नीड़ का निर्माण फिर – Need Ka Nirman Fir Book Pdf Free Download
पुस्तक का एक मशीनी अंश
कवि और साहित्यकार प्रायः वातावरण की अनुकूलता की दृष्टि से ऐसे क्षणों को चुनते हैं, पर प्रकृति, संभवतः अपने सहज संवरणीय स्वभाव से- प्रकृति में अपने को गुह्य रखने की प्रवृत्ति निश्चय है-वह वस्तुतः गुह्य श्वरी है-कितना कुछ विचित्र वह मानवों की आँख बचाकर करती रहती है;
और जब हम उसे देखते हैं अपनी आँखें फाड़ देते हैं । वह एक ऐसी जादूगरनी है जो हमें आश्चर्यचकित भी करती है, आघात-विमूच्छित भी ।
नोवैज्ञानिक दृष्टि से यह भी कहा जा सकता है कि ऐसा जो कुछ घटित होता है वह करणीय और अकरणीय, होनी और अनहोनी, होना और न होना (टु बी ऑर नॉट टु बी) के तनाव पर रहता है,
और दोनों के बीच की एक स्थिति, मध्य का एक बिन्दु ऐसा आता है जहाँ दोनों ओर का खिंचाव शून्य हो जाता है,
और तब, क्षण-भर में, किसी ओर को अणु मात्र का भी झुकाव होने से, दो में से एक हो रहता है। आधी रात शायद प्रतीक मात्र है दो तनावों के बीच की स्थिति का।
जिन तनावों को मनुष्य झेलता है, उन्हें नियति प्रकृति भी झेलती हों तो क्या आश्चर्य !
कुछ अस्फुट कहते, कुछ कहने का प्रयास करते ही करते श्यामा की साँस की डोर अचानक टूट गई, और जीवन और मृत्यु के बीच वह पर्दा गिर गया जो सदा से अभेद्य रहा है ।
मरण और जीवन के बीच कोई आदान-प्रदान नहीं। इस पार को उस पार से जोड़नेवाला कोई सेतु नहीं । मृत्यु अपने विषय में पूछे गए सारे प्रश्नों को केवल उनकी प्रतिध्वनि बनाकर लौटाल देती हैं |
लेखक | बच्चन-Bachchan |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 367 |
Pdf साइज़ | 47.6 MB |
Category | आत्मकथा(Biography) |
नीड़ का निर्माण फिर – Need Ka Nirman Fir Book/Pustak Pdf Free Download