मुहूर्त चिंतामणि | Muhurt Chintamani PDF In Hindi

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मुहूर्त चिंतामणि – Muhurat Chintamani Pdf Free Download

मुहूर्त चिंतामणि

प्रज्ञा हो तो ये पूर्व पोलिपियाने सिद्रियोग करें हैं नमे काम करने से सब प्रकारको सिविदोती .शीय हानार्थ उत्पत्त मृत्यु मानव सिद्धियोग बीरासोयादासराद पौष्यमाब त्राम्ात् प्यादर्यनच्ायतुमेः पादुखातो मृत्युकागोत्र सिद्धिवारेऽकायतकर्जनामतुल्यम् ३१

(अव्ययः) दोशन सोया पासवात् पोगमात् ( बच ) ग्राजा् पुण्या अर्थभचत् चजुर्वेश्वतुर् गढ स्प.लू मत्याी (ब) ि) स्वात् अकचि वारे नामु्य दार रमिटि । । अर्-रत्रिचार को विशायानद र हो तो १सानरोग ज्ञानता, अनुगधान हो तो मृल्युवोग आनना, र हो तो कग कामना थर मुझनढ हो टोसिदियोग सामना ।

सोमबारको पूर्णपाहरण हो सो प्रत्यायोग जानना, समित्रित हो जो काय परग आमना र भ्रयशु होती सिडधियोग आा । मंगवारको अनुष्ठान को तो सहयोग आना, शमिय हो तो युग जानमा, पूर्वमायरो टोकागयोग जानना और नरामाइपरहो तो

सिदि योग जानना दुधयदिन रेयतो तो कताहशेग आानका ि्वती हो तो मापुचोग जानना । मरी ही हो याए कोग जा श्ीर कृति हा ो हो सिोग जनमा सातिब दिन रोहरी होतो कपक्योग जानवाणिर हो तो. मायुयोग और आ दो हो काोगा चर

दुकर्थस् दोको सिधि योग जानना शुक्रवार के दिन पुष्य हो नो उत्पात योग जानगा आपाहो सो मधु षोग जाना गया हो तो कर पोग कर पूर्वाफकतुनो हो तो लिकिण कजना शनियार के दिन उ्तराफनो हो तोउत्यायीय जामरा, मর ही तो सून्युोज कानना चिचा हो

बिपुपापयुक्तदवरपी वर्चसथ ये देधिन मै निशमेल रमें पड सक स्य सर्यातरक पूर्व दिनातां गर्थ थल कपातदतोप्रदणहारय सदि नि स्वज ( ) वदिरन तहि हु स्वात् प्रहान्मिश्रम यधवार्ग पहवौक यभर सथोत्यातर्म यन््थ কন पमार्थ पमाधपच् सर्व गुमे कार्ये सज ॥२

अर्थी नाच प्रकारके समकार्यसै बन्नबाले और मुक्त हुक करन और लानके नयाको और आधी रात त्या कोपहर पहते १० पत और पौडे १० पक ज्यामने और पापमहका नाशक भोर महरके दिनसे पहले शीद दिन त्याग और जिस दिन अपडत हो तथा हो जिससे दिन गने और भूमिप यादि पानी से हुप्ट

यह तो प्रकट ही है परन्तु वह कर्म एवम् उसका परिणाम अदृश्य है, इसे दृश्य करनेके लिये उन महास्माओंने ऐसे २हिसाव (गणित) नियत किये कि जिनकी संज्ञायें सूर्यादि ग्रह और तिथि वार नक्षत्र योग करण लग्न मुहूर्त आदि नियम कर दिये हैं

जिनके द्वारा सद्दिचारशील पाठक भूत भविष्य वर्तमान फल कह सकते हैं 3 जैसे बहुतसे गणितादि कामों में कोई करण (इष्ट ) मानके आगे कार्य सम्पादित होते हैं ऐसे ही ज्योतिष फलादेशमें करण इष्टकाल एवं मुहूर्त हैं इनसे सभी कार्य होते हैं

क्रियाकलापप्रतिपत्तिहेतु संक्षितसारा थविछ्ासग सम

अनन्तदेवज्ञसुतः स रामो शुहुतचिन्तामणिप्रातनोति ॥ २॥ क्रिया ( जातक ) आदे समरत कायंसबृहकी प्रातिपत्ति ( यह काये अमुक दिनमें शुभ, अगुकमें अशुभ ) का हेतु ( कारणभूत ) एवं संक्षेप ( थोड़े ) दाब्दोंमें सार ( निष्कृष्ट ) अथका विलास प्रकाश है गम (अन्तर ) भें जिसके अथांत मुहत्तग्रन्थ प्रायीन अनेक है,

