‘मोक्षदा एकादशी व्रत कथा PDF Quick download link is given at the bottom of this article. You can see the PDF demo, size of the PDF, page numbers, and direct download Free PDF of ‘Mokshada Ekadashi Vrat Katha’ using the download button.
मोक्षदा एकादशी व्रत कथा और महत्व – Mokshada Ekadashi Vrat Katha PDF Free Download
मोक्षदायिनी एकादशी व्रत मुहूर्त
एकादशी तिथि प्रारंभ– 24 दिसंबर की रात 11 बजकर 17 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त– 25 दिसंबर को देर रात 1 बजकर 54 मिनट तक
मोक्षदा एकादशी का तात्पर्य है मोह का नाश करने वाली। इसलिए इसे मोक्षदा एकादशी कहा गया है। एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है।
हर माह दो एकादशी व्रत पड़ते हैं। एक-शुक्ल पक्ष और एक कृष्ण पक्ष में। मार्गशीर्ष मास मके शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मोक्षदा एकादशी कहते हैं।
मान्यता के अनुसार द्वापर युग में इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र में गीता ज्ञान दिया था। अत: इस दिन गीता जयंती भी मनाई जाती है।
मोक्षदा एकादशी के दिन मानवता को नई दिशा देने वाली गीता का उपदेश हुआ था। मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की मोक्षदा एकादशी का जो व्रत करते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। इस व्रत से बढ़कर मोक्ष देने वाला और कोई व्रत नहीं है।
इस साल मोक्षदा एकादशी 25 दिसंबर, 2021 (शनिवार) को है, वहीं इस बार मोक्षदा एकादशी व क्रिसमस डे एक ही दिन पड़ रहे हैं।
एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है। हर माह दो एकादशी व्रत पड़ते हैं। एक शुक्ल पक्ष और एक कृष्ण पक्ष में मार्गशीर्ष मास मके शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मोक्षदा एकादशी कहते हैं।
इस एकादशी को मोक्षदायिनी एकादशी भी कहा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मोक्षदा एकादशी व्रत करने से जातक को पितृ दोषों से मुक्ति मिलती है।
मोक्षदा एकादशी व्रत कथा
महाराज युधिष्ठिर ने कहा- हे भगवन! आप तीनों लोकों के स्वामी सबको सुख देने वाले और जगत के पति हैं। मैं आपको नमस्कार करता हूं।
हे देव! आप सबके हितैषी हैं अत: मेरे संशय को दूर कर मुझे बताइए कि मार्गशीर्ष एकादशी का क्या नाम है? उस दिन कौन-से देवता का पूजन किया जाता है और उसकी क्या विधि है? कृपया मुझे बताएं।
भक्तवत्सल भगवान श्री कृष्ण कहने लगे कि धर्मराज, तुमने बड़ा ही उत्तम प्रश्न किया है। इसके सुनने से तुम्हारा यश संसार में फैलेगा। मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी अनेक पापों को नष्ट करने वाली है।
इसका नाम मोक्षदा एकादशी है। इस दिन दामोदर भगवान की धूप-दीप, नैवेद्य आदि से भक्तिपूर्वक पूजा करनी चाहिए। अब इस विषय में मैं एक पुराणों की कथा कहता हूं।
गोकुल नाम के नगर में वैखानस नामक राजा राज्य करता था। उसके राज्य में चारों वेदों के ज्ञाता ब्राह्मण रहते थे। वह राजा अपनी प्रजा का पुत्रवत पालन करता था।
एक बार रात्रि में राजा ने एक स्वप्न देखा कि उसके पिता नरक में हैं। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। प्रातः वह विद्वान ब्राह्मणों के पास गया और अपना स्वप्न सुनाया। कहा- मैंने अपने पिता को नरक में कष्ट उठाते देखा है।
उन्होंने मुझसे कहा कि हे पुत्र मैं नरक में पड़ा हूं। यहां से तुम मुझे मुक्त कराओ। जब से मैंने ये वचन सुने हैं तब से मैं बहुत बेचैन हूं। चित्त में बड़ी अशांति हो रही है।
मुझे इस राज्य, धन, पुत्र, स्त्री, हाथी, घोड़े आदि में कुछ भी सुख प्रतीत नहीं होता। क्या करूं? राजा ने कहा- हे ब्राह्मण देवताओं! इस दुःख के कारण मेरा सारा शरीर जल रहा है।
अब आप कृपा करके कोई तप, दान, व्रत आदि ऐसा उपाय बताइए जिससे मेरे पिता को मुक्ति मिल जाए। उस पुत्र का जीवन व्यर्थ है जो अपने माता-पिता का उधार न कर सकें।
एक उत्तम पुत्र जो अपने माता-पिता तथा पूर्वजों का उद्धार करता है, वह हजार मूर्ख पुत्रों से अच्छा है। जैसे एक चंद्रमा सारे जगत में प्रकाश कर देता है, परंतु हजारों तारे नहीं कर सकते।
ब्राह्मणों ने कहा- हे राजन! यहां पास ही भूत, भविष्य, वर्तमान के ज्ञाता पर्वत ऋषि का आश्रम है। आपकी समस्या का हल वे जरूर करेंगे। यह सुनकर राजा मुनि के आश्रम पर गया।
उस आश्रम में अनेक शांत चित्त योगी और मुनि तपस्या कर रहे थे। उसी जगह पर्वत मुनि बैठे थे। राजा ने मुनि को साष्टांग दंडवत किया। मुनि ने राजा से कुशलता के समाचार लिए।
