मेरी धरती मेरे लोग – Meri Dharti Mere Log Book/Pustak Pdf Free Download
पुस्तक का एक मशीनी अंश
बालू पर/अपने बक्यलों को विश्रांति देता हुआ/जपनी पुरष्टि को. वसान्त नील सागर की लहरों के शोर से परे प्रसारित करता था/अपने दृष्टि संचार की सीमा के परे/मै वस्तुओं और भूमियों को एक अनिर्वचनीय मधुरिमा में स्नान करता था …क्या वह रंगून, सिंगापूर या बैंकाक है ?
या वह महाजन बंड है जो मौसम से द्रव रूप में परिवर्तित हो कर पेसिफिक सागर बन गया है या कि मेरा गगन विहारी नौल स्वप्न हैं। जो अपने पंख गंया कर एकाएक भूमि पर गिर पड़ा है ?
धरती के बाक्य में समुद्र विराम, अर्धविराम की तरह हैवि दौड़ती हुई सभ्यताओं को अल्पावधि के लिए विश्रांति देते हैं वे पुरानी साँस छोड़ कर नयी साँस लेने का अवसर देते हैं वे नये अलंकरण और र्प दे कर नये तटों से परिचित कराते हैं ।
समुद्र दवात हैं जिन्हें पृथ्वी अपने प्रणय-पत्रों के लेखन के लिए प्रयुक्त करती है।अक्षर/जो साम्राज्यों, सभ्यताओं और विज्ञान के परिमल हैं हवाएं उन्हें उन दबातों से उड़ा लाती हैं ये पुरातन हवाएँ/नगरों को आलोकित करती है और देशों पर शासन करती हैं।
वह यही स्याही है जिससे मानव इतिहास लिखा गया मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए समय मानव- रचित कविताओं को निगल जाता है मैने पुरानी कविताओं को खाया और फिर उनमें से अनपचे अंशों को बमन कर दिया अब मुझे नये शब्दों को भूख है।
अब मैं दृष्टि की सामा से परे गरजते हुए शून्य से मेरे समन्दरों से परे सरगोशियां करती नीलिमा से मेरे नक्षत्रों से परे बुलन्द ऊँचाइयों से मेरे हाथों को पहुँच से परे अपने अन्तरतम की गहराइयों से जिससे से मेरे समकालीन अपरिचित है ऐसो सामग्री से मैं अपनी कविताएँ बुनता हैं।ओ नगर मुझे पचा नहीं सके उनसे परे जहाँ मेरी आत्मा गुनगुनी कामनाओं
लेखक | शेषेन्द्र शर्मा-Sheshendra Sharma |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 164 |
Pdf साइज़ | 7.6 MB |
Category | कहानियाँ(Story) |
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