परन्तु उनमें पाठ बहुत और तिथ्यादि पिचारोंके ग्रथक प्रकरण है इसमें समस्त कायनिवाह थोड़े ही शब्दोंसि एकहीो स्थलमे हो जाताहे इसलिए दिनशुद्धि विशेषके यद्ा”मुहस दिनके पंद्रह भाग ( दो घडी ) उपछाक्षेत कालके चिन्ता शुभाशुमनिरूपणरूप विचारका मणि, जैस हीरा आदि समस्त कांतिमानोंके आधार है ऐसे हो समस्त मुहत ( दिनशाद्वे ) के आधार इस मुहतान्वतामाणिनामक अन्थको जगादेख्यात अनंतनामा देवज्ञ ( ज्योतिषी ) का

पुन्न रामदेवज्ञ विस्तारित अर्थात्‌ विधिनिषेधके सनिवेश ( विधान ) का निरूपण करता है ॥ २॥

( अनुष्ठए )तिथीशा वह्निकी गोरी गणशो5इहिग्रंहो रविः॥

शिवों दर्गोइन्तकी विश्वे हरिः कामः शिवः शशी ॥ हे

प्रथम पंचांगके शुभाशुभनिरूपणाथ तिथियोंके स्वामी कहते हैं;-कि प्रतिपदा का स्वामी अग्नि, एवं द्वि० बह्मा, तृ० पावंती, च० गणेश, पे० सपे, ष० कार्त्तिकेय, स० सूये, अ० शिव, :न० दुर्गा, दृ० यम, ए० विंश्वेदेव, द्वा० हरि, अयोद० कामदेव, चतु्दें” शिव,चन्द्रमा है।

इनके कहनेका प्रयोजन यह है कि, तिथिका जो अधिपाति उसका पूजन उसीमें होता है तथा उनके जैसे गण एवं कम है वेसे ही प्रकार कतंव्य कार्यका शुभाशुभ परिणाम देते हैं जेंसे र्नमाला आदिकाके तिथिप्रकरणीक्त प्रयोजन है कि, अतिपदामें विवाह, यात्रा, त्रतबंध, अतिष्ठा, सीमंत, चूडा, वास्तुकम, शृहप्रवेश आदि मंगल न करना, रन्‍्तु यहां विशेषतः शुक्ल प्र० की है, कृष्णमें उक्त कार्येमिंसे कुछ होते है उनकी स्पष्टता आगे लिखेंगे.

द्वितीयामें राजसंबन्धी अग था चिह्नोंके कृत्य ब्रतबंध, मदिष्ठा, विवाह, यात्रा, भ्रंषणादि कम शुभ होते हैं, ठृतीयामें द्वितीयाके उक्त कम औरें गमनसम्बन्धी कृत्य, शिरुप, सामंत, चूडा, अन्नम्राशन, ग्रहप्रवेश भा शुभ हांते हैं, (रक्ता ४।९॥ १२४ में आमग्निेकर्मं, मारणकर्म, बन्धन,कृत्य, शख्र, विष, अग्रिदाह, घात आदिक विषयक कृत्य शुभ ओर मंगल कृत्य अशुभ होंते हैं.

पंचर्मामें समस्त शुभकृत्य सिद्धि देते है परन्तु ऋण ( का ) इसमें न देना, देनेसे नाश हो जाता है. पष्ठीमें तेदाभ्यंग, यात्रा, पितृकम॑ और दन्दकाष्ठोंके बिना सभी सेगठ पौष्टिक कम करने तथा संग्रामोपयोगी शिलूप, वास्तु, भूषण, वस्जञ भी शुभ है.

सप्तमीमें जो जो कृत्य द्वि० तृ० पु० ष्‌० मे कहें हे वे सिद्ध होते है. अश्मीमें रणीपयोगी कमें, वास्तुकृत्य, .

शिल्प, राजकृत्य, लिखनेका काम, स्त्री, रल, अपण कृत्य शुभ होते हैं, दह्मीमें जो जो द्वि० तृ० पं० स० में कहे है, वे सिद्ध होते है.एकादर्शामें व्रत उपवासादे समस्त घमकृत्य, देवताका उत्सव, वास्तुकर्म, सांग्रामिक कमे, शिल्प शुभ होते हैं.

द्वादर्शीम समस्त स्थावर ज॑ंगमके कम, पुष्टिकारक शुभकर्म सभी सिद्ध होते है,.

चयोदशीमें द्विं० त० (० स॒० के उक्त कृत्य शुभदायक होते है. पूर्णिमामें यज्ञक्रिया, पौष्टिक, मंगल, संग्रामोीपयोगी, वास्तुकम, विवाह, शिल्प, समस्त भषणादि सिद्ध होते है, अमावास्थाम पितृकममात्र होते है कहीं शाबरोक्त उग्रक्मे भी कहे है।

अन्य मंगरू पाष्टिकोत्सवादि कृत्य न करने ॥ ३ ॥

लेखक कनक लाल शर्मा-Kanak Lal Sharma
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 228
Pdf साइज़5.8 MB
Categoryधार्मिक(Religious)

खेमराज द्वारा प्रकाशित

मुहूर्त चिंतामणि – Muhurt Chintamani Book/Pustak Pdf Free Download

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