है-न जाने क्या होगा ?
उसके मन में वे उमझें नहीं हैं, जो युवतियों की आँखों में तिरछी चितवन वन कर, ओठों पर मधुर हास्य बन कर; और अङ्गों में आलस्य वन कर प्रकट होती हैं। नहीं, वहाँ अभिलापाएँ नहीं हैं: वहाँ केवल शद्काएँ, चिन्ताऍँ और भीरु कल्पनाएँ हैं ।
लेखक | प्रेमचंद-Premchand |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 300 |
Pdf साइज़ | 9.9 MB |
Category | Novel |
निर्मला उपन्यास – Nirmala Book/Pustak Pdf Free Download