राजा ने कहा कि महाराज आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुशल हैं, लेकिन अकस्मात मेरे चित में अत्यंत अशांति होने लगी है। ऐसा सुनकर पर्वत मुनि ने आंखें बंद की और भूत विचारने लगे।
फिर बोले हे राजन! मैंने योग के बल से तुम्हारे पिता के कुकर्मों को जान लिया है। उन्होंने पूर्व जन्म में कामातुर होकर एक पत्नी को रति दी, किंतु सौत के कहने पर दूसरे पत्नी को ऋतुदान मांगने पर भी नहीं दिया।
उसी पाप कर्म के कारण तुम्हारे पिता को नरक में जाना पड़ा। तब राजा ने कहा इसका कोई उपाय बताइए।
मुनि बोले- हे राजन! आप मार्गशीर्ष एकादशी का उपवास करें और उस उपवास के पुण्य को अपने पिता को संकल्प कर दें। इसके प्रभाव से आपके पिता की अवश्य ही नरक से मुक्ति होगी।
मुनि के ये वचन सुनकर राजा महल में आया और मुनि के कहने अनुसार कुटुम्ब सहित मोक्षदा एकादशी का व्रत किया। इसके उपवास का पुण्य उसने पिता को अर्पण कर दिया।
इसके प्रभाव से उसके पिता को मुक्ति मिल गई और स्वर्ग में जाते हुए वे पुत्र से कहने लगे हे पुत्र तेरा कल्याण हो। यह कहकर स्वर्ग चले गए।
मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की मोक्षदा एकादशी का जो व्रत करते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। यह व्रत चिंतामणी के समान सब कामनाएं पूर्ण करने वाला तथा मोक्ष देता है।
इस व्रत से बढ़कर मोक्ष देने वाला और कोई व्रत नहीं है। इस कथा को पढ़ने या सुनने से वायपेय यज्ञ का फल मिलता है।
मोक्षदा एकादशी का संबंध महाभारत से जुड़ा है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को ही भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था।
महाभारत युद्ध के दौरान जब अर्जुन अपने सगे संबंधियों पर बाण चलाने से झिझक रहे थे तब द्वारिकाधीश श्रीकृष्ण ने उन्हें गीता का सार समझाया था। इसलिए आज के दिन गीता जयंती का पर्व भी मनाया जाता है।
लेखक | लोक संस्कृति |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 2 |
PDF साइज़ | 0.16 MB |
Category | व्रत कथाएँ |
मोक्षदा एकादशी पूजन विधि
इस दिन सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर घर के मंदिर की सफाई करें और पूरे घर में गंगाजल छिड़कें। इसके बाद पूजाघर में भगवान को गंगाजल से स्नान कराएं या उनकी तस्वीर पर गंगाजल के छींटे दें।
उन्हें वस्त्र अर्पित करें। इसके बाद रोली और अक्षत से तिलक करें। फूलों से भगवान का श्रृंगार करें इत्र छिड़कें। मोक्षदा एकादशी के दिन सबसे पहले भगवान गणपति और फिर माता लक्ष्मी के साथ श्रीहरि की आरती करें।
पूजा करते समय भगवान को फल और मेवे का भोग लगाएं। भगवान विष्णु को तुलसी के पत्ते अवश्य अर्पित करें। दिनभर व्रत करें। फलाहार कर सकते हैं और यदि पूरे दिन व्रत संभव न हो तो एक समय सात्विक भोजन कर सकते हैं।
व्रत के दौरान मन शांत रखें। क्रोध न करें और किसी को अपशब्द न कहें। शाम के समय दीपक जलाकर भजन-कीर्तन करें। मोक्षदा एकादशी के दिन भगवान श्री कृष्ण, महर्षि वेद व्यास और श्रीमद भागवत गीता का पूजन किया जाता है।
मोक्षदा एकादशी का महत्व
इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य के पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और उन्हें कर्मों के बंधन से मुक्ति मिलती है।वहीं इस व्रत को करने से मनुष्य के पापों का नाश होता है।
मान्यता है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अजुर्न को गीता का संदेश दिया था, इसलिए इस उपलक्ष्य में मोक्षदा एकादशी पर गीता जयंती मनाई जाती है। श्रीमद् भागवत गीता एक महान ग्रंथ है।
गीता ग्रंथ सिर्फ लाल कपड़े में बांधकर घर में रखने के लिए नहीं है बल्कि उसे पढ़कर उसके संदेशों को आत्मसात करने के लिए है।
भागवत गीता के चिंतन से अज्ञानता दूर होती है और मनुष्य का मन आत्मज्ञान की ओर अग्रसर होता है। इसके पठन-पाठन और श्रवण से जीवन को एक नई प्रेरणा मिलती है।
वहीं इस दिन श्रीमद् भागवत गीता, भगवान श्रीकृष्ण और महर्षि वेद व्यास का विधिपूर्वक पूजन करके गीता जयंती उत्सव मनाया जाता है।
रोग, दरिद्रता और तनाव को कम करता है ये व्रत
मोक्षदा एकादशी का व्रत रोग, दरिद्रता, तनाव और कलह का नाश करता है. इस व्रत को विधि पूर्वक करने से पितृ भी प्रसन्न होते हैं और अपना आर्शीवाद प्रदान करते हैं. वहीं मोक्षदायिनी एकादशी पुण्य फल देने वाली होती है. जो लोग इस दिन सच्चे मन से पूजा आराधना करता है, उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं. और वह मोक्ष को प्राप्त करता है.
मोक्षदा एकादशी व्रत कथा | Mokshada Ekadashi Vrat Katha PDF Free Download