क्या खाए क्यों खाए कैसे खाए | Kya Khae Kyo Khae Kaise Khae PDF In hindi

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क्या खाए क्यों खाए कैसे खाए – Kya Khae Kyo Khae Kaise Khae Pdf Free Download

क्या खाए क्यों खाए कैसे खाए

भोजन हमारे संवारता है, जिसके द्वारा हमारे विचार बनते है । चदि भोजन सरियक है, मन में उत्पा होने वाले विचार सायिक और पवित्र होंगे इसके विपरीत उवेक्कम राजसी भोकन करने वालों के विचार बुद्ध और विलासी होंगे ।

किन बीमारियों में मांस, अंडे, मच, चाप, संबाकू इत्यादि का प्रयोग किया जा है, वे प्रम: विलासी, विकारमर, गंदे विचारों से परिपूर्ण होते हैं ।उनकी कर्मेंद्रियां उत्तेजक रहती है, मन कुकल्पनाओं से परिपूर्ण रहा है, कणक प्रलोभन से अंबई से परिपूर्ण हो जाता है।

भोजन हमारे स्वभाव, कचि तथा विकारों का निर्माता है ।पशु जगत को लीजिए । बैल, भैंस, घोड़े, गधे इत्यादि शारीरिक श्रम करने वाले पशुओं का मुख्य भोजन घास पात, हरी तस्कारियां, मा अनाज रहता है ।

फलतः वे सहनशील, शांत, मृदु होते हैं । इसके विपरीत सिंह, चौते, भेड़िये, बिल्ली इत्यादि मांस भक्षी, चंचल, उग्र, क्रोधी, उत्तेजक स्वभाव के बन जाते हैं । घास पात तथा मांस के भेजन का यह प्रभाव है । इसी प्रकार उत्तेजक भोजन करने वाले व्यक्ति कामी, क्रोधी, अशिष्ट होते हैं ।

विसासी भोजन करने वाले आलस्य में डूबे रहते हैं, दिन रात में दस बारह घंटे सो कर नहट कर देते हैं ।

मा्विक भोजन करने वाले हलके, चुस्त, कर्मों के प्रति रुचि प्रदर्शित करने वाले, कम सोने वाले, मधुर स्वभाव के होते है । उन्हें कामवासना अधिक नहीं सताती ।

उनके आंतरिक अवयवों में विष-विकार एकत्रित नहीं होते । जहाँ अधिक भोजन करने वाले अजीर्ण, सिर दर्द, कब्ज, सुस्ती से परेशान रहते हैं, कहाँ कम भोजन करने वालों के आंतरिक अवयव शरीर में एकत्रित होने वाले कूड़े कचरे को बाहर फेंकते रहते हैं । विथ-संचय नहीं हो पाता।

हैं। भोजन हमारे संस्कार बनाता है, जिसके द्वारा हमारे विचार बनते हैं। यदि भोजन सात्विक है, तो मन में उत्पन्न होने वाले विचार सात्विक और पवित्र होंगे, इसके विपरीत उत्तेजक या राजसी भोजन करने वालों के विचार अशुद्ध और विलासी होंगे।

जिन जातियों में मांस, अंडे, मथ, चाय, तंबाकू इत्यादि का प्रयोग किया जाता है, वे प्रायः विलासी, विकारमय, गंदे विचारों से परिपूर्ण होते हैं।

उनकी कार्मेद्रियां उत्तेजक रहती हैं, मन कुकल्पनाओं से परिपूर्ण रहता है, क्षणिक प्रलोभन से अंतर्द्वद्व से परिपूर्ण हो जाता है। भोजन हमारे स्वभाव, रुचि तथा विकारों का निर्माता है ।

पशु जगत को लीजिए । बैल, भैंस, घोड़े, गधे इत्यादि शारीरिक श्रम करने वाले पशुओं का मुख्य भोजन घास पात, हरी तरकारियां, या अनाज रहता है। फलतः ये सहनशील, शांत, मृदु होते हैं।

इसके विपरीत सिंह, चीते, भेड़िये, बिल्ली इत्यादि मांस भक्षी, चंचल, उग्र, क्रोधी, उत्तेजक स्वभाव के बन जाते हैं। घास पात तथा मांस के भोजन का यह प्रभाव है । इसी प्रकार उत्तेजक भोजन करने वाले व्यक्ति कामी, क्रोधी, झगड़ालू, अशिष्ट होते हैं ।

विलासी भोजन करने वाले आलस्य में डूबे रहते हैं, दिन रात में दस बारह घंटे सो कर नष्ट कर देते हैं ।

सात्विक भोजन करने वाले हलके, चुस्त, कर्मों के प्रति रुचि प्रदर्शित करने वाले, कम सोने वाले, मधुर स्वभाव के होते हैं।

उन्हें कामवासना अधिक नहीं सताती । उनके आंतरिक अवयवों में विष-विकार एकत्रित नहीं होते ।

जहाँ अधिक भोजन करने वाले अजीर्ण, सिर दर्द, कब्ज, सुस्ती से ‘परेशान रहते हैं, वहाँ कम भोजन करने वालों के आंतरिक अवयव शरीर में एकत्रित होने वाले कूड़े-कचरे को बाहर फेंकते रहते हैं ।

विष-संचय नहीं हो पाता। भोजन की उपयोगिता स्पष्ट करते हुए एक वैद्य-विशारद लिखते हैं, ‘भोजन से शरीर को छोजन, जो हर समय होती रहती है, दूर होती है।

लेखक श्री राम शर्मा-Shri Ram Sharma
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 48
Pdf साइज़1.9 MB
Categoryस्वास्थ्य(Health)

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