मंत्र जप अनुष्ठान – Mantra Jap Mahima Evam Anushthan Book Pdf Free Download
पुस्तक का एक मशीनी अंश
श्री गुरुदेव की कृपा और शिष्य की बडा, इन दो पवित्र धाराओं का संगम ही दीक्षा है गुरु का आत्मदान और शिष्य का आत्मसमर्पण, एक की कृपा व दूसरे की बदा के मेल से ही दीक्षा संपन्न होती है।
दाल और क्षेप, यही दीशा। ज्ञान, शक्ति व सिद्धि का दान और अजान, पाप और दरिद्रता काय, इसी का नाम दीला है।
सभी साधकों के लिये यह क्षा अनिवार्य है चाहे जन्मी की देर लग. परन्तु जब तक ऐसी दीक्षा नहीं होगी तब तक सिद्धि का मार्ग स्का ही रहेगा।
यद समस्त साधकों का अधिकार एक सला, यदि साधनाएँ बहुल नहीं होती और सिद्धियों के बहुत को स्तर स होते तो यह भी गम्भया था कि विज्ा दीकषा के ही परमार्थ प्रालि हो जाती ।
परंतु ऐसा नही। इस मनुष्य शरीर में कोई पशु-योनी से य है और कोई देव-मोती से कोई पूर्व जन्म में चला-संपन्न होकर आया है और कोई साँचे नरवण्ठ से, किसी को सन सुप्त है और किसी का आयत ।
ऐसी स्थिति मै सबके निद एक मंत्र, एक देवता और एक प्रकार की ध्यान प्रणाली हो ही नहीं सकती।
यह सत्य है कि सिह स और दैवलाओं के रूप में उनकी अगवान प्रकट है फिर भी किस हदय में, किस देवता और मा के रूप में 5नकी सरति सहज है- यह जानकर उनको उसी रूप में स्फुरित करता, यह टीक्षा की विधि है।
दीवया एका दृष्टि से गुरु की और आन्दान, जानसपार अव शतिपत है तो दूसरी के जागरण में वही सरपयसा मिलती है और आप कारण कवि सजीयाली ती जिनके धित में सीमित प्याकुलता और सरल विपास है भी कर पाले जितना कि शिष्या को टीमा से होला ।
का यहुत बार नहीं होगी क्योकि पका पार रास्ता पकता निगे पर आग के स्थान स्वबजाते रासह पहली भागकर स्वयं की दूसरी भूमिका स्प पवारात होती है सपना का अनुमान फ्रमण-दय को शुद्ध कराता है और सर विडियो और
लेखक | – |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 52 |
Pdf साइज़ | 18.9 MB |
Category | धार्मिक(Religious) |
मंत्र जप महिमा और अनुष्ठान – Mantra Jap Mahima Evam Anushthan Book/Pustak Pdf Free